2025.11.20 पोप की आगामी प्रेरितिक यात्रा लेबनान में 2025.11.20 पोप की आगामी प्रेरितिक यात्रा लेबनान में 

लेबनान : पोप की प्रेरितिक यात्रा समर्थन और आशा का संदेश देगी

ऑर्डर ऑफ माल्टा लेबनान की विकास एवं संचार डायरेक्टर, ओउमायमा फराह ने वाटिकन न्यूज़ से देश की खराब मानवीय स्थिति और पोप की आगामी प्रेरितिक यात्रा के बारे बात की कि यह भविष्य में कैसे नई उम्मीद की भावना आएगी।

वाटिकन न्यूज

लेबनान, शुक्रवार, 21 नवंबर 2025 (रेई) : दक्षिणी लेबनान में मंगलवार और बुधवार को इस्राएली सेना के हमलों में कथित तौर पर कम से कम 14 लोग मारे गए और कई अन्य घायल हो गए, जिनमें एक स्कूल बस में यात्रा कर रहे छात्र भी शामिल हैं।

हाल ही में हुए युद्धविराम के बावजूद, देश की आबादी संघर्ष और हाल के दशकों में सामने आए कई अन्य संकटों के बोझ तले संघर्ष कर रही है।

1 मिलियन से ज़्यादा सीरियाई शरणार्थियों के आने से लेकर 2019 की आर्थिक तबाही, कोविड -19 महामारी और 2020 के बेरूत बंदरगाह धमाके तक, इन मुद्दों का आज भी देश पर बड़ा असर पड़ रहा है।

लेबनान 30 नवंबर से 2 दिसंबर तक पोप लियो 14वें की पहली प्रेरितिक यात्रा पर उनके स्वागत की तैयारी कर रहा है। इस बीच, ऑर्डर ऑफ माल्टा लेबनान की विकास और संचार निदेशक, ओउमायमा फराह ने वाटिकन न्यूज़ से बात की।

उन्होंने उस खराब मानवीय स्थिति के बारे में बताया जिसमें पिछले कुछ सालों में बहुत कम सुधार हुआ है और पोप लियो के दौरे से मिलने वाली उम्मीद पर ज़ोर दिया।

उनका मानना ​​है कि कई खास कार्यक्रमों की सूची के साथ, पोप की मौजूदगी उन लोगों के प्रति उनका सामीप्य व्यक्त करेगा, जिन्होंने दुःख झेला है और खासकर, ख्रीस्तीय समुदायों और युवाओं को हिम्मत रखने और बेहतर भविष्य के लिए काम करने की शक्ति देगी।

फराह के इंटरव्यू का पूरा टेक्स्ट नीचे पढ़ें।

सवाल: लेबनान ने पिछले कुछ दशकों में कई मुश्किलों का सामना किया है, और आज भी हालात नाजुक बने हुए हैं। क्या आप हमें बता सकते हैं कि जमीन पर इंसानी हालात कैसे हैं?

जवाब : सामाजिक आर्थिक संकट और 2019 के बाद आए कई मुश्किलों के बाद पिछले 6 सालों में इंसानी हालात में ज्यादा सुधार नहीं हुआ है। 2020 में बेरूत धमाका हुआ और 2024 में इस्राएल के साथ लड़ाई हुई, यह सब कोविड-19 महामारी और लेबनान में सीरियाई शरणार्थी संकट के बीच हुआ।

आज, हालात सुधरे नहीं हैं; बल्कि, हाल की लड़ाई की वजह से यह और खराब हो गई है, जिसका असर आनेवाले कई दशकों तक रहेगा। बहुत तबाही हुई है, चाहे वह बेरूत के उपनगरों में हो, देश के दक्षिण में हो या बेका इलाके में। इसका असर देश के बाकी हिस्सों और पूरी असर अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। 100,000 से ज्यादा लोग ऐसे भी हैं जो बेघर हो गए हैं और लड़ाई की वजह से अपने घर वापस नहीं जा पा रहे हैं।

सबसे जरूरी बात यह है कि लेबनान की मदद के लिए अंतरराष्ट्रीय फंड में भी कमी आई है। जैसे, संयुक्त राष्ट्र ने देश में सीरियाई शरणार्थी के लिए समर्थन में कटौती कर दी है।

सवाल: इस्राएल और लेबनान के बीच एक साल पहले, नवंबर 2024 में युद्धविराम पर हस्ताक्षर हुआ था, लेकिन तनाव अभी भी है और कई बार उसका उल्लंघन हुआ है। क्या पिछले साल लेबनानी लोगों के लिए हालात बदले हैं?

जवाब: हालात इसलिए नहीं बदले हैं क्योंकि यह जंग उन सभी मुश्किलों के बीच हुई जो पिछले 6 सालों से जमा हो रही थीं। मैं यह भी कहूंगा कि पिछले 50 सालों में, क्योंकि जब से लेबनान में सिविल युद्ध शुरू हुआ [जो 1975 से 1990 तक चला], हमने कई झगड़े और मुश्किलें देखी हैं।

हिज़्बुल्लाह और इस्राएल के बीच अभी भी टेंशन है। बहुत से लोग अपने घर वापस नहीं जा पा रहे हैं, खासकर दक्षिणी सीमा पर। जब से युद्धविराम पर हस्ताक्षर हुआ है, तब से, खासकर दक्षिण में, 100 से ज्यादा बार उल्लंघन की खबरें आ चुकी हैं। उदाहरण के लिए, ऑर्डर ऑफ़ माल्टा का एक सेंटर यारून गांव में है, जो दक्षिणी बॉर्डर पर है, जहाँ हम अब नहीं जा सकते, और हमें नहीं पता कि हम वहाँ दोबारा कब पहुँच पाएँगे।

जैसे ही हम बात कर रहे हैं, मैं ड्रोन की आवाज सुन सकता हूँ, और पूरी जनता हमेशा स्ट्रेस और डर में जी रही है, यह नहीं जानते हैं कि अगली बार कब तनाव बढ़ेगा। अगर लड़ाई फिर से शुरू होती है तो हर कोई भागने के लिए अपने सूटकेस तैयार रखता है।

निश्चित रूप से, मानवीय और सामाजिक-आर्थिक तौर पर हालात और खराब हो गए हैं, लेकिन क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर कुछ बदलावों को देखते हुए, हमें अभी भी कुछ उम्मीद है। अब हमारे पास रिपब्लिक का नया प्रेसिडेंट और नई सरकार है। हमने पड़ोसी सीरिया में भी बदलाव देखे हैं।

सवाल: पोप लियो के आने की घोषणा पर लोगों की क्या प्रतिक्रिया रही?

जवाब: पोप लियो के आने की घोषणा निश्चित रूप से पूरे इलाके के लिए उम्मीद का संदेश है, क्योंकि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि लेबनान, यह छोटा सा देश है जो, मध्यपूर्व के दरवाजे पर है। यह पूर्व और पश्चिम के बीच, यूरोपीय संस्कृति और मध्यपूर्वी संस्कृति के बीच एक पुल है।

ख्रीस्तीय, चाहे वे सीरिया में हों, जॉर्डन में हों, इराक में हों, इस्राएल में हों या फिलिस्तीन में हों, उनकी संख्या घट रही है। भले ही लेबनान में वे कम हुए हैं, लेकिन वे आबादी के एक बड़े हिस्से हैं, और वे आजाद हैं। पवित्र भूमि, येसु ख्रीस्त की भूमि, जहाँ उन्होंने उपदेश दिए, जहाँ उनकी माँ ने मग्दूचे में उनका इंतज़ार किया सभी ख्रीस्तीयों के लिए एक स्तंभ के रूप में उनकी बड़ी भूमिका है।

पोप लियो का आना – खासकर, उनकी पहली विदेश यात्रा, और यह बात कि उन्होंने लेबनान आने का फैसला किया - इन समुदायों के लिए समर्थन का एक बड़ा संदेश है।

सवाल: इस यात्रा का लेबनान और पूरे इलाके में शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने में क्या असर हो सकता है?

जवाब : यह यात्रा लेबनान और इलाके के लोगों के लिए स्थिरता का एक संदेश भी है; यह हिम्मत और विश्वास को मजबूत करने का संदेश है। मुझे लगता है कि उनकी यह यात्रा पोप जॉन पॉल द्वितीय की बात को भी दोहराती है, जब उन्होंने कहा था कि लेबनान एक देश नहीं बल्कि दुनिया के लिए एक संदेश है।

अगर आप यात्रा की सूची देखेंगे, तो हर कार्यक्रम का एक गहरा अर्थ है। उदाहरण के लिए, दुनिया भर के लोगों की मीटिंग [जो 1 दिसंबर को बेरूत के शहीदों के चौक पर होगी], स्वर्गीय पोप फ्रांसिस और अल-अजहर के ग्रैंड इमाम द्वारा हस्ताक्षर किए गए मानवीय बंधुत्व पर घोषणा को दोहराती है। लेबनान एक ऐसी भूमि है जहाँ यह साथ रहना सिर्फ कागजों पर नहीं; बल्कि इसे लोग हर दिन जीते हैं। उदाहरण के लिए, ऑर्डर ऑफ माल्टा सभी धार्मिक समुदायों के साथ मिलकर काम करता है।

सवाल: पोप लियो 2020 में हुए बेरूत बंदरगाह धमाके की जगह पर भी प्रार्थना करेंगे। आपको क्या लगता है इसका क्या महत्व है?

जवाब : मुझे लगता है कि यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटना और एक शक्तिशाली पड़ाव है। उससे भी बढ़कर वहाँ एक मौन प्रार्थना होगी। दुःख के सामने, कोई शब्द नहीं होते। यह उन परिवारों के लिए प्रार्थना का पल होगा जिन्होंने अपनों को खो दिया है और न्याय के लिए भी, क्योंकि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आज, धमाके के लगभग छह साल बाद भी, उन लोगों को न्याय नहीं मिला है जिन्होंने सब कुछ खो दिया है।

एक और महत्वपूर्ण पल बकेर्के में युवाओं के साथ उनकी मुलाकात होगी। पिछले 6 सालों में मौकों की कमी के कारण युवा देश छोड़कर चले गए हैं। पोप उनसे बात करके उम्मीद और हिम्मत का संदेश देंगे। यह लोगों से इस देश पर विश्वास करने और एक असली देश बनाने के लिए यहीं रहने का आह्वान होगा।

इसके अलावा, जल एड डिब में दे ला क्रॉइक्स हॉस्पिटल में उनका रुकना भी खास होगा। वे पांचवीं मंजिल पर जाएंगे जिसे हम 'पैविलियन सेंट-डोमिनिक' कहते हैं। हम वहाँ क्रूस की धर्मबहनों और दूसरे स्वयंसेवकों के साथ मिलकर काम करते हैं। वहां रहनेवाले लोग शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांग हैं, इसलिए वे समाज में सबसे ज्यादा हाशिए पर पड़े लोगों में से हैं। अक्सर, उन्हें उनके अपने परिवारों ने भी छोड़ दिया है। उनकी देखभाल धर्मबहनें करती हैं।

और, बेशक, संत चारबेल मकलफ की कब्र पर उनका रुकना भी महत्वपूर्ण होगा क्योंकि वह एक ऐसे संत हैं जिन्हें सिर्फ लेबनानी ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी जाना जाता है। पोप इस तीर्थस्थल को अंतरराष्ट्रीय मानचित्र पर ला रहे हैं, इसलिए यह बहुत खास है।

सवाल: देश पर असर डालनेवाले अलग-अलग संकटों का सामना करने में लोगों की मदद करने के लिए ऑर्डर ऑफ माल्टा किस तरह का काम कर रहा है?

जवाब : ऑर्डर ऑफ माल्टा पिछले 60 सालों से लेबनान में मौजूद है और 1980 के दशक से दूर-दराज के इलाकों में बहुत मजबूती से काम कर रहा है। 2019 में संकट शुरू होने के बाद से हमने अपने बहुत से कामों को और मजबूत किया है। आज, हमारे पास पूरे इलाके में तीन मुख्य सेक्टर में 60 प्रोजेक्ट और प्रोग्राम हैं।

लोग प्राइवेट क्लीनिक में जाने का खर्च नहीं उठा सकते और, क्योंकि सरकार ऐसी सेवा नहीं देती, इसलिए वे सिविल सोसाइटी के पास आते हैं, जो लोगों का साथ देने में बड़ी भूमिका निभा रही है। आज, 70 से 80% आबादी गरीबी में है, और इनमें से ज्यादातर मिडिल क्लास के लोग हैं। हम कमजोर जनता के साथ खड़े हैं, और सभी के लिए खुले हैं। हम अपने आदर्शवाक्य के अनुसार काम करते हैं, “मैं आपकी जाति, रंग या धर्म के बारे में नहीं पूछता, बल्कि मुझे बताएं कि आपकी तकलीफ क्या है।”

हम समाज कल्याण विभाग में भी हैं। हम बुज़ुर्गों, बच्चों और सबसे ज्यादा हाशिए पर पड़े लोगों, यानी दिव्यांगों की मदद करते हैं। आखिर में, हम पिछले चार सालों में खाद्य सुरक्षा और कृषि क्षेत्र में भी गए हैं। पूरे देश में हमारे सात सेंटर हैं।

हम छोटे किसानों को न सिर्फ खाने और गुजारा करने और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने का जरिया देने के लिए समर्थन करते हैं, बल्कि उन्हें उनकी जमीन पर भी टिकाए रखते हैं। ऑर्डर ऑफ माल्टा के काम में यही जरूरी है: यह सिर्फ़ मानवीय या विकास का जवाब नहीं है; यह संत जॉन पॉल द्वितीय ने जो कहा था, उसे बचाने का भी एक तरीका है, कि लेबनान दुनिया के लिए एक संदेश है। हम लोगों को अपनी जमीन पर रहने का मौका देने की कोशिश कर रहे हैं।

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21 नवंबर 2025, 16:18