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आमदर्शन समारोह में धर्मशिक्षा देते संत पापा फ्रांसिस आमदर्शन समारोह में धर्मशिक्षा देते संत पापा फ्रांसिस 

संत पापाः प्रार्थना जीवन की सांस है

बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा फ्रांसिस ने प्रार्थना पर अपने की धर्मशिक्षा माला समापन करते हुए प्रार्थना में दृढ़ता पर प्रकाश डाला।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी-बुधवार, 09 जून 2021 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन के संत दमासुस प्रांगण में उपस्थित सभों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।

प्रार्थना पर धर्मशिक्षा माला की इस अंति कड़ी में हम प्रार्थना में दृढ़ता पर चिंतन करेंगे। यह हमारे लिए एक निमंत्रण है जो वास्तव में हमारे लिए धर्मग्रंथ से आता है। रूसी तीर्थयात्रियों की आध्यात्मिक यात्रा संत पौलुस द्वारा थेसलनीकियों के नाम पहले पत्र के पदों से शुरू होती है, “निरंतर प्रार्थना कीजिए, और सभी बातों के लिए ईश्वर का धन्यवाद कीजिए” (5.17-18)। प्रेरित के वचन मानव को प्रभावित करते हैं और वह अपने में यह आश्चर्य करता है कि वह बिना बाधित हुए कैसे प्रार्थना कर सकता है क्योंकि हम अपने को जीवन की बहुत सारी चीजों में उलझा हुआ पाते हैं जो हमारी एकाग्रचिता को सदैव असंभव बना देती है। मानव इस सवाल से अपनी खोज शुरूआत करता है जो उसे हृदय की प्रार्थना में पहुंचने हेतु मदद करता है। विश्वास में यह हमें इस मनोभाव को दुहराने हेतु प्रेरित करता है, “येसु ख्रीस्त, ईश्वर के पुत्र, मुझ पापी पर दया कीजिए।” संत पापा ने विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को इस प्रार्थना को कई बार दुहरवाया। यह एक छोटी प्रार्थना है जो धीरे-धीरे हमारी सांसों के साथ पूरे दिन में प्रसारित होती है। वास्तव में हमारी सांसें नहीं रुकती हैं यहाँ तक की उस समय भी जब हमें सोते हैं उसी भांति प्रार्थना हमारे जीवन की सांसें हैं।

प्रार्थना हमारे जीवन का सार

संत पापा ने कहा कि कैसे तब, हम अपनी प्रार्थनामय स्थिति में दृढ़ बने रह सकते हैं? कलीसियाई धर्मशिक्षा आध्यात्मिकता के इतिहास से हमारे लिए सुन्दर उदाहरणों को प्रस्तुत करती है जो प्रार्थना की दृढ़ता में बन रहने की आवश्यकता को दिखलाती है जो हमारी ख्रीस्तयता का सार है।

मठवासी इवाग्रियस पोंटिकस उपयुक्त बात पर बल देते हुए कहते हैं, “हमें कार्य करने की आज्ञा नहीं दी गई है, जागते रहने और उपवास कहने को नहीं कहा गया है, लेकिन हमें निरंतर प्रार्थना करने को कहा गया है”(2742)। इस भांति हम ख्रीस्तीय जीवन में एक उत्साह को पाते हैं जो कभी खत्म नहीं होता है। संत पापा ने कहा कि यह प्राचीन मंदिरों में रखे गये उस अग्नि के समान है जो बिना कुछ किये धधक उठी, जिसे प्रज्वलित रखने का कार्य पुरोहितों का था। हम सभों में भी वह पवित्र आग है जो निरंतर जलती रहती है जिसे कोई बुझा नहीं सकता है। यह सहज नहीं है लेकिन इसे ऐसा ही होना है।

प्रार्थना संगीत की भांति है

संत योहन क्रिसोस्तम जो पुरोहित के रुप में अपने असल जीवन में सजग थे, अपने प्रवचन में कहा, “लोगों के बीच या अकेले में चहल कदमी करते समय या अपनी दुकान में खरीद-बिक्री करते समय यहाँ तक की खाना बनाते समय भी हम उत्साहजनक प्रार्थना कर सकते हैं (2743)। अतः प्रार्थना अपने में एक संगीत भांति है जिसे हम अपने जीवन में माधुर्य अंकित करते हैं। यह हमारे दैनिक जीवन के कार्यों के विपरीत नहीं है यह हमारे छोटे उत्तरदायित्वों और नियुक्तियों को खारिज नहीं करता बल्कि यह स्थल बनाता है जहाँ हमारे हर कार्य की उत्पत्ति, उसमें शांति होती और वे अपने में अर्थपूर्ण होते हैं।

