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संत पापा फ्रांसिस आमदर्शन समारोह में संत पापा फ्रांसिस आमदर्शन समारोह में 

संत पापाः चिंतन येसु से मिलन

संत पापा फ्रांसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में चिंतन प्रार्थना पर प्रकाश डालते हुए इसे ईश्वर से मिलन का माध्यम बतलाया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 28 अप्रैल 2021 (रेई)वाटिकन सिटी, बुधवार, 28 अप्रैल 2021 (रेई)- संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन के प्रेरितिक निवास की पुस्तकालय से सभी लोगों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

आज हम प्रार्थना के उस स्वरुप पर चर्चा करेंगे जो मनन–चिंतन के रूप में की जाती है। एक ख्रीस्तीय के लिए मनन-चिंतन करने का अर्थ है अर्थ की तलाश करनाः इसका मतलब है प्रकाशना के एक बड़े पृष्ठ के सामने आना, ताकि उसे अपना बना सकें, उसे पूरी तरह अपना सकें। और एक ख्रीस्तीय, ईश वचन का स्वागत करने के बाद, अपने अंदर बंद नहीं रह सकता क्योंकि उस वचन को एक दूसरी किताब से मिलना है, जिसे धर्मशिक्षा, "जीवन की किताब" कहती है। हर मनन-चिंतन में हम यही करने की कोशिश करते हैं।

मनन-चिंतन जीवन की सांस  

मनन-चिंतन के अभ्यास ने इस साल अपनी ओर विशेष ध्यान खींचा है। केवल ख्रीस्तीय नहीं हैं जो इसके बारे बातें करते हैं, विश्व के करीब सभी धर्म हैं जो मनन-चिंतन का अभ्यास करते हैं, किन्तु ऐसे लोगों के बीच भी यह एक व्यापक क्रिया है जो जीवन को धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं देखते। हम सभी को मनन-चिंतन करने की जरूरत है, चिंतन करने, अपने आपको झांक कर देखने की, यह एक मानवीय गतिशीलता है। इससे भी बढ़कर, पश्चिमी दुनिया में लोग इसकी खोज करते हैं क्योंकि यह दैनिक तनावों एवं खालीपन के खिलाफ एक बड़ा प्रतिरोधक है। इस तरह हम यहाँ युवाओं एवं वयस्कों को ध्यान में बैठे, मौन, आंखें बंद किये हुए देख सकते हैं...पर ये लोग क्या करते हैं? हम सवाल कर सकते हैं। वे मनन-चिंतन करते हैं। यह एक ऐसी स्थिति है जिसका स्वागत किया जाना चाहिएः हम हर समय दौड़ने के लिए नहीं बनाये गये हैं। हमारा एक आंतरिक जीवन है जिसे हमेशा अनदेखा नहीं किया जा सकता। अतः मनन-चिंतन हम सभी के लिए आवश्यक है। मनन-चिंतन को इस तरह कहा जा सकता है कि यह रूकना और जीवन में सांस लेना है, कुछ देर के लिए रूक जाना है।

चिंतन, येसु से मिलन  

हालांकि, हम महसूस करते हैं कि इस शब्द को ख्रीस्तीय संदर्भ में स्वीकार करने की अपनी विशेषता है जिसको नहीं हटाया जाना चाहिए। मनन-चिंतन एक आवश्यक मानवीय गतिविधि है किन्तु ख्रीस्तीय संदर्भ में, हम ख्रीस्तियों के लिए यह इससे आगे जाता है यह एक ऐसा आयाम है जिसे नहीं हटाया जाना चाहिए। एक महान दरवाजा जिससे होकर एक बपतिस्मा प्राप्त व्यक्ति की प्रार्थना आगे बढ़ती है। ख्रीस्तियों के लिए मनन-चिंतन येसु ख्रीस्त के द्वार से प्रवेश करता है। मनन-चिंतन का अभ्यास भी इसी रास्ते से आगे बढ़ता है। और एक ख्रीस्तीय जब प्रार्थना करता है, वह तब तक अपने आपको पूरी तरह नहीं देख पाता जब तक कि अपनी गहराई में नहीं उतरता है। यह वैध है किन्तु ख्रीस्तीय एक दूसरी चीज की खोज करते हैं। ख्रीस्तीय प्रार्थना सबसे पहले दूसरे व्यक्ति के साथ मुलाकात है, ईश्वर के साथ पारदर्शी मुलाकात। यदि एक प्रार्थना की अनुभूति, आंतरिक शांति प्रदान करती है या अपने मालिक होने अथवा यात्रा को आलोकित करने का एहसास देता है, तो ये परिणाम हैं जिनके द्वारा कहा जा सकता है कि ये ख्रीस्तीय प्रार्थना की कृपा के परिणाम हैं, यह येसु के साथ मुलाकात है। अर्थात् मनन-चिंतन करना, धर्मग्रंथ के एक पाठ या एक शब्द से प्रेरित होकर अपने अंदर निवास करनेवाले येसु से मुलाकात करना।

