संत पापाः बुडापेस्ट एवं स्लोवाकिया, प्रार्थना की तीर्थयात्रा

संत पापाप फ्रांसिस ने अपने मंगलवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर विश्वासियों और तीर्थयात्रियों के संग बुडापेस्ट और स्लोवाकिया की अपनी प्रार्थनामय तीर्थ के अनुभव साझा किये।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 22 सितम्बर 2021 (रेई)- संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन के पौल षष्ठम सभागार में उपस्थित सभी लोगों का अभिवादन करते हुए कहा, भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

आज मैं आप सभी से अपनी प्रेरितिक यात्रा के बारे चर्चा करना चाहूँगा जिसको मैंने बुडापेस्ट एवं स्लोवाकिया में पूरा किया है और जो ठीक एक सप्ताह पहले, पिछले बुधवार को समाप्त हुआ। यह एक प्रार्थना की तीर्थयात्रा थी, एक जड़ों की तीर्थयात्रा थी, एक आशा की तीर्थयात्रा थी।

इसका पहला चरण बुडापेस्ट में, अंतरराष्ट्रीय यूखरीस्तीय कॉन्ग्रेस का समापन मिस्सा था, जिसको महामारी के कारण ठीक एक साल के लिए स्थगित कर दिया गया था। इस समारोह में सहभागी होना बहुत अच्छा रहा। ईश्वर की पवित्र प्रजा, प्रभु के दिन, यूखरिस्त के सामने एकत्रित हुए जहाँ वे लगातार सृष्ट और नवीकृत होते हैं। वे क्रूस के द्वारा आलिंगन किये गये जो वेदी के ऊपर स्थापित था और यूखरिस्त द्वारा एक ही दिशा निर्देशित कर रहा था, अर्थात् विनम्र और निःस्वार्थ प्रेम का मार्ग, सभी के प्रति उदार और सम्मानपूर्ण प्रेम, विश्वास जो दुनियादारी से शुद्ध करता एवं अनिवार्यता की ओर ले चलता है।

स्लोवाकिया, प्रार्थना का तीर्थ

और प्रार्थना की तीर्थयात्रा का समापन स्लोवाकिया में दुःखों की माता मरियम के पर्व के साथ हुआ। यह श्शतिन में सात दुःखों की माता मरियम के तीर्थ पर, माता मरियम के पर्व दिवस पर सम्पन्न हुआ जो एक राष्ट्रीय धार्मिक उत्सव भी है। इस तरह यूरोप के हृदय में यह मेरी प्रार्थना की तीर्थयात्रा थी, जो आराधना से शुरू होकर लोकप्रिय भक्ति से समाप्त हुई। ईश प्रजा सबसे पहले प्रार्थना के लिए बुलायी जाती है; आराधना, प्रार्थना, तीर्थ, विस्मय और प्रायश्चित करने एवं इसके द्वारा शांति और आनन्द को महसूस करने के लिए जिसको प्रभु हमें प्रदान करते हैं। यूरोपीय महाद्वीप में इसका खास महत्व है जहाँ ईश्वर की उपस्थिति को हम उपभोक्तावाद के कारण गौण होता पाते हैं– यह एक अजीब किन्तु सच्ची बात है, जो पुरानी और नई विचारधारा के मिश्रण का फल है। यह हमें प्रभु और ईश्वर के साथ संबंध से दूर करता है। इस पृष्टभूमि में भी चंगाई का प्रत्युत्तर प्रार्थना, साक्ष्य और विनम्र प्रेम से आता है। विनम्र प्रेम ख्रीस्तीय सेवा के लिए जरूरी है।

स्मृति के बिना प्रार्थना नहीं

संत पापा ने कहा, “ईश्वर की पवित्र प्रजा से मुलाकात करते हुए मैंने यही देखा कि एक निष्ठावान प्रजा जिसने नास्तिकों से अत्याचार सहा। मैंने उसे हमारे यहूदी भाई-बहनों के चेहरों में भी देखा जिनके साथ हमने शोअह की याद की। क्योंकि स्मृति के बिना प्रार्थना नहीं होती। इसका अर्थ क्या है? जब हम प्रार्थना करते हैं, तो हमें अपने जीवन की, दूसरों के जीवन की और बहुत सारे लोगों के जीवन की याद करते हैं, जो शहर में हमारे साथ रहते हैं, उन लोगों की कहानी जिसे स्लोवाकिया के धर्माध्यक्ष ने स्वागत भाषण में बतलाया, “मैं कम्यूनिस्ट लोगों से छिपने के लिए एक ट्रम कंडक्टर बना। यह अच्छी बात है, अधिनायकत्व और अत्याचार के समय में धर्माध्यक्ष एक कंडक्टर बन गये थे। इस तरह उन्होंने चुपचाप धर्माध्यक्ष का अपना काम किया और किसी ने इसे नहीं जाना। इस तरह अत्याचार में ....हम याद रखें, स्मृति के बिना प्रार्थना नहीं है। प्रार्थना, एक व्यक्ति के जीवन की याद है, दूसरे लोगों के जीवन की, इतिहास की याद है, हम इसे याद रखें- यह अच्छा है और प्रार्थना करने में मदद देता है।

इस प्रेरितिक यात्रा का दूसरा पहलू तीर्थयात्री के रुप में जड़ों तक जाना था। बुडापेस्ट और बतिस्लावा में अपने धर्माध्यक्षगणों से मिलन ने मुझे प्रत्यक्ष रुप में विश्वास की कृतज्ञतापूर्ण स्मृति और ख्रीस्तीय जीवन से मेल कराया जिसकी झलक मुझे कार्डिनलों मिइंदेस्जेंटी और कोरेको तथा मन्यवर धर्माध्यक्ष पावेल पीटर गोदेश के विश्वास में देखने को मिली। विश्वास की जड़ें 9वीं शताब्दी की ओर जाती हैं जहां हम संत सिरिल और संत मेथोडियुस द्वारा निरंतर सुसमाचार प्रचार के कार्यों को देखते हैं। विश्वास की मजबूत जड़ों का अनुभव मैंने बेजैनटाईन रीति की दिव्य धर्मविधि में सहभागिता के दौरान प्रेशोभ में, प्रवित्र क्रूस के पर्व दिवस में की। धर्मविधि के गीतों में मैंने विश्वासियों के हृदय को झंकृति होते हुए अनुभव किया जो विश्वास के कारण असंख्य दुःखों से तपा हुआ था।

जड़ों को मजबूत बनाये रखें

कई अवसरों पर मैंने विश्वास की इन जीवित जड़ों को मजबूत बनाये रखने की आवश्यकता पर जोर दिया, जो पवित्र आत्मा से पोषित किया जाता है जिसे अपने में बनाये रखने की जरुरत है, संग्रहालय में प्रदर्शनी की भांति नहीं, आदर्शों के रुप में नहीं और न ही प्रतिष्ठा तथा शक्ति के लिए शोषित वरन अपनी पहचान को मजबूत बनाये रखने के लिए। यदि ऐसा होता है तो यह उनके साथ एक छल होगा और हम उन्हें अपने में निर्जीव बना देंगे। संत सिरिल और संत मेथोडियुस हमारे लिए स्मृति चिन्ह नहीं अपितु वे अनुकरणीय आदर्श हैं, सुसमाचार प्रचार के विशेषज्ञ जिनके द्वारा हम सुसमाचार प्रचार के कार्यों और तरीकों को सीख सकते हैं साथ ही समाज के प्रति उनकी निष्ठा जिसके कारण यूरोप के क्रेन्दू-बिन्दु में, मैं उन्हें यूरोपीय संघों के पितामह स्वरुप देखता हूँ। उनके द्वारा विश्वासी की जड़ों को समझना और जीना भविष्य में उनके द्वारा आशा की शखाओं को विकसित होने और बढ़ने का एक आश्वसन देता है। संत पापा ने कहा कि हमारी भी अपनी-अपनी जड़ें हैं। क्या हम हम अपनी जड़ों को याद करते हैंॽ क्या हम अपने माता-पिता, दादा-दादियों की याद करते हैंॽ क्या हम अपने दादा-दादियों से सुयंक्त हैं जो हमारे लिए प्रेम के स्रोत हैंॽ हम कहेंगे कि वे तो बूढ़े हो गये हैं...नहीं हमें बढ़ने और विकासित होने हेतु उनके पास जाने की आवश्यकता है। हमें उन जड़ों में आश्रित होने को नहीं कहा जाता बल्कि उनसे जुड़े रहते हुए अपने को पोषित करना और आगे बढ़ना है। उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि आप इस सुन्दर कथन को याद रखें कि पौधे का विकास उनकी जड़ों पर निर्भर करता है। हम उतना ही विकसित होंगे जितना हम अपनी जड़ों से जुड़ें रहेंगे क्योंकि हमारी लिए शक्ति वहीं से आती है। वहीं यदि हम जड़ों को काट देते, सभी चीजें नई, नये आदर्श होते तो यह हमें कहीं का नहीं रख छोड़ता है यह हमें विकसित नहीं करता, हमारा अंत बुरा होता है।

आशा का तीर्थ

संत पापा ने अपनी यात्रा के तीसरे पहलू की चर्चा करते हुए कहा कि यह आशा का एक तीर्थ था। कोशेक के खेल मैदान में युवाओं के संग अपनी अविस्मरणीय मुलाकात में मैंने उनकी आंखों में बहृद आशा को देखा। दंपतियों को उनके बच्चों के संग देखा संत पापा ने उन्हें भविष्य में आशा की निशानी कही। महामारी के इस विशेष समय में यह मिलन महोत्सव अपने में एक शक्तिशाली और प्रोत्साहन की निशानी थी। उन्होंने युवा दंपत्तियों के प्रति अपनी कृतज्ञता के भाव व्यक्त किये जो अपने बच्चों से साथ वहाँ उपस्थित थे। उन्होंने धन्य अन्ना कोलेसारोभा, एक स्लोवाकी लड़की के ठोस और प्रेरितिक साक्ष्य का जिक्र किया जिसने हिंसा के मध्य अपने सम्मान की रक्षा की। यह साक्ष्य आज भी पहले की अपेक्षा अपनी महत्वूर्णतः को व्यक्त करता है जहाँ नारियों के प्रति सभी समाज में हिंसा, एक घाव के रुप में व्याप्त है।

संत पापा ने लोगों में व्याप्त उस आशा का जिक्र किया जहाँ वे शांतिमय तरीके से एक दूसरे के लिए, अपने पड़ोसियों के लिए चिंता के भाव व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने बातिस्लावा में मिश्नरी ऑफ चारिटी धर्मसमाज की धर्म बहनों की याद की जो आश्रयहीन लोगों को आश्रय प्रदान करते हैं। उन्होंने उन्हें नेक धर्मबहनें की संज्ञा देते हुए कहा कि वे सामज के परित्यक्तों को ग्रहण करती हैं, वे प्रार्थना करती और उनकी सेवा करती हैं। वे अधिक प्रार्थना करती और बिना दिखावा किये अधिक सेवा भी करती हैं। वे इस सभ्यता की नायिकाएं हैं। संत पापा ने संत मदर तेरेसा के प्रति कृतज्ञता के भाव व्यक्त करते हुए धर्म समाज की धर्मबहनों के कार्यों के प्रोत्साहन में सभों के साथ मिलकर तालियाँ बजायीं। उन्होंने रोम समुदाय के उन लोगों की याद की जो भ्रातृत्व के मार्ग में चलते हुए छोड़ दिये गये लोगों के लिए कार्य करते हैं।  

“एक साथ” होना एक मार्ग  

संत पापा ने कहा कि इस आशा को मैंने अपनी इस प्रेरितिक यात्रा के दौरान ठोस कार्यों में अभिव्यक्त होते देखा जो शब्द “एक साथ” में व्यक्त होता है। आशा कभी निराश नहीं करती, वहीं आशा कभी अकेली नहीं जाती, यह मिलकर चलती है। बुडापेस्ट और स्लोवाकिया में हम विभिन्न ख्रीस्तीय रीतियों के संग एक हुए, हमारा मिलन विभिन्न ख्रीस्तीय समुदायों से हुआ, हम यहूदी भाई-बहनों से एक हुए, विश्वासियों और दूसरे धर्मों के रुप में हमने अपने को एक पाया, हमने कमजोरों के साथ अपने को एक किया। यही हमारे लिए एक मार्ग है क्योंकि यदि हम एक होते हैं जो आशा में हमारे भविष्य को बने रखता है।

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि इस यात्रा के उपरांत मैं अपने हृदय में एक बृहृद कृतज्ञता के भाव को पाता हूँ। उन्होंने हंगरी और स्लोवाकिया के राष्ट्रपतियों, धर्माध्यक्षों, नागर अधिकारियों और सभी सहकारी संगठनों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की। उन्होंने स्वयंसेवी दल के लोगों के साथ-साथ उन सभों का धन्यवाद अदा दिया जिन्होंने इस प्रेरितिक यात्रा की सफलता हेतु प्रार्थना की। संत पापा ने इस यात्रा में बोये गये बीज के विकास हेतु प्रार्थना करने का अग्रह करते हुए सभों के संग हे पिता हमारे प्रार्थना का पाठ किया और अंत में सबों को अपने प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

 

 

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बुधवारीय आमदर्शन की एक झलक
22 September 2021, 15:29