संत पापा ने कहा कि निश्चय ही इन सारे सिद्धातों को अपने में कार्यान्वित करना अपने में सहज नहीं है। एक माता और एक पिता जो हजारों कार्यों में व्यस्त रहते हैं अपने लिए निरंतर प्रार्थना करने हेतु स्थान और समय निकालने में सहज अनुभव नहीं करते हैं। वहीं बच्चे, कार्य, पारिवारिक जीवन, बुजूर्ग माता-पिता... हमें अपने में ऐसा अनुभव होता है कि ये सारी चीजों अपने में कभी खत्म नहीं होगीं। अतः हमारे लिए यह उचित है कि हम ईश्वर, हमारे पिता के बारे में सोचें जो पूरे विश्व की देख-रेख करते हैं, सदैव हमें याद करते हैं। इसलिए हमें हमेशा उन्हें याद करने की आवश्यकता है।

प्रार्थना द्वारा आंतरिक संतुलन

हम इस बात की भी याद कर सकते हैं कि ख्रीस्तीय मठवासीवाद को सदैव एक बड़े सम्मान की दृष्टि से देखा गया है इसलिए नहीं कि यह अपने लिए और दूसरे कि लिए एक नैतिकता को प्रस्तुत करता है वरन एक प्रकार के आंतरिक संतुलन के लिए जिसे यह अपने में धारण करता है - मानव का अपने लिए एक अमूर्त चाह का विकास करना उसे सच्चाई से दूर कर देता है। कार्य हमें सच्चाई से जुड़े रहने में मदद करता है। प्रार्थना में शामिल भिक्षु के हाथ फावड़े और कुदाल चलाने वालों के घट्टा को सहन करते हैं। संत लुकस के सुसमाचार में येसु का मार्था को यह कहना कि केवल एक ही बात अर्थात ईश्वर के वचनों को सुनना जरुरी है, अपने इस कथन के द्वारा उनकी सेवा के अन्य कार्यों को खारिज नहीं करते हैं।

संत पापा ने कहा कि मानव का जीवन द्विचर है। हमारा शरीर सममिती है, हमारी दो बाहें, दो आंखें, दो हाथ... इत्यादि हैं। उसी भांति कार्य और प्रार्थना दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। प्रार्थना जो सारी चीजों की “प्राणवायु” है, यह सजीव कार्य के पृष्ठभूमि में रहती है जो बहुधा अपने में दिखाई नहीं देती है। हम मानव अपने कार्यों में इतना मशगूल हैं कि हमें प्रार्थना हेतु समय नहीं मिलता है।

प्रार्थना और जीवन एक

वहीं प्रार्थना जो जीवन से तटस्थ है अपने में स्वस्थ्य नहीं है। प्रार्थना जो अपने को ठोस जीवन के पृथ्क कर लेता है अध्यात्मवाद या कर्मकांड बन कर रह जाता है। हम येसु ख्रीस्त की याद करें तबोर पर्वत पर अपनी महिमा प्रकट करने के बाद वे उसी स्थिति पर बने नहीं रहे अपितु वे पर्वत से उतर कर अपने दैनिक जीवन में आये। क्योंकि उस अनुभव को शिष्यों के हृदयों में विश्वास रुपी ज्योति और शक्ति के रुप में बनी रहनी थी। इस तरह, ईश्वर के साथ व्यतीत समय हमारे विश्वास को पुनर्जीवित करता है, जो व्यावहारिकता में सहायक होता और विश्वास विराम के बिना प्रार्थना में बदल जाती है। विश्वास, जीवन और प्रार्थना के इस चक्र में हम अपने ख्रीस्तीय जीवन की ज्योति को बनाये रखते हैं जिसकी चाह ईश्वर हम सबों से रखते हैं।

संत पापा फ्रांसिस ने अंत में पुनः उस छोटी प्रार्थना को दुहारने का आग्रह किया। “प्रभु येसु, ईश्वर के पुत्र, मुझ पापी पर दया कर”। इस प्रार्थना को निरंतर दुहराना हमें येसु से संयुक्त होने में मदद करेगा।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्रांसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की ओर सभों के संग हे पिता हमारे प्रार्थना का पाठ करते हुए सभों को अपने प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया। 

आमदर्शन समारोह पर संत पापा की धर्मशिक्षा

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09 June 2021, 15:27

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