चिंतन में पवित्र आत्मा हमारे सहायक

"मनन-चिंतन" शब्द का पूरे इतिहास में अलग-अलग अर्थ रहा है। यहाँ तक कि ख्रीस्तीयता के अंदर भी अलग-अलग आध्यात्मिक अनुभव रहे हैं। फिर भी, कुछ आम लकीर खींची जा सकती है और इसमें धर्मशिक्षा हमें मदद देती है। धर्मशिक्षा कहती है, "मनन-चिंतन" के उतने ही तरीके हैं जितने आध्यात्मिक गुरू [...] किन्तु ये तरीके सिर्फ मार्गदर्शक हैं, महत्वपूर्ण बात है पवित्र आत्मा के संचालन में एक ही रास्तेः येसु ख्रीस्त में आगे बढ़ना। यहाँ यात्रा में एक साथी पवित्र आत्मा का संकेत मिलता है जो हमारा मार्गदर्शन करते हैं। पवित्र आत्मा के बिना एक ख्रीस्तीय का मनन-चिंतन करना संभव नहीं है। वही हैं जो हमें येसु से मुलाकात करने हेतु मार्गदर्शन देते हैं। येसु ने कहा है ˸ "मैं तुम्हारे लिए पवित्र आत्मा भेजूँगा। वह तुम्हें सिखाएगा और समझायेगा। संत पापा ने कहा कि मनन-चिंतन में भी सिखना और समझना, येसु ख्रीस्त के साथ मुलाकात करने हेतु आगे बढ़ने का एक मार्गदर्शन है।"

हृदय प्रार्थना का केन्द्र-बिन्दु

इस भांति ख्रीस्तीय चिंतन के कई रुप हैं जिसमें हम कुछ को शांतिमय, दूसरे को वार्ता स्वरुप, कुछ में हम लोगों के बैद्धिक चिंतन को पाते तो वहीं कुछ में हम प्रभावकारी ढ़ंग से लोगों के भावनात्मक आयाम को देखते हैं। ये सभी अपने में महत्वपूर्ण और उपयोगी हैं जहाँ वे हमें अपने पूर्ण विश्वास को पुख्ता होने का एहसास दिलाते हैं, लोग केवल मन से प्रार्थना नहीं करते बल्कि वे अपने पूरे व्यक्तित्व से प्रार्थना करते हैं, वे केवल अपनी भावनाओं से प्रार्थना नहीं करते हैं। संत पापा ने कहा कि आतीत में कहा जाता था कि प्रार्थना का केन्द्र-बिन्दु हृदय है और इसका जिक्र करते हुए कहा जाता था प्रार्थना में सम्पूर्ण व्यक्ति संलग्न होता है जहाँ वह अपने हृदय के केन्द्र से, ईश्वर के संग एक संबंध में प्रवेश करता है, प्रार्थना में मानव केवल कुछ संकायों का उपयोग नहीं करता है। इस भांति हमें इस बात को सदैव याद करने की जरुरत है प्रार्थना करने का तरीका एक मार्ग है अपने में एक लक्ष्य नहीं। हमारे प्रार्थना करने का कोई भी रुप, यदि यह ख्रीस्तीय है तो यह ख्रीस्त का अनुसार करना है जो हमारे विश्वास के सार को व्यक्त करता है। चिंतन करने के तरीके हमें येसु ख्रीस्त से मिलन हेतु अग्रसर करते हैं लेकिन यदि आप केवल राह पर रुक जाते और केवल राह को देखते हैं, तो आप येसु से कभी नहीं मिल पायेंगे। आप राह को ही ईश्वर का रुप बना लेंगे। राह के आगे येसु हमारी प्रतीक्षा करते हैं और राह हमें येसु के पास ले चलता है। काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा हमें कहती है, “चिंतन में हम विचारों, कल्पना, भावना और इच्छाओं को पाते हैं। कौशलों का यह संग्रहण आवश्यक है जिसके द्वारा हम अपने विश्वास को गहरा बनाते हैं, जो हमारे हृदय परिवर्तन को प्रेरित करता और ख्रीस्त के अनुसरण में हमारी इच्छा शक्ति को मजबूत बनाता है। ख्रीस्तीय प्रार्थना इससे भी बढ़कर हमें येसु ख्रीस्त के रहस्यों पर चिंतन करने में मदद करती है (2708)।

