संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस  

देवदूत प्रार्थना में पोप ˸ ईश्वर के प्रति निष्ठा का अर्थ है सेवा

रविवार को देवदूत प्रार्थना के दौरान संत पापा फ्रांसिस ने सेवा पर चिंतन किया और कहा कि जब हम दूसरों की सेवा करते हैं तब हम ईश्वर का आलिंगन पाते हैं।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, रविवार 19 सितम्बर 2021 (रेई)- वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 19 सितम्बर को संत पापा फ्रांसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया जिसके पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, प्रिये भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

आज की धर्मविधि का सुसमाचार पाठ (मार.9,30-37) बतलाता है कि येरूसालेम जाने की लम्बी यात्रा में येसु के शिष्य विवाद कर रहे थे कि "उनमें कौन सबसे बड़ा है।" अतः येसु उनसे एक कठोर वाक्य बोलते हैं जो आज हमारे लिए भी लागू होता है। "जो  पहला होना चाहता है वह सब से पिछला और सबका सेवक बने।" (पद 35) चौंकाने वाले इस वाक्य के द्वारा प्रभु इसे पलट देते हैं। वे वास्तव में जो मायने रखता है उसके मानदंड को उलट देते हैं। एक व्यक्ति का मूल्य इस पर निर्भर नहीं करता कि उनकी भूमिका क्या है, क्या नौकरी करता है, उसका कितना पैसा बैंक में है, जी नहीं। ईश्वर की नजरों में महानता एवं सफलता को दूसरे नाप से नापा जाता है। इसे सेवा के नाप से नापा जाता है। किसी के पास क्या है उसे नहीं, बल्कि वह क्या देता है उसे। संत पापा ने विश्वासियों से कहा, "क्या आप पहला होना चाहते हैं? तो सेवा करें।" यही रास्ता है।

संत पापा ने सुसमाचार में सेवा के अर्थ पर प्रकाश डालते हुए कहा, "आज "सेवा" शब्द थोड़ा साधारण, उपयोग से घिसा हुआ प्रतीत होता है किन्तु सुसमाचार में इसका अर्थ महत्वपूर्ण एवं ठोस है। सेवा करना शिष्टाचार का भाव नहीं है: इसका अर्थ है येसु के समान करना, जिन्होंने थोड़े शब्दों में अपने जीवन का सार प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा, "वे सेवा कराने नहीं बल्कि सेवा करने आये"। (मार.10,45) अतः यदि हम येसु की सेवा करना चाहते हैं, तो हमें उसी रास्ते पर चलना पड़ेगा जिसमें वे चले ˸ सेवा का रास्ता। प्रभु के प्रति हमारी निष्ठा सेवा के लिए हमारी तत्परता पर निर्भर करता है। हम जानते हैं कि इसके लिए कीमत चुकानी पड़ती है क्योंकि यह क्रूस के समान है। किन्तु जैसे-जैसे दूसरों के प्रति हमारी चिंता और उदारता बढ़ती है हम अंदर से उतना ही स्वतंत्र, येसु के समान होते जाते हैं। हम जितना अधिक सेवा करते हैं उतना ही अधिक ईश्वर की उपस्थिति का भी एहसास करते हैं। सबसे बढ़कर, यदि हम उन लोगों की सेवा करते हैं जो बदले में कुछ नहीं दे सकते, गरीब लोगों की कठिनाइयों एवं जरूरतों में उनके प्रति सहानुभूति रखते हैं तब हम ईश्वर के प्रेम की खोज करते एवं उसका आलिंगन पाते हैं।  

सेवा के महत्व पर प्रकाश डालने के बाद इसकी व्याख्या करने के लिए, येसु कुछ करते हैं। वे एक बालक को लेते और उसे शिष्यों के बीच रखते हैं, उनके केंद्र में, सबसे महत्वपूर्ण स्थान में (36) सुसमाचार में बच्चा निर्दोष होने का अधिक नहीं बल्कि छोटे होने का प्रतीक है। बच्चे दूसरों पर, वयस्कों पर निर्भर करते हैं। येसु उन बच्चों का आलिंगन करते और कहते हैं कि जो इन छोटे से छोटे लोगों का स्वागत करते हैं (37) जिन्हें सेवा पाना है वे लोग हैं जो बदले में कुछ नहीं दे सकते। हाशिये पर जीवनयापन करनेवाले लोगों, और बहिष्कृत लोगों की मदद कर हम येसु का स्वागत करते हैं क्योंकि वे उनमें हैं और जब हम छोटे एवं गरीब लोगों की सेवा करते हैं हम भी ईश्वर के स्नेहपूर्ण आलिंगन को प्राप्त करते हैं।  

विश्वासियों को सम्बोधित कर संत पापा ने कहा, "प्यारे भाइयो एवं बहनो, सुसमाचार से प्रेरित होकर हम अपने आप से पूछें। मैं जो येसु का अनुसरण करता हूँ क्या मैं बहिष्कृत व्यक्ति पर ध्यान देता हूँ? अथवा क्या मैं उन शिष्यों के समान हूँ जो उस दिन अपनी ही खुशी की खोज कर रहे थे। क्या मैं जीवन को दूसरों की कीमत पर अपने लिए जगह बनाने हेतु प्रतिस्पर्धा के रूप में समझता हूँ अथवा क्या मैं मानता हूँ कि पहले स्थान में होने का अर्थ है सेवा करना और ठोस रूप में, क्या मैं अपना समय "छोटे लोगों" के लिए देता हूँ जिनके पास वापस चुकाने के लिए कुछ नहीं है? क्या मैं उन लोगों की चिंता करता हूँ जो बदले में कुछ नहीं दे सकते अथवा क्या अपने रिश्तेदारों एवं मित्रों की चिंता करता हूँ?

धन्य कुँवारी मरियम, प्रभु की दीन सेविका, हमें समझने में मदद दे कि सेवा करना हमें छोटा नहीं बनाता बल्कि बढ़ने में मदद देता है और लेने से बढ़कर देने में खुशी है। (प्रे.च.20,35).

इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

देवदूत प्रार्थना में संत पापा का संदेश

 

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19 September 2021, 15:49