यूरोपीय संघ के धर्माध्यक्षों से पोप, शांति को बढ़ाने के लिए कार्य करें
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 23 मार्च 2023 (रेई): संत पापा ने बृहस्पतिवार को यूरोपीय संघ के काथलिक धर्माध्यक्षीय आयोग की आमसभा में भाग ले रहे धर्माध्यक्षों से वाटिकन में मुलाकात की जहाँ उन्होंने दो मुख्य बिन्दुओं पर उनका ध्यान आकृष्ट किया।
उन्होंने यूरोप के संस्थापकों के सपनों की याद दिलाते हुए कहा कि वे “एकता के सपने” एवं “शांति के सपने” देखते थे।
एकता के सपने
एकता के सपने पर प्रकाश डालते हुए संत पापा ने कहा कि यह एकरूपता अथवा सजातीय एकता नहीं है बल्कि इसके विपरीत यह एक ऐसी एकता है जो लोगों की विलक्षणता, विशेषता एवं उनकी संस्कृति को “सम्मान एवं महत्व” देती है।
उन्होंने गौर किया कि यूरोप के संस्थापक यूरोप के विभिन्न देशों जैसे- इटली, फ्रांस, जर्मनी, बेल्जियम और लक्ष्मबर्ग के थे किन्तु यूरोप की समृद्धि इसमें है कि वे अलग-अलग सोच और ऐतिहासिक अनुभव लेकर एक साथ आये।
संत पापा ने कहा कि यूरोप का भविष्य तभी बना रह सकता है जब यह एकजुट होगा और अपनी विशेषताओं के साथ अपने आप में सीमित नहीं होगा। विविधता में एकता एक चुनौती है और इस चुनौती को जीता जा सकता है यदि प्रेरणा प्रबल हो, अन्यथा उपकरण और तकनीकी प्रतिमान प्रबल होंगे, जो फलदायक नहीं होते क्योंकि वे लोगों को प्रदीप्त नहीं करते, न ही सार्वजनिक योजना के निर्माण में समाज को जीवन शक्ति प्रदान करते हैं।
संत पापा ने धर्माध्यक्षों को चिंतन हेतु प्रेरित करते हुए कहा कि इस चुनौती में ख्रीस्तीय प्रेरणा की भूमिका क्या है? उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में कलीसिया का पहला कर्तव्य है लोगों को तैयार करना, समय के चिन्ह को पढ़ते हुए आज के इतिहास में यूरोपीय परियोजना की व्याख्या करना।
शांति का सपना
यूरोप के संस्थापकों के दूसरे सपने को साकार किये जाने की आवश्यकता बतलाते हुए संत पापा ने कहा कि आज के इतिहास में लोगों को एकता के सपने से प्रेरित होकर शांति की सेवा में समर्पित होना है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप ने इतिहास में लम्बी अवधि तक शांति महसूस किया हालांकि दुनिया में कई युद्ध जारी हैं। हाल के वर्षों में जारी युद्ध जिनको उन्होंने तृतीया विश्वयुद्ध कहा, “यूक्रेन में युद्ध सबसे निकट है और इसने पूरे यूरोप की शांति को झकझोर दिया है।” पड़ोस के देशों ने यूक्रेन के शरणार्थियों का स्वागत किया है और वहाँ के लोगों के प्रति एकात्मकता व्यक्त की है लेकिन “शांति के लिए एक संशक्त प्रतिबद्धता की जरूरत है।”
संत पापा ने गौर किया कि यह एक जटिल चुनौती है क्योंकि यूरोपीय संघ के देश कई गठबंधनों, हितों और रणनीतियों से जुड़े हुए हैं और उन्हें एक परियोजना में एक साथ लाना कठिन है। किन्तु एक सिद्धांत जिसको सभी साझा कर सकते हैं, वह है कि युद्ध को तनाव का समाधान नहीं माना जा सकता। यदि यूरोपीय देश एक सिद्धांत पर नहीं चलते हैं तो वे अपने असली सपने से भटक चुके हैं। दूसरी ओर यदि वे इस सिद्धांत पर चलते हैं तो उन्हें इस ऐतिहासिक परिस्थिति की मांग पूरी करने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए, क्योंकि “युद्ध राजनीति एवं मानवता की विफलता है।”
शांति की इस चुनौती के सामने संत पापा ने धर्माध्यक्षों से कहा कि उन्हें अपना सहयोग देना चाहिए। “आप स्वभाव से यूरोप की कलीसियाओं और संघ की संस्थाओं के बीच एक "सेतु" हैं। आप मिशन द्वारा संबंधों, मुलाकातों एवं वार्ता का निर्माण करनेवाले हैं। जो पहले ही शांति के लिए कार्य कर रही है। किन्तु काफी नहीं है।”
“इस निर्माण स्थल में वास्तुकारों और शिल्पकारों दोनों की आवश्यकता होती है; असली शांतिदूत को वास्तुकार और शिल्पकार दोनों होना चाहिए।”
अंत में, संत पापा ने यूरोपीय संघ के आयोग के धर्माध्यक्षों के प्रयासों के लिए धन्यवाद देते हुए प्रोत्साहन दिया कि वे अपने कार्यों को जारी रखें।
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