पवित्र आत्मा हमारे मार्ग दर्शक

संत पापा ने कहा कि ख्रीस्तीय प्रार्थना अतः हमारे लिए कृपा हैः येसु ख्रीस्त हमसे दूर नहीं हैं बल्कि वे सदैव हमसे जुड़े हैं। येसु का कोई भी दिव्य-मानव पहलू ऐसा नहीं जो हमारी मुक्ति और खुशी का स्थान नहीं बन सकता है। पृथ्वी पर येसु का मानवीय जीवन, प्रार्थना के माध्यम हमारे लिए समकालीन बनता है। हम पवित्र आत्मा का धन्यवाद करते हैं जो हमारे दिशा-निर्देशक हैं। लेकिन हम यह भी जानते हैं कि हम पवित्र आत्मा के सहचर्य बिना प्रार्थना नहीं कर सकते हैं। यह वे हैं जो हमारा मार्ग-दर्शक बनते हैं। हम पवित्र आत्मा के प्रति शुक्रगुजार हैं येसु के यर्दन नदी में बपतिस्मा ग्रहण करते समय, हम भी उनके संग नदी के तट पर उपस्थित होते हैं। काना के विवाह भोज में हम भी उनके साथ सहभागी होते हैं जहाँ येसु ने दंपत्तियों की खुशी हेतु लोगों को सर्वोत्म अंगूरी प्रदान की। यह पवित्र आत्मा हैं जो हमें येसु ख्रीस्त के जीवन के इन रहस्यों में संयुक्त करते हैं जिससे हम प्रार्थना में येसु ख्रीस्त का अनुभव और अधिक गहराई से करते हुए उनके साथ जुड़े रहें। हम उनके हजारों चंगाई के चमत्कारों द्वारा अपने को आश्चर्यचकित होता पाते हैं। हम सुसमाचार के उन चमत्कारों पर चिंतन करते जहाँ पवित्र आत्मा हमें वहाँ उपस्थित रहने को मदद करते हैं। प्रार्थना में, जब हम प्रार्थना करते तो हम सभी कोढ़ग्रस्त व्यक्ति की भांति शुद्ध किये जाते हैं, अंधे बरथोलोमी की भांति अपनी दृष्टि को पुनः प्राप्त करते हैं, लाजरूस को हम कब्र से बाहर आता पाते हैं...। संत पापा ने कहा कि हम भी अपनी प्रार्थना में चंगाई प्राप्त करने का अनुभव करते हैं, लाजरूस की भांति जी उठते हैं क्योंकि चिंतन प्रार्थना में पवित्र आत्मा हमें निर्देशित करते हैं जिसके फलस्वरुप हम येसु ख्रीस्त के जीवन रहस्यों को पुनः जीते हुए उनसे मिलते और अंधे व्यक्ति की भांति कहते हैं,“प्रभु मुझ पर दया कीजिए, मुझ पर दया कीजिए”। “आप को क्या चाहिए?” “मैं देखना चाहता हूँ।” इस भांति वार्ता की शुरूआत होती है। ख्रीस्तीय चिंतन में पवित्र आत्मा हमें येसु के साथ वार्ता करने हेतु मदद करते हैं। सुसमाचार में कोई भी पृष्ट ऐसा नहीं जहाँ हमारे लिए स्थान न हो। हम ख्रीस्तियों के लिए चिंतन करना येसु से मिलन है। और केवल ऐसा करने के द्वारा हम अपने को खोज पाते हैं। ऐसा करना अपने में सीमित रहना नहीं है, बल्कि ऐसा करने के द्वारा हम येसु के पास जाते और अपनी चंगाई प्राप्त करते हुए पुनर्जीवित, उनकी कृपा से अपने को मजबूत बनाते हैं। हम येसु से मिलते जो सभों के और मेरे भी मुक्तिदाता हैं। हम पवित्र आत्मा के प्रति कृतज्ञ हैं जो हमारा पथ-प्रर्दशन करते हैं।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्रांसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सभों के संग हे पिता हमारे प्रार्थना का पाठ करते हुए सबों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

 

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28 April 2021, 15:52

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