संत पापाः भ्रातृत्व बिना जीवन असंभव
वाटिकन सिटी
संत पापा लियो ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह हेतु एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।
येसु ख्रीस्त की मृत्यु और पुनरूत्थान पर विश्वास करते हुए पास्का की आध्यात्मिकता को जीना हमारे जीवन को आशा और साहस से भर देता है। यह विशेष रूप से हमें प्रेम और भातृत्वमय जीवन को अपने में पोषित करने हेतु मदद करता है जो निसंदेह ही आज समकालीन मानवता की एक बड़ी चुनौतियों में से एक है जैसे संत पापा फ्रांसिस ने इसे स्पष्ट रुप से देखा।
भातृत्व की उत्तप्ति
संत पापा ने कहा कि भातृत्व की भावना का उद्भव मानवता की गहराई से होती है। हम अपने में संबंध स्थापित करने के योग्य होते हैं यदि हम चाहे, तो हम अपने बीच में सच्चा संबंध स्थापित कर सकते हैं। संबंधों के बिना, जो हमारे जीवन को शुरू से ही आधार और हमें समृद्धि प्रदान करता है, हम अपने में जीवित नहीं रह सकते हैं, हम विकास या शिक्षित नहीं हो सकते हैं। वे अपने में कई तरह के हैं, जिसे हम विभिन्न रूपों और गहराई में पाते हैं। लेकिन यह निश्चित है कि हमारी मानवता हमारे एक साथ रहने और जीवन यापन करने में अपनी पूर्णत को प्राप्त करती है, जब हम अपने ईद्गिर्द रहने वालों के बीच में औपचारिक नहीं बल्कि सच्ची मानवता का अनुभव करते हैं। यदि हम अपने में बंद होकर रह जाते तो हम बीमार और अकेलपन में होने के जोखिम में पड़ जाते हैं, और हम एक ऐसे अहंकार का शिकार हो जाते जो दूसरों को अपने स्वार्थ के लिए उपयोग करता है। इस भांति हम अपने को सच्चे रूप में उन्हें देने के बदले सिर्फ दूसरों का उपयोग करते हैं।
हम उद्गम येसु की ओर जायें
हम इस बात से भली भांति वाकिफ हैं कि भातृत्व को आज हम यूं ही सहज नहीं ले सकते हैं, यह हमारे लिए सुलभ हासिल नहीं होती है। आज हम बहुत से युद्धों, लड़ाईयों को दुनिया में देखते हैं, सामाजिक तनाव और घृणा की भावना जो भ्रातृत्व के विपरीत है। यद्यपि भ्रातृत्व अपने में एक सुन्दरता नहीं बल्कि असंभव सपना है, यह कुछ भ्रमित लोगों की इच्छा नहीं है। लेकिन हमें उस छाया पर विजयी होना है जो इसे भयभीत करती है, हमें इसके उद्गम की ओर जाने की जरुरत है। उससे भी बढ़कर हमें उनसे ज्योति और शक्ति पाने की जरूरत है केवल जो हमें शत्रुता के विष से मुक्ति प्रदान करते हैं।
संत पापा लियो ने कहा कि “भ्रातृत्व” शब्द एक अति प्राचीन जड़ से आती है जिसका अर्थ है चिंता करना, हृदय में होना, समर्थन करना और बनाये रखना। हर व्यक्ति के लिए इसको लागू करना अपने में एक अपील को, एक निवेदन को व्यक्त करता है। बहुधा हम यह सोचते हैं कि एक भाई, एक बहन की भूमिका एक रिस्ते को संदर्भित करता है, जहाँ हम अपने को एक-दूसरे से जुड़ा, एक ही परिवार से संबंधित, एक ही परिवार के अंग स्वरुप पाते हैं। वास्तव में, हम इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि असहमति, विभाजन और कभी-कभी घृणा हमारे संबंध को न केवल अपरिचितों की भांति बल्कि संबंधियों के बीच आपसी संबंधों को नष्ट कर देती है।
संत अस्सीसी के संबोधन का सार
यह हमारे लिए आज के परिवेश में पहले से अधिक इस बात की आवश्यकता को व्यक्त करती है कि हम अस्सीसी के संत फ्रांसिस के अभिवादन पर चिंतन करें जिसे वे सबके लिए, चाहे वे किसी भी पृष्टभूमि, संस्कृति, धार्मिक और धर्मसिद्धांत के क्यों न हो, व्यक्त करते हैं। ओमनेस फ्रातेस के संबोधन द्वारा संत ने सारे मानव को एक स्तर पर रखा, खासकर इसके द्वारा उन्होंने सभों को एक समान सम्मान, वार्ता, स्वागत और मुक्ति के भागीदार स्वरुप देखा। संत पापा फ्रांसिस ने अस्सीसी के दरिद्र की इन बातों की महत्वपूर्णतः को आठ सौ सालों के बाद पुनः अपने विश्व पत्र फ्रतेल्ली तूत्ती में घोषित किया।
ख्रीस्तीयता का सार
वह तूत्ती, हर कोई, संत पापा फ्रांसिस के लिए एक वैश्विक भ्रातृत्व की निशानी को व्यक्त करती है जहाँ हम सबका स्वागत होता पाते हैं, जो ख्रीस्तीयता की एक विशेषता को व्यक्त करती है, जो शुरू से ही सुसमाचार प्रचार का अंग रहा है, जहाँ हम किसी का परित्याग किये बिना, सभी को मुक्ति प्राप्ति हेतु बुलाया जाता पाते हैं। यह भ्रातृत्व येसु की आज्ञा में आधारित है जो अपने में नया है जिसे उन्होंने स्वयं पूरा किया, जिन्होंने पिता की दिव्य इच्छा की पूर्णतः में हमें प्रेम किया और अपने को हमारे लिए दे दिया, जिसके लिए हम कृतज्ञता के भाव प्रकट करते हैं। ईश्वरीय संतान के रुप में और येसु ख्रीस्त में सच्चे भाइयो और बहनों के रूप में हम इस भांति एक दूसरे को प्रेम करने और दूसरों के लिए अपना जीवन देने को बुलाये जाते हैं।
संत पापा ने कहा कि येसु ने हमें अंतिम क्षणओं तक प्रेम किया जैसे कि संत योहन का सुसमाचार कहता है। दुःखभोग के निकट आने पर स्वामी अपने में इस बात को भली-भांति जानते हैं कि उनके ऐतिहासिक समय का अंत होने वाला है। वे होने वाली घटनाओं से भयभीत हो जाते हैं। वे अपने में घोर पीड़ा और परित्याग किये जाने का अनुभव करते हैं। वहीं उनका पुनरूत्थान एक नये इतिहास की शुरूआत है। और शिष्य, एक साथ इतना समय बिताने के बाद, पूरी तरह से भाई-बहन बन जाते हैं, न केवल तब जब वे येसु की मृत्यु के दर्द को सहते हैं, बल्कि उससे भी बढ़कर, जब वे उन्हें पुनर्जीवित के रूप में पहचानते हैं, वे पवित्र आत्मा का उपहार प्राप्त करते हैं और उनके साक्षी बनते हैं।
एक दूसरे की मदद करें
प्रिय भाइयो एवं बहनों, संत पापा लियो ने कहा कि हम कठिनाइयों में एक दूसरे की मदद करें। उन्होंने एक दूसरे को जरुरत की घड़ी में अपना पीठ नहीं दिखलाया, बल्कि एक दूसरे के संग एकता में बने रहते हुए विश्वास और आपसी निर्भरता में रोये और आनंदित हुए। येसु स्वयं हमें यह कहते हुए अपने जीवन में आगे बढ़ने को कहते हैं, “एक दूसरे को प्रेम करो जैसे मैंने तुम्हें प्रेम किया है।” येसु के द्वारा दी गयी भ्रातृत्व की भावना, जो हमारे लिए मर कर जी उठे, हमें स्वार्थ, विभाजन और हठधार्मिता के नाकारत्मक तर्क से मुक्त करती और हममें वास्ताविक बुलाहट को स्थापित करती है जो हमारे दैनिक जीवन को प्रेम और आशा में नवीन बनाता है। पुनर्जीवित येसु हमें अपने संग चलने को मार्ग दिखलाते हैं, जहाँ हम अपने को एक दूसरे के लिए भाई-बहनों के रूप में पाते और अनुभव करते हैं।
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