लेबनान में धर्मसंघियों से पोप : विश्वास एक सेवा और जिम्मेदारी हो
वाटिकन न्यूज
लेबनान, सोमवार, 1 दिसंबर 2025 (रेई): लेबनान में अपनी प्रेरितिक यात्रा को आगे बढ़ाते हुए पोप लियो 14वें ने हरिसा स्थित माता मरियम तीर्थस्थल पर लेबनान के धर्माध्यक्षों, पुरोहितों, धर्मसंघियों एवं प्रेरिताई में सहभागी कार्यकर्ताओं से मुलाकात की।
एक पुरोहित, एक प्रेरितिक कार्यकर्ता, एक स्कूल की प्रचार्य और एक जेल के चैपलिन के साक्ष्य सुनने के बाद संत पापा ने उपस्थित सभी लोगों को सम्बोधित कर कहा, प्यारे भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।
इस प्रेरितिक यात्रा के दौरान आप सभी से मुलाकात कर मुझे बड़ी खुशी हो रही है।” प्रेरितिक यात्रा का आदर्शवाक्य है, “धन्य हैं वे, जो मेल कराते हैं!” (मती. 5:9)
उन्होंने कहा, “लेबनान की कलीसिया, अपने अलग-अलग पहलुओं में एकजुट, इन शब्दों की एक मिसाल है, जैसा कि संत जॉन पॉल द्वितीय ने आपके लोगों के लिए बहुत प्यार से कहा था: “आज के लेबनान में आप ही उम्मीद लाने के लिए जिम्मेदार हैं” (लेबनान के नागरिकों के लिए संदेश, 1 मई 1984); और उन्होंने आगे कहा, “जहाँ आप रहते और काम करते हैं, वहाँ भाईचारा का माहौल बनाएँ। बिना किसी दिखावे के, आप दूसरों पर भरोसा करना और रचनात्मक बनना सीखें ताकि माफी और दया की नई जान डालने वाली ताकत जीत सके।”
लेबनान के आध्यात्मिक धरोहर से ताकत
पोप लियो ने कहा, “हमने जो साक्ष्य सुना, हमें बतलाते हैं कि ये शब्द व्यर्थ नहीं थे। असल में, उन्हें अच्छी तरह से अपनाया गया है और उन पर काम किया गया है क्योंकि लेबनान में दया का मेलजोल बना हुआ है।
प्राधिधर्माध्यक्ष के शब्दों में, जिनका मैं दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ, हम इस मजबूती की शुरुआत का पता लगा सकते हैं, जिसका प्रतीक वह शांत गुफा है जिसमें संत चारबेल ने ईश्वर की माँ की तस्वीर के सामने प्रार्थना की थी, और हरिसा का ग्रोटो, पूरे लेबनानी लोगों के लिए एकता का प्रतीक है। येसु के क्रूस के नीचे मरियम के साथ होने में (यो. 19:25) हमारी प्रार्थना, वह अदृश्य पुल बन जाता है जो दिलों को जोड़ता है, हमें उम्मीद और काम करते रहने की ताकत देता है, तब भी जब हम हथियारों की आवाज से घिरे हों और जब रोजमर्रा की जिदगी की जरूरतें भी एक चुनौती बन जाती हैं।
प्रेरितिक यात्रा के प्रतीक चिन्ह की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए पोप ने कहा, “इस यात्रा के लोगो (प्रतीकचिन्ह) में दिखाये गये चिन्हों में से एक एंकर है पोप फ्राँसिस अक्सर एंकर को विश्वास की निशानी बताते थे जो हमें हमेशा आगे बढ़ने की इजाजत देता है, सबसे बुरे पलों में भी, जब तक कि हम स्वर्ग नहीं पहुँच जाते। उन्होंने कहा, “हमारा विश्वास स्वर्ग में एक एंकर है। हमने अपना जीवन स्वर्ग में एंकर की है। तो हमें क्या करना चाहिए? हमें रस्सी को मजबूती से पकड़ना… और आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि हमें यकीन है कि हमारा जीवन स्वर्ग में, उस किनारे पर एंकर कर दी गई है जहाँ हम पहुँचेंगे” (आमदर्शन, 26 अप्रैल 2017)। अगर हम शांति लाना चाहते हैं तो हमें खुद को स्वर्ग से एंकर करना और उस दिशा में मजबूती से खड़ा होना होगा। आइए, हम उन चीजों को खोने से डरे बिना प्यार करें जो गुजर जाती हैं, बिना हिसाब किये दें।
देवदार की तरह मजबूत और गहरी इन जड़ों से प्यार बढ़ता है और ईश्वर की मदद से, एकजुटता के ठोस और लंबे समय तक चलनेवाले काम आगे बढ़ते हैं।
संघर्ष क्षेत्र की प्रेरिताई
फादर योहाना ने देब्बाबिये के बारे में बताया, उस छोटे गाँव के बारे जहाँ वे अपनी सेवा देते हैं। वहाँ, बहुत अधिक अभाव और बमबारी के खतरे के बावजूद, ख्रीस्तीय एवं मुसलमान, लेबनानी और दूसरे देशों से आए शरणार्थी, शांति से एक साथ रहते हैं और अपने पड़ोसियों की मदद करते हैं। संत पापा ने कहा, “आइए, एक पल रुककर उस तस्वीर पर चिंतन करें जो उन्होंने दिखाई है: भीख के डिब्बे में लेबनान के सिक्कों के साथ मिला सीरिया का सिक्का। यह एक महत्वपूर्ण बात है। यह हमें याद दिलाता है कि हममें से हर किसी के पास प्यार से देने और पाने के लिए कुछ न कुछ जरूर है, और अपने पड़ोसी को खुद का तोहफा देना सभी को बेहतर बनाता है तथा हमें ईश्वर की ओर खींचता है। पोप बेनेडिक्ट 16नें ने लेबनान की अपनी यात्रा के दौरान, मुश्किल समय में भी प्यार की एक करनेवाली ताकत के बारे में बात की थी, और कहा था: “हमें यहीं और अभी नफरत पर प्यार की जीत, बदले पर माफी, दबदबे पर सेवा, घमंड पर विनम्रता, और फूट पर एकता की खुशी मनाने के लिए बुलाया गया है... ताकि हम अपनी तकलीफों को ईश्वर के लिए प्यार और अपने पड़ोसी के लिए करुणा की घोषणा में बदल सकें।” (हरिसा में संत पॉल बेसिलिका का दौरा, 14 सितंबर 2012)।
केवल इसी तरह हम अपने आपको अन्याय और शोषण से मुक्त कर सकते हैं, तब भी जब हम उन लोगों और संगठनों से धोखा खाते हैं जो ऐसे लोगों की निराशा का बेरहमी से फायदा उठाते, जिनके पास कोई दूसरा रास्ता नहीं होता। इसलिए, हम एक बार फिर कल के लिए उम्मीद कर सकते हैं, भले ही अभी हमें जिन मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, उनकी कड़वाहट महसूस हो रही है। इस बारे में, मुझे याद आती है कि युवाओं के प्रति हम सबकी क्या जिम्मेदारी है। कलीसिया में भी उनकी मौजूदगी को बढ़ावा देना, उनके नए योगदान की तारीफ करना और उन्हें अवसर देना, जरूरी है। यह जरूरी है कि दुनिया के मलबे की दर्दनाक असफलताओं के बीच, उन्हें फिर से जन्म लेने और भविष्य में आगे बढ़ने के लिए ठोस और सही उम्मीदें देना।
प्रवासियों की मदद
प्रेरितिक कार्यकर्ता लोरेन के साक्ष्य को लेते हुए पोप ने कहा, “लोरेन ने हमें प्रवासियों की मदद करने के अपने काम के बारे में बताया है। वे खुद भी एक प्रवासी हैं, कुछ समय से वे उन लोगों की मदद कर रही हैं जिन्हें अपनी मर्जी से नहीं बल्कि मजबूरी में घर से दूर एक नया भविष्य तलाशने के लिए सब कुछ पीछे छोड़ना पड़ा है। उन्होंने जेम्स और लेला की जो कहानी सुनाई है, वह हमें बहुत गहराई से छूती है और दिखाती है कि युद्ध कई बेगुनाह लोगों की जिदगी में कितना खौफ पैदा करता है। पोप फ्राँसिस ने अपने भाषणों और लेखों में हमें कई बार याद दिलाया है कि जब हम ऐसी दुखद घटनाओं का सामना करते हैं तब हम संवेदनहीन नहीं रह सकते, उनका दुःख हमें परेशान करता और चुनौती देता है (प्रवासी और शरणार्थी विश्व दिवस के लिए धर्मोपदेश, 29 सितंबर 2019)।
एक ओर उनका साहस ईश्वर के प्रकाश की बात करता है जैसा कि लोरेन कहती हैं, सबसे अंधकारमय समय में भी प्रकाश देता है। दूसरी ओर, उनके अनुभव हमें यह सुनिश्चित करने हेतु कदम उठाने का निमंत्रण देता है कि किसी को व्यर्थ और क्रूर संघर्ष के लिए अपने देश से भागना न पड़े। और जो कोई भी हमारे समुदायों के दरवाजे पर दस्तक दे, उसे कभी तिरस्कृत महसूस न हो, बल्कि खुद लोरेन के शब्दों के साथ उसका स्वागत हो, “घर में आपका स्वागत है!”
शिक्षा की प्रेरिताई
संत पापा ने आगे कहा, “सिस्टर डीमा की साक्ष्य भी हमें प्रेरित करता है। जब हिंसा भड़क उठी तो उसने शिविर नहीं छोड़ने का निर्णय लिया, बल्कि स्कूल खुला रखा, उसे शरणार्थियों के स्वागत का स्थान और एक बहुत ही असरदार शैक्षणिक केंद्र बनाया। सचमुच में, उन कक्षाओं में, सहायता और भौतिक मदद देने के अलावा, “रोटी, डर और आशा” बांटना सीखता और सिखाता है; नफ़रत के बीच प्यार करना, थकान में भी सेवा करना और हर उम्मीद से बढ़कर भविष्य में विश्वास करना।
संत पापा ने कलीसिया के कार्यों की सराहना करते हुए कहा, “लेबनान में कलीसिया ने हमेशा शिक्षा को बढ़ावा दिया है। मैं आप सभी को इस प्रशंसनीय कार्य को जारी रखने के लिए बढ़ावा देता हूँ। आपकी पसंद, सबसे ज़्यादा उदारता से प्रेरित होकर, उन लोगों की जरूरतों को पूरा करने में मदद करे, जो खुद की मदद नहीं कर सकते और जो बहुत मुश्किल हालात में हैं। इस तरह, मन का विकास हमेशा दिल के सीखने से जुड़ा रहेगा। आइए हम याद रखें कि हमारा पहला स्कूल है क्रूस, और हमारे एक ही गुरू हैं, ख्रीस्त (मती. 23:10)।
जेल मिनिस्ट्री
अंत में, संत पापा ने फादर चारबेल के साक्ष्य को लेते हुए कहा, फादर चारबेल अपने जेल मिनिस्ट्री का अनुभव बतलाते हुए कहते हैं “जहाँ दुनिया सिर्फ दीवारें और अपराधी देखती है, वहाँ भी हम पिता की कोमलता देखते हैं, जो माफ करने से कभी नहीं थकते, यह कैदियों की आँखों में दिखता है, कभी खोए हुए, तो कभी नई उम्मीद से रोशन। और यह सच है: हम येसु का चेहरा उन लोगों में देखते हैं जो दुःख झेलते हैं और जो जिदगी के दिए जख्मों से भरे।
पोप ने कहा, थोड़ी देर में, इस तीर्थस्थल पर सोने का गुलाब प्रतीक स्वरूप चढ़ाया जाएगा। जो एक पुराना चिन्ह है, जिसके कई मतलब हैं, जैसे अपने जीवन से ख्रीस्त की सुगंध फैलाना। (2 कोर. 2:14) उन्होंने कहा, “इस प्रति के सामने मुझे उस सुगंध की याद आती है जो लेबनान की टेबल से, जो कई तरह के खाने और खाना बांटने में मिलने वाली समुदाय की मजबूत भावना के लिए मशहूर है। यह हजारों सुगंधियों से बनी एक खुशबू है जो अलग-अलग तरह की सुगंध और उनके मिश्रण से बनी है। ख्रीस्त की सुगंध भी ऐसी ही है। यह कोई महंगा सेंट नहीं है जो कुछ चुने हुए लोगों के लिए हो, बल्कि यह एक ऐसी खुशबू है जो अलग-अलग खाने के बतरन से भरे टेबल से आती है, जहाँ सभी को हिस्सा लेने के लिए बुलाया जाता है। यह उस रस्म की भावना हो जिसे हम करनेवाले हैं, और सबसे बढ़कर वह भावना जिसमें हम हर दिन खुद को प्यार में एक साथ रहने के लिए चुनौती देते हैं।
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