संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस  

ईश्वर जीवन के हर चरण में परिवर्तन का आह्वान करते हैं

वाटिकन स्थिति प्रेरितिक आवास की लाईब्रेरी से संत पापा फ्राँसिस रविवार 24 जनवरी को देवदूत प्रार्थना का पाठ किया जिसके पूर्व जीवन के महत्व एवं उसे जीने के सही तरीके पर प्रकाश डाला।

उषा मनोरम तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, सोमवार, 25 जनवरी 2021 (रेई)- वाटिकन स्थिति प्रेरितिक आवास की लाईब्रेरी से संत पापा फ्राँसिस रविवार 24 जनवरी को देवदूत प्रार्थना का पाठ किया जिसके पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित किया।

संत पापा ने कहा, "प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।"

इस रविवार का सुसमाचार पाठ (मार.1,14-20) दिखलाता है जिसको कहा जा सकता है "गवाह का पार होना" योहन बपतिस्ता से येसु के पास। योहन उनका अग्रदूत था। उन्होंने भूमि और रास्ता तैयार किया। अब येसु अपना मिशन शुरू कर सकते थे और  घोषणा कर सकते थे कि मुक्ति निकट है। वे ही मुक्ति हैं। उनके उपदेश को इन शब्दों में संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है˸ समय पूरा हो चुका है, स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है; पश्चाताप करो और सुसमाचार में विश्वास करो।" (15) स्पष्ट है कि येसु आधे शब्दों का प्रयोग नहीं करते हैं। यह एक संदेश है जो दो आवश्यक विषयों पर चिंतन करने के लिए निमंत्रण देता है ˸ समय और पश्चाताप या परिवर्तन।

समय

सुसमाचार लेखक मारकुस के इस पाठ में, समय को मुक्ति इतिहास की अवधि के रूप में समझा जाना चाहिए, जिसमें ईश्वर ने कार्य किये हैं। अतः समय पूरा हो चुका है का अर्थ है मुक्ति कार्य अपनी चरमसीमा पर पहुँच गई है। अपनी पूर्ण अनुभूति पर पहुंच गई है। यह एक ऐतिहासिक समय है जिसमें ईश्वर ने अपने पुत्र को इस दुनिया में भेजा और उनका राज्य किसी भी समय से अधिक निकट आ गया।

मुक्ति का समय

मुक्ति का समय पूरा हो चुका है क्योंकि येसु आ गये हैं। हालांकि मुक्ति खुद ब खुद नहीं आती; यह एक प्रेम का उपहार है, मुफ्त में दिया गया है। जब कभी वे प्रेम के बारे बोलते हैं तो स्वतंत्रता के बारे भी बोलते हैं। स्वतंत्रता के बिना प्रेम नहीं होता, वह रूचि हो सकता है, डर से हो सकता है अथवा कोई दूसरे कारण से हो सकता है किन्तु प्रेम हमेशा स्वतंत्र होता, स्वतंत्र होने के कारण यह स्वतंत्र जिम्मेदारी की मांग करता है अर्थात् हमारे परिवर्तन की मांग करता है। यह दृष्टिकोण एवं मनोभाव में परिवर्तन है और जीवन में बदलाव लाना है। दुनिया के तौर-तरीकों पर नहीं चलना है बल्कि ईश्वर अर्थात् येसु के रास्ते पर चलना है। येसु ने जिस तरह किया और सिखलाया उसके अनुसार चलना। यह अपने दृष्टिकोण एवं मनोभाव में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाना है।

पाप का प्रभाव

वास्तव में, पाप ने दुनिया में ऐसी मानसिकता लाया है, जिसमें हम एक-दूसरे के विरूद्ध एवं ईश्वर के खिलाफ जाते हैं और यही कारण है कि झूठ और हिंसा से नहीं हिचकिचाते  हैं।

आपकी पहचान क्या है? कई बार हम सुनते हैं कि वे अपनी पहचान को "खिलाफ" शब्द के साथ प्रस्तुत करते हैं। दुनिया का मनोभाव किसी की पहचान को सकारात्मक एवं मुक्ति के रूप में व्यक्त नहीं करता, वह अपने आपसे, दूसरों के और ईश्वर के खिलाफ है। पाप की मानसिकता, धोखे की मानसिकता - छल और हिंसा का सहारा लेता है। संत पापा ने कहा कि आइये हम गौर करें कि धोखा और हिंसा से क्या होता है। लालच, सत्ता की चाह, सेवा नहीं करना, युद्ध, लोगों का शोषण करना आदि धोखे की मानसिकता है जिसकी शुरूआत निश्चय ही धोखे के पिता, बड़ा झूठा शैतान से होती है। वह झूठ का पिता है जैसा कि येसु कहते हैं।

जीवन एक प्रेम उपहार है, प्रेम प्रकट करने का समय है

येसु का संदेश इसका विरोध करता है जो हमें ईश्वर एवं उनकी कृपा की आवश्यकता महसूस कराता है। पृथ्वी की चीजों की ओर हमारा एक संतुलित मनोभाव रखने, सभी का स्वागत करने एवं उनके प्रति विनम्र होने के लिए प्रेरित करता है तथा दूसरों से मुलाकात करने एवं उनकी सेवा करने के द्वारा हम अपने आप को जानते और पूर्ण बनाते हैं। हम प्रत्येक के लिए समय कम है जिसमें हमें मुक्ति प्राप्त करना है। यह पृथ्वी पर हमारे जीवन तक ही सीमित है। निश्चय ही, यह छोटा है, शायद लम्बा लगता है... संत पापा ने याद करते हुए कहा, "मैं याद करता हूँ कि एक बार मैं बहुत अच्छे बुजूर्ग बीमार व्यक्ति को अंत मलन संस्कार देने गया था, उसने पवित्र परमप्रसाद एवं रोगियों का संस्कार ग्रहण करने से पहले कहा, "मेरा जीवन बीत गया।" संत पापा ने कहा यही हम बुजूर्ग महसूस करते हैं कि जीवन बीच चुका है। यह जीवन बीत जाता है। जीवन ईश्वर के असीम प्रेम का उपहार है किन्तु उनके लिए हमारे प्रेम को प्रकट करने का भी समय है। यही कारण है कि हरेक पल, हमारा हर अनुभव ईश्वर एवं पड़ोसी को प्यार करने का बहुमूल्य समय होता है, जिसके द्वारा हम अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे।  

हमारे जीवन का इतिहास

हमारे जीवन के इतिहास के दो लय हैं ˸ पहला, मापने योग्य; जो घंटों, दिनों, वर्षों से बना है जबकि दूसरा, हमारे विकास की अवस्थाओं से बना है; जन्म, बचपन, किशोरावस्था, परिपक्वता, बुढ़ापा और मृत्यु। हरेक अवधि एवं अवस्था का अपना महत्व है और ये प्रभु से मुलाकात करने के विशेष अवसर होते हैं। विश्वास हमें इन अवधियों के आध्यात्मिक अर्थ को समझने में मदद देता है। हरेक को प्रभु की ओर से विशेष बुलावा प्राप्त हुआ है जिसका हम सकारात्मक अथवा नकारात्मक प्रत्युत्तर दे सकते हैं। सुसमाचार में हम देखते हैं कि किस तरह सिमोन, अंद्रयसस, याकूब और योहन ने प्रत्युत्तर दिया। वे प्रौढ़ व्यक्ति थे। उनका काम मछली मारना था, उनका अपना परिवार था...फिर भी जब येसु वहाँ से गुजरे और उन्हें बुलाया तो वे तत्काल जाल छोड़ कर उनके पीछे हो लिये।(मार.1:18).

संत पापा ने सभी विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, "हम चौकस रहें और येसु का स्वागत किये बिना उन्हें पार होने न दें। संत अगुस्टीन कहते हैं, "मैं डरता हूँ जब ईश्वर पार होते हैं। वह किस चीज से डरता है? उन्हें नहीं पहचान पाने, उन्हें नहीं देख पाने और उनका स्वागत नहीं कर पाने का डर।"

कुँवारी मरियम से प्रार्थना

संत पापा ने प्रार्थना की कि धन्य कुँवारी मरियम हमें अपने जीवन के हरेक दिन, हरेक क्षण को मुक्ति के समय के रूप में जीने में सहायता दे, जिसमें प्रभु पार होते एवं अपना अनुसरण करने के लिए बुलाते हैं। वे हमें दुनिया की मानसिकता से मन-परिवर्तन कर प्रेम एवं सेवा की भावना में बढ़ने में मदद दें।

इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

 

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25 January 2021, 14:00