कॉक्स बाजार शरणार्थी शिविर में आग लगने से हुए नष्ट आश्रय स्थल कॉक्स बाजार शरणार्थी शिविर में आग लगने से हुए नष्ट आश्रय स्थल  (AFP or licensors)

बंगलादेश : कॉक्स बाजार शरणार्थी शिविर में आग लगने से हजारों रोहिंग्या बेघर

बंगलादेश में दुनिया के सबसे बड़े शरणार्थी शिविर में सैकड़ों अस्थायी आश्रयों और 100 से अधिक सुविधाओं को आग ने नष्ट कर दिया, जिसमें दस लाख से अधिक रोहिंग्या रहते हैं जो म्यांमार में हिंसा और उत्पीड़न से भागकर यहाँ आये हैं।

वाटिकन न्यूज

बंगलादेश, मंगलवार, 9 जