सिनेमा जगत के प्रतिनिधियों को सन्त पापा लियो का सम्बोधन
वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, शनिवार, 15 नवम्बर 2025 (रेई, वाटिकन रेडियो): वाटिकन में शनिवार को सन्त पापा लियो 14 वें ने सिनेमा जगत के प्रतिनिधियों का अभिवादन कर उन्हें सम्बोधित किया। उन्होंने कहा कि सिनेमा के आविष्कार को 100 वर्ष से अधिक बीत गये हैं तथापि अभी भी यह जवान, स्वप्न जैसा और कुछ हद तक बेचैन कला का रूप है।
आगामी 28 दिसम्बर को मनाई जानेवाली सिनेमा की 130 वीं वर्षगाँठ के सन्दर्भ में उन्होंने पेरिस के लूमियर भाइयों का स्मरण किया और कहा कि "आरम्भ ही से सिनेमा मनोरंजन और प्रभावित करने के लिए डिज़ाइन किया गया प्रकाश और छाया का खेल रहा है। हालांकि, ये दृश्य प्रभाव जल्द ही अधिक गहन वास्तविकताओं को व्यक्त करने में सफल हो गए और अंततः जीवन पर चिंतन करने, उसे समझने, उसकी महानता और नाजुकता को बताने तथा अनंतता की लालसा को चित्रित करने की इच्छा की अभिव्यक्ति बन गए।"
सिनेमा जीवन पर चिन्तन
सिनेमा जगत का प्रतिनिधित्व करने के लिए सन्त पापा ने अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया और कहा कि "सिनेमा एक उत्कृष्टतम अर्थ में लोकप्रिय कला है जो सभी के लिए सुलभ है। यह सचमुच अद्भुत तथ्य है कि जब सिनेमा की जादुई रोशनी अँधेरे को रोशन करती है, तो साथ ही वह आत्मा की आँखों को भी प्रज्वलित करती है।"
सन्त पापा ने कहा, "सिनेमा का एक सबसे मूल्यवान योगदान दर्शकों को अपने जीवन पर विचार करने, अपने अनुभवों की जटिलता को नई आँखों से देखने और दुनिया को ऐसे परखने में मदद करना है मानो पहली बार देख रहे हों। इस तरह दर्शक उस आशा के एक अंश को पुनः खोज लेते हैं जो मानवता के पूर्ण जीवन के लिए आवश्यक है। मुझे इस विचार से सुकून मिलता है कि सिनेमा केवल चलती-फिरती तस्वीरें नहीं हैं; यह आशा को गति प्रदान करता है!"
मानवीयता की ओर उन्मुख
सन्त पापा ने स्मरण दिलाया कि सिनेमा और थिएटर जैसी सांस्कृतिक सुविधाएँ हमारे समुदायों के दिलों की धड़कन हैं क्योंकि ये उन्हें और अधिक मानवीय बनाने में योगदान देती हैं। दुर्भाग्यवश सन्त पापा ने कहा, "आज सिनेमाघरों में चिंताजनक गिरावट आ रही है, कई सिनेमाघर शहरों और मोहल्लों से हटाए जा रहे हैं। उन्होंने सिनेमा जगत के प्रतिनिधियों से आग्रह किया कि वे हार न मानें, बल्कि इस गतिविधि के सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्य की पुष्टि में सहयोग करें।"
इस बात की ओर उन्होंने ध्यान आकर्षित कराया कि एल्गोरिदम का तर्क अक्सर वही दोहराता है जो "चलित होता है", लेकिन "कला संभावनाओं को खोलती है, इसलिये हर चीज़ तुरंत या पूर्वानुमानित नहीं होनी चाहिए। जब धीमेपन का कोई उद्देश्य हो तो उसका बचाव किया जाये, जब मौन बोलता प्रतीत हो तो उसका बचाव किया जाये और जब अंतर भावोत्तेजक हो तो उसका बचाव करें।"
सिनेमा एक मंगलाचरण
सन्त पापा ने कहा कि सुंदरता सिर्फ़ पलायन का ज़रिया नहीं है; उससे भी बढ़कर यह एक आह्वान, एक मंगलाचरण है। उन्होंने कहा कि जब सिनेमा प्रामाणिक होता है तो यह सिर्फ़ सांत्वना नहीं देता बल्कि चुनौती भी देता है। यह हमारे भीतर छिपे सवालों को मुखर करता है और कभी-कभी हमें ऐसे आँसू भी दिला देता है जिन्हें व्यक्त करने की हममें क्षमता नहीं होती।
सिनेमा की गुणवत्ता का स्मरण दिलाकर सन्त पापा ने कहा, "सिनेमा जगत के लोगों की यात्रा किलोमीटरों में नहीं, बल्कि छवियों, शब्दों, भावनाओं, साझा यादों और सामूहिक इच्छाओं में मापी जाती है। वे मानवीय अनुभवों के रहस्य की इस तीर्थयात्रा को एक ऐसी पैनी नज़र से पार करते हैं जो दर्द की गहराइयों में भी सुंदरता को पहचानने तथा हिंसा एवं युद्ध की त्रासदी में आशा को पहचानने में सक्षम होते हैं।"
सिनेमा आशा की कार्यशाला
सिनेमा जगत के लोगों के योगादन की प्रशंसा कर सन्त पापा ने कहा, "कलीसिया प्रकाश और समय, चेहरों और परिदृश्यों, शब्दों और मौन के साथ आपके काम के लिए आपका सम्मान करती है। सन्त पापा पॉल षषट्म ने एक बार कलाकारों से कहा था: "यदि आप सच्ची कला के मित्र हैं, तो आप हमारे मित्र हैं," क्योंकि "जिस दुनिया में हम रहते हैं उसे निराशा में न डूबने के लिए सुंदरता की आवश्यकता है" (सन्त पापा पौल षष्टम, कलाकारों को संबोधन, 8 दिसंबर 1965)। सन्त पापा लियो 14 वें ने कहाः "मैं इस मित्रता को नवीनीकृत करना चाहता हूँ क्योंकि सिनेमा आशा की एक कार्यशाला है, एक ऐसी जगह जहाँ लोग एक बार फिर खुद को और अपने उद्देश्य को पा सकते हैं।"
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