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आप्रवासी नाबालिगों की त्रासदी जो गली के बच्चे बन गये

संयुक्त राष्ट्र ने 20 फरवरी को सामाजिक न्याय के लिए विश्व दिवस घोषित किया है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य है अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गरीबी दूर करने, सभी के लिए सम्मानित काम को बढ़ावा देने, लिंग समानता और सभी के लिए सामाजिक कल्याण एवं न्याय की प्राप्ति में सहयोग देना।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

जिबूटी, शनिवार, 19 फरवरी 2022 (वीएनएस) ˸ 26 नवम्बर 2007 की महासभा में संयुक्त राष्ट्र ने सामाजिक न्याय हेतु विश्व दिवस की घोषणा की थी। विश्व दिवस को ध्यान में रखते हुए कारितास इटली ने कुछ आंकड़ों एवं गवाहों के साथ एक दस्तावेज प्रकाशित किया है जिसका शीर्षक है, "गली का जीवन, अदृश्य नाबालिग ˸ आप्रवासी से भिखारी"। दस्तावेज अफ्रीका की पृष्टभूमि पर खासकर, जिबूटी पर प्रकाश डालता है।

जिबूटी लाल सागर पर एक छोटा देश है जो "शांति के नखलिस्तान" का प्रतिनिधित्व करता है, आप्रवासियों का एक चौराहा है और अफ्रीका से अरब प्रायद्वीप तक फैला हुआ है। अनुमान लगाया गया है कि यहाँ करीब 12 प्रतिशत लोग अवैध आप्रवासी है और करीब 1,50,000 आप्रवासी यहाँ से हर साल पार होते हैं। उनमें से कई बिना साथी के नाबालिग होते हैं जो बिना संभावनाओं के जीवन की परिस्थिति से मजबूर, इस थकानदेह एवं खतरनाक रास्ते को चुनते हैं और जिबूटी की सड़कों पर आ जाते हैं। वे हरेक दिन जीने खाने के लिए काम करते एवं अत्यन्त गरीबी में जीते तथा समुद्र के तट पर सोने के लिए मजबूर होते हैं।

जिबूटी के धर्माध्यक्ष तथा मोगादिशू के प्रेरितिक प्रशासक जोर्ज बेर्तिन ने कहा है कि गली में जीनेवाले ये बच्चे एवं अन्य लोग दुर्बल एवं छिपे हुए हैं जिनके लिए जिबूटी में कलीसिया के मानव विकास कार्य को किया जाना चाहिए।   

दस्तावेज इस वास्तविकता में एक अंतर्दृष्टि प्रदान करता है, इन लोगों की कहानियों और उन विशिष्टताओं को उजागर करता है जिनके साथ कलीसिया, किसी भी धर्मांतरण से मुक्त, मानव गरिमा को बढ़ावा देने के लिए एक आम प्रतिबद्धता हेतु इस्लामी संस्कृति और धर्म के समुदायों एवं संस्थानों के साथ काम करती है।

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19 February 2022, 12:54