जेस्विट पुरोहितों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस जेस्विट पुरोहितों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस  

स्लोवाकिया के जेस्विटों से पोप ˸ ईश प्रजा के करीब रहें

संत पापा ने स्लोवाकिया के जेस्विट पुरोहितों से आग्रह किया है कि वे अपने कार्य में ईश्वर एवं उनकी प्रजा के करीब आयें। स्लोवाकिया की प्रेरितिक यात्रा के दौरान संत पापा फ्रांसिस ने याद दिलाया कि कलीसिया आत्मपरख और प्रार्थना में आगे बढ़ने के लिए बुलायी गयी है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

12 -15 सितम्बर तक अपनी 34वीं प्रेरितिक यात्रा के दौरान संत पापा ने स्लोवाकिया जाने के पूर्व, हंगरी में 52 अंतरराष्ट्रीय यूखरीस्तीय सम्मेलन का समापन ख्रीस्तयाग से किया।  

स्लोवाकिया में संत पापा रविवार 12 सितम्बर को 53 जेसुइटों के एक दल से मिले। स्लोवाक जेसुइटों को उनके संदेश की आधिकारिक प्रतिलेख मंगलवार को जेसुइट समीक्षा "ला चिविल्ता कथोलिका" द्वारा जारी किया गया है।   

स्लोवाकिया के जेस्विट प्रोविंशल द्वारा स्वागत के थोड़े शब्दों के बाद संत पापा ने दल के साथ वार्तालाप किया।  

पुरोहितों ने संत पापा से कई विषयों पर सवाल किये ˸ जुलाई में सर्जरी के बाद संत पापा के स्वास्थ्य, स्लोवाकिया में येसु समाजियों के मिशन तथा देश में कलीसिया की चुनौतियाँ।  

ईश्वर एवं उनकी प्रजा के प्रति सामीप्य

पोप फ्रांसिस ने जेस्विट पुरोहितों से आग्रह किया कि वे स्लोवाकिया में ईश्वर और उनकी प्रजा की सेवा करने की प्रेरितिक को सामीप्य शब्द से प्रेरित होकर करें।

पहला, "ईश्वर के साथ सामीप्य।" संत पापा ने प्रार्थना के महत्व पर जोर दिया- न केवल औपचारिक प्रार्थना जो न केवल हृदय का स्पर्श करता – बल्कि ईश्वर के लिए संघर्ष करना और उनके करीब आना। उन्होंने प्रार्थना करने में बहुत व्यस्त होने के प्रलोभन में न पड़ने की चेतावनी भी दी। संत पापा ने उन्हें आपस में एक-दूसरे के करीब रहने और उदार प्रेम पर जोर दिया जो सामुदायिक जीवन के निर्माण में मदद देता है।  

संत पापा ने उन्हें धर्माध्यक्ष के करीब, साथ ही साथ पोप के करीब एवं ईश प्रजा के करीब रहने का प्रोत्साहन दिया। उन्हें येसु समाज की 32वें महासभा में संत पापा पौल छटवें के संदेश पर चिंतन करने की सलाह दी तथा आग्रह किया कि वे गाँवों और चौराहों में जाएँ जबकि अपने प्रोविंशल के आज्ञापालन की भावना को भी बनायें रखें।

उन्होंने कहा कि ईश्वर की प्रजा के करीब रहना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमें ढांचे में डालता है, हमें यह कभी नहीं भूलने में मदद देता है कि हम कहाँ से आये हैं। हालांकि उन्होंने चेतावनी दी कि यदि हम अपने को अलग करते एवं ईथर सार्वभौमिकता की ओर बढ़ाते हैं तब हम अपने मूल को भूल जाते हैं। हमारी जड़ें कलीसिया में हैं जो ईश्वर की प्रजा है।  

वे आज येसु समाज को किस तरह देखते हैं इस सवाल के उत्तर में पोप ने आत्मपरख एवं प्रार्थना के महत्व पर जोर दिया, विशेषकर, उत्साह की कमी एवं एकाकी के समय में। संत पापा ने धर्मसंघ के संस्थापक संत इग्नासियुस लोयोला की आध्यात्मिक साधना को एक सच्चा खजाना कहा जिसमें आत्मपरख के नियम निहित हैं जिन्हें बेहतर रूप से जानने की जरूरत हैं।

कलीसिया की चुनौतियाँ

संत पापा ने सुरक्षा की खोज में पीछे लौटने के प्रलोभन के सामने कलीसिया की चुनौतियों के बारे कहा कि यह वास्तव में विश्वव्यापी समस्या नहीं है बल्कि कुछ देशों की कुछ कलीसियाओं की समस्या है।   

उन्होंने बतलाया कि एक ऐसी दुनिया में जो निर्भरता और आभासीता से वातानुकूलित है, हमें स्वतंत्र करने के लिए भयभीत करता है।

संत पापा ने रूढिवादिता एवं याजकवाद में रास्ता खोजने के खिलाफ चेतावनी दी। उन्होंने कहा, "आज मैं मानता हूँ कि प्रभु धर्मसमाज से मांग कर रहा है कि वह प्रार्थना एवं आत्मपरख के द्वारा स्वतंत्र बने। सुसमाचार की स्वतंत्रता को लाना सुन्दर बात है।  

हालांकि, उन्होंने नासमझी के प्रति आगाह किया और जोर देकर कहा कि हमें चौकस और सतर्क रहने की जरूरत है। उसने कहा कि पीछे मुड़ना सही तरीका नहीं है, बल्कि “समझ और आज्ञाकारिता से” आगे बढ़ना है।

स्लोवाकिया की कलीसिया में चुनौती पर दूसरे सवाल के उत्तर में संत पापा ने जोर देकर कहा कि न्याय करने से पहले सच्ची वार्ता की जरूरत है। उन्होंने कहा कि वे पाप के कारण व्यक्तिगत रूप से हमले और अपमान के योग्य हो सकते हैं किन्तु कलीसिया इसके योग्य नहीं हो सकती क्योंकि यह शैतान का कार्य है।

शरणार्थियों पर

संत पापा ने जेस्विट पुरोहितों के साथ वार्तालाप में विश्व में आप्रवासियों और शऱणार्थियों के कारण बढ़ती वैश्विक चिंता पर जवाब दिया। उन्होंने दुहराया कि आप्रवासियों का स्वागत, सुरक्षा, प्रोत्साहन और एकीकरण किया जाना चाहिए, इस बात को ध्यान में रखते हुए कि मेजबान देश के पास कितनी क्षमता है। आप्रवासियों को एकीकृत नहीं करना उन्हें दयनीय स्थिति में छोड़ना है। यह उनका स्वागत नहीं करने के बराबर है।  

संत पापा ने स्लोवाकिया के पुरोहितों के साथ मुलाकात के अंत में इस बात के महत्व पर जोर दिया कि उनके कारणों और परिणामों को समझने के लिए आप्रवासियों की परिस्थिति पर अध्ययन किया जाए, विशेष रूप से भू-राजनीतिक कारकों के कारण पलायन की स्थिति पर।

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

21 September 2021, 17:28