7 अक्टूबर, हमास हमले की दूसरी वर्षगाँठ, गज़ा विनाश पर कार्डिनल परोलिन
वाटिकन न्यूज
गज़ा, मंगलवार, 7 अक्टूबर 2025 (रेई) : इस्राएल पर हमास के आतंकी हमले और गज़ा पट्टी को पूरी तरह से तबाह करनेवाले युद्ध की शुरुआत को दो साल बीत चुके हैं। इस वर्षगाँठ में हम वाटिकन राज्य सचिव कार्डिनल पिएत्रो परोलिन के साथ बातचीत में उन घटनाओं और उसके बाद की घटनाओं पर नजर डाल रहे हैं।
प्रश्न : महामहिम, 7 अक्टूबर को दुखद हमके के बाद, अब तीसरे साल में प्रवेश कर रहे हैं। आप उस घटना को किस प्रकार याद करते हैं और तथा आपके विचार से, इज्राएल राज्य तथा विश्वभर के यहूदी समुदायों के लिए इसका क्या अर्थ था?
उत्तर: मैं वही दोहराता हूँ जो मैंने उस समय कहा था: हमास और अन्य मिलिशिया द्वारा हजारों इस्राएलियों और वहाँ रहनेवाले प्रवासियों, जिनमें से कई नागरिक थे, पर किया गया आतंकवादी हमला अमानवीय और अक्षम्य है, जो सप्ताह भर चलनेवाले सुकोत त्योहार के समापन, सिमकत तोराह मनाने की तैयारी कर रहे थे। बच्चों, महिलाओं, युवाओं, बुज़ुर्गों के ख़िलाफ क्रूर हिंसा का कोई औचित्य नहीं हो सकता। यह एक शर्मनाक और, मैं दोहराता हूँ, अमानवीय नरसंहार था। परमधर्मपीठ ने तुरंत अपनी पूर्ण और दृढ़ निंदा व्यक्त की, बंधकों की तत्काल रिहाई और आतंकवादी हमले से प्रभावित परिवारों के प्रति निकटता दिखाने का आह्वान किया। हमने प्रार्थना की, और प्रार्थना करते रहेंगे, और हम लगातार यही प्रार्थना करते रहेंगे कि घृणा और हिंसा का यह विकृत चक्र, जो हमें एक ऐसे रसातल में धकेल रहा है जहाँ से वापसी संभव नहीं है, समाप्त हो।
प्रश्न: आप उन इस्राएली बंधकों के परिवारों से क्या कहना चाहेंगे जो अभी भी हमास की हिरासत में हैं?
उत्तर : दुःख की बात है कि दो साल बीत चुके हैं। उनमें से कुछ मर चुके हैं, जबकि कुछ को लंबी बातचीत के बाद रिहा किया गया। सुरंगों में कैद और भूखे इन लोगों की तस्वीरें देखकर मैं बहुत आहत और दुःखी हूँ। हम उन्हें भूल नहीं सकते और न ही भूलना चाहिए। मुझे याद है कि पोप फ्राँसिस ने अपने जीवन के आखिरी डेढ़ साल में बंधकों की रिहाई के लिए कम से कम 21 सार्वजनिक अपीलें की थीं और उनके कुछ परिवारों से मुलाकात भी की। उनके उत्तराधिकारी, पोप लियो 14वें भी अपीलें करते रहे हैं। मैं उन सभी के प्रति अपनी निकटता व्यक्त करता हूँ, उनके दुःखों के लिए प्रतिदिन प्रार्थना करता हूँ, और उन्हें उनके प्रियजनों से जीवित और सुरक्षित मिलाने के लिए हर संभव प्रयास करने के लिए अपनी पूरी तत्परता जारी रखता हूँ—या कम से कम मारे गए लोगों के शव प्राप्त करने के लिए, ताकि उन्हें उचित रूप से दफनाया जा सके।
प्रश्न : 7 अक्टूबर के हमले की पहली बरसी पर, पोप फ्राँसिस ने "अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और सबसे शक्तिशाली राष्ट्रों की हथियारों को खामोश करने और युद्ध की त्रासदी को समाप्त करने में शर्मनाक अक्षमता" की बात की। शांति के लिए क्या ज़रूरी है?
आज, गज़ा की स्थिति एक साल पहले की तुलना में कहीं अधिक गंभीर और दुखद है, एक विनाशकारी युद्ध के बाद जिसमें हज़ारों लोगों की जान चली गई है। हमें तर्क की भावना को पुनः प्राप्त करने, घृणा और प्रतिशोध के अंध तर्क को त्यागने और हिंसा को समाधान के रूप में अस्वीकार करने की आवश्यकता है। जिन पर हमला किया जाता है, उन्हें अपना बचाव करने का अधिकार है, लेकिन वैध बचाव में भी आनुपातिकता के सिद्धांत का सम्मान होना चाहिए। दुर्भाग्य से, इसके परिणामस्वरूप हुए युद्ध ने विनाशकारी और अमानवीय परिणाम लाए हैं... मैं फ़िलिस्तीन में प्रतिदिन होनेवाली मौतों की संख्या से स्तब्ध और गहराई से व्यथित हूँ—हर दिन दर्जनों, कभी-कभी सैकड़ों—इतने सारे बच्चे जिनका एकमात्र दोष वहाँ पैदा होना प्रतीत होता है। हम इस नरसंहार के प्रति संवेदनहीन होने का जोखिम उठा रहे हैं! लोग रोटी का एक टुकड़ा खोजने की कोशिश करते हुए मारे गए, अपने घरों के मलबे के नीचे दबे हुए, अस्पतालों में, तम्बू शिविरों में बमबारी से मारे गए, विस्थापित हुए और उस संकीर्ण, भीड़भाड़ वाले क्षेत्र के एक छोर से दूसरे छोर पर जाने के लिए मजबूर हुए... मानव को केवल "सहवर्ती क्षति" तक सीमित कर देना अस्वीकार्य और अनुचित है।
प्रश्न : हाल के महीनों में दुनिया के कई हिस्सों में यहूदी विरोधी घटनाओं में वृद्धि को हमें किस नज़रिए से देखना चाहिए?
ये एक दुखद और समान रूप से अनुचित परिणाम हैं। हम झूठी खबरों और अति-सरलीकृत आख्यानों की दुनिया में जी रहे हैं। यही कारण है कि जो लोग इन विकृतियों से पोषित होते हैं, वे गज़ा में जो कुछ हो रहा है, उसके लिए समग्र रूप से यहूदी लोगों को जिम्मेदार ठहराते हैं। लेकिन हम जानते हैं कि यह सच नहीं है। यहूदी जगत में भी इस बात के विरोध में कई मजबूत विरोध के स्वर उठे हैं कि वर्तमान इस्राएली सरकार गज़ा और शेष फिलिस्तीन में कैसे काम करती रही है और करती रहेगी, जहाँ, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि बसनेवालों का विस्तारवाद, जो अक्सर हिंसक होता है, फिलिस्तीनी राज्य के निर्माण को असंभव बनाना चाहता है। हमने बंधकों के परिवारों की सार्वजनिक गवाही देखी है। यहूदी विरोध एक कैंसर है जिससे लड़ना और उसे जड़ से मिटाना होगा। हमें नेकनीयत लोगों, शिक्षकों की जरूरत है जो हमें समझने में मदद करें, और सबसे बढ़कर, हमें विवेकशील बनने में मदद करें। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि शोआ के साथ यूरोप के मध्य में क्या हुआ था, और हमें यह सुनिश्चित करने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगानी चाहिए कि यह बुराई फिर से न उभरे। साथ ही, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि अमानवीय कृत्य और मानवीय कानूनों का उल्लंघन कभी भी उचित न ठहराया जाए: किसी भी यहूदी पर यहूदी होने के कारण हमला या भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए, और किसी भी फ़िलिस्तीनी पर सिर्फ़ फ़िलिस्तीनी होने के कारण हमला या भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि, जैसा कि दुर्भाग्य से कभी-कभी कहा जाता है, वे "संभावित आतंकवादी" हैं। नफरत की विकृत श्रृंखला केवल एक ऐसा चक्रव्यूह रच सकती है जो कहीं अच्छा नहीं ले जाता। यह देखकर दुःख होता है कि हम अभी भी इतिहास से, यहाँ तक कि हाल के इतिहास से भी, जो जीवन का शिक्षक बना हुआ है, सीखने में नाकाम रहे हैं।
प्रश्न : आपने एक असहनीय स्थिति की बात की है और उन कई हितों का जfक्र किया है जो युद्ध को खत्म होने से रोक रहे हैं। वे हित क्या हैं?
प्रश्न : यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि हमास के उग्रवादियों को खत्म करने के लिए इस्राएली सेना द्वारा छेड़ा गया युद्ध इस तथ्य की अनदेखी करता है कि यह एक बड़े पैमाने पर निहत्थे आबादी को निशाना बना रहा है, जो पहले से ही कगार पर पहुँच चुकी है, एक ऐसे क्षेत्र में जहाँ इमारतें और घर मलबे में तब्दील हो चुके हैं। हवाई तस्वीरों पर एक नज़र डालना ही काफ़ी है यह समझने के लिए कि आज गाज़ा कैसा दिखता है। यह भी उतना ही स्पष्ट है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, दुर्भाग्य से, शक्तिहीन है और जो देश वास्तव में प्रभाव डालने में सक्षम हैं, वे अब तक चल रहे नरसंहार को रोकने के लिए कोई कार्रवाई करने में विफल रहे हैं। मैं केवल पोप लियो 14वें द्वारा 20 जुलाई को कहे गए स्पष्ट शब्दों को दोहरा सकता हूँ: "मैं अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से मानवीय क़ानूनों का पालन करने और नागरिकों की सुरक्षा के दायित्व का सम्मान करने, साथ ही सामूहिक दंड, अंधाधुंध बल प्रयोग और आबादी के जबरन विस्थापन पर रोक लगाने की अपनी अपील दोहराता हूँ।" ये ऐसे शब्द हैं जिनका अभी भी स्वागत किये जाने और समझने की आवश्यकता है।
प्रश्न : तो फिर, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय क्या कर सकता है?
उत्तर : निश्चित रूप से अभी जो कर रहा है, उससे कहीं ज़्यादा करना है। यह कहना पर्याप्त नहीं है कि जो हो रहा है वह अस्वीकार्य है और फिर उसे होने देना। हमें गंभीरता से खुद से इस बात पर विचार करना चाहिए कि नागरिकों के खिलाफ इस्तेमाल किए जा रहे हथियारों की आपूर्ति जारी रखना कितना जायज़ है। दुख की बात है कि जैसा कि हमने देखा है, संयुक्त राष्ट्र जो हो रहा है उसे रोक नहीं पाया है। लेकिन ऐसे अंतर्राष्ट्रीय तत्व हैं जो इस त्रासदी को समाप्त करने के लिए और अधिक कर सकते हैं और उन्हें ऐसा करना भी चाहिए, और हमें दुनिया भर में चल रहे कई भाईचारे के युद्धों को समाप्त करने में संयुक्त राष्ट्र को और अधिक प्रभावी भूमिका देने का एक तरीका खोजना होगा।
प्रश्न : राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा युद्धविराम और युद्ध को समाप्त करने के लिए प्रस्तावित योजना के बारे में आप क्या सोचते हैं?
उत्तर : कोई भी योजना, जो फिलिस्तीनी लोगों को अपने भविष्य के बारे में निर्णय लेने में शामिल करे, और इस नरसंहार को रोकने में मदद करे—बंधकों को रिहा करे और सैकड़ों लोगों की रोजाना हत्या को रोके—उसका स्वागत और समर्थन किया जाना चाहिए। संत पापा ने भी आशा व्यक्त की है कि सभी पक्ष इस योजना को स्वीकार करेंगे और अंततः एक वास्तविक शांति प्रक्रिया शुरू हो सकेगी।
प्रश्न : इस्राएल सरकार की युद्ध नीतियों के विरुद्ध और शांति के पक्ष में, इस्राएल सहित पूरे विश्व में नागरिक समाज द्वारा अपनाए गए रुख को आप किस प्रकार देखते हैं?
उत्तर : हालाँकि कुछ चरमपंथियों की हिंसा के कारण इन पहलों को कभी-कभी मीडिया में गलत तरीके से प्रस्तुत किए जाने का खतरा रहता है, फिर भी मैं प्रदर्शनों में शामिल लोगों की संख्या और कई युवाओं की प्रतिबद्धता से सकारात्मक रूप से प्रभावित हूँ। यह दर्शाता है कि हम उदासीनता के लिए अभिशप्त नहीं हैं। हमें शांति की इस इच्छा, इसमें शामिल होने की इस इच्छा को गंभीरता से लेना चाहिए... हमारा भविष्य, और दुनिया का भविष्य, इसी पर निर्भर करता है।
प्रश्न : कुछ लोग, यहाँ तक कि कलीसिया में भी, कहते हैं कि इन सबका सामना करते हुए, हमें सबसे पहले प्रार्थना करनी चाहिए, और सड़कों पर नहीं उतरना चाहिए, ताकि हम हिंसक लोगों के हाथों में न फँसें...
मैं एक बपतिस्मा प्राप्त व्यक्ति हूँ, एक आस्तिक हूँ, एक पुजारी हूँ: मेरे लिए, ईश्वर के समक्ष निरंतर प्रार्थना करना है कि वे हमारी मदद करें, हमारी सहायता करें, सद्भावना रखनेवाले पुरुषों और महिलाओं के प्रयासों का समर्थन करके इसे समाप्त करें, आवश्यक, दैनिक, मौलिक कार्य है। पोप लियो ने एक बार फिर हमें 11 अक्टूबर को शांति के लिए रोजरी माला विन्ती करने के लिए आमंत्रित किया है। लेकिन मैं यह भी ज़ोर देना चाहता हूँ कि ख्रीस्तीय धर्म या तो शरीरधारण है, या बिल्कुल भी विश्वास नहीं है... हम एक ऐसे ईश्वर का अनुसरण करते हैं जो मनुष्य बन गये, हमारी मानवता को ग्रहण किये, और हमें दिखाया कि हम अपने आस-पास जो कुछ भी हो रहा है, उसके प्रति उदासीन नहीं रह सकते, यहाँ तक कि जो हमसे दूर हैं, उनके प्रति भी। इसीलिए प्रार्थना कभी पर्याप्त नहीं होती—लेकिन न ही ठोस कार्रवाई, चेतना, शांति की पहल, जागरूकता बढ़ाना, भले ही इसका अर्थ "संपर्क से बाहर" दिखना हो या जोखिम उठाना हो। एक मूक बहुमत है, जिसमें कई युवा भी शामिल हैं, जो इस अमानवीयता के आगे झुकने से इनकार करते हैं। उन्हें भी प्रार्थना करने के लिए बुलाया जाता है। यह सोचना कि ख्रीस्तीय होने के नाते हमारी भूमिका सिर्फ खुद को पवित्र स्थानों में बंद कर लेना—मुझे बहुत गलत लगता है। प्रार्थना को कर्म, गवाही और ठोस फैसलों की ओर भी ले जाना चाहिए।
प्रश्न : पोप लियो शांति का आह्वान करते नहीं थकते। इस स्थिति में परमधर्मपीठ क्या कर सकता है? आप और पूरी कलीसिया क्या योगदान दे सकते हैं?
उत्तर : परमधर्मपीठ—जिसे कभी-कभी गलत समझा जाता है—शांति का आह्वान करता रहता है, संवाद का आह्वान करता है, "बातचीत" और "चर्चा" जैसे शब्दों का इस्तेमाल करता है, और वह ऐसा गहरे यथार्थवाद के आधार पर करता है: कूटनीति का विकल्प अंतहीन युद्ध, नफरत की खाई और दुनिया का आत्म-विनाश है। हमें जोरदार आवाज उठानी चाहिए: इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, हमें रुकना चाहिए। और हमें कार्य करना चाहिए, हर संभव प्रयास करना चाहिए ताकि बहुत देर न हो जाए। हर संभव प्रयास।
प्रश्न : इस समय फिलिस्तीन राज्य की मान्यता क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: दस साल पहले, वाटिकन और फिलिस्तीन राज्य के बीच हुए वैश्विक समझौते के तहत, वाटिकन ने फिलिस्तीन राज्य को आधिकारिक तौर पर मान्यता दी थी। उस अंतर्राष्ट्रीय समझौते की प्रस्तावना, अंतर्राष्ट्रीय कानून और सभी प्रासंगिक संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के अनुसार, फिलिस्तीनी मुद्दे के सभी पहलुओं में एक न्यायसंगत, व्यापक और शांतिपूर्ण समाधान का पूर्ण समर्थन करती है। साथ ही, यह एक ऐसे फिलिस्तीनी राज्य का समर्थन करती है जो स्वतंत्र, संप्रभु, लोकतांत्रिक और व्यवहार्य हो, जिसमें पश्चिमी तट, पूर्वी येरुशलम और गज़ा शामिल हों। यह समझौता इस राज्य की कल्पना अन्य राज्यों के विपरीत नहीं, बल्कि अपने पड़ोसियों के साथ शांति और सुरक्षा के साथ रहने में सक्षम होने के रूप में करता है। हमें खुशी है कि दुनिया भर के कई देशों ने फिलिस्तीन राज्य को मान्यता दी है। लेकिन हम इस बात पर चिंता व्यक्त करते हैं कि इस्राएली घोषणाएँ और निर्णय विपरीत दिशा में जा रहे हैं—अर्थात, एक वास्तविक फ़िलिस्तीनी राज्य के संभावित जन्म को हमेशा के लिए रोकने का लक्ष्य रखते हैं। यह समाधान, एक फ़िलिस्तीनी राज्य का निर्माण, पिछले दो वर्षों की घटनाओं के आलोक में आज और भी अधिक प्रासंगिक प्रतीत होता है। यह दो राज्यों में दो लोगों का मार्ग है, जिसका समर्थन परमधर्मपीठ ने शुरू से ही किया है। दोनों लोगों और दोनों राज्यों का भाग्य आपस में जुड़ा हुआ है।
प्रश्न : पवित्र परिवार पल्ली पर हुए क्रूर हमले के बाद, ज़मीनी स्तर पर ईसाई समुदाय कैसा कर रहा है, और मध्य पूर्व में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका क्यों है?
उतत्र : जैसा कि हमने देखा है, गज़ा के ख्रीस्तीयों पर भी हमले हुए हैं... मैं इन लोगों के विचार से द्रवित हूँ जो यहाँ रुकने के लिए दृढ़ हैं, जो प्रतिदिन शांति और पीड़ितों के लिए प्रार्थना करते हैं। यह एक बढ़ती हुई विकट स्थिति है। हम जेरूसालेम के लैटिन प्राधिधर्माध्यक्ष और कारितास के प्रयासों के माध्यम से, हर तरह से उनके करीब रहने की कोशिश करते हैं। हम उन सरकारों और संस्थानों के आभारी हैं जो सहायता पहुँचाने और गंभीर रूप से घायलों को देखभाल प्रदान करने के लिए काम कर रहे हैं। मध्य पूर्व में ख्रीस्तीयों की भूमिका महत्वपूर्ण रही है और आज भी है, भले ही उनकी संख्या कम हो रही हो। मैं इस बात पर जोर देना चाहता हूँ कि वे पीड़ित फिलिस्तीनी लोगों के भाग्य में पूरी तरह से भागीदार हैं, और उनके साथ कष्ट सहते हैं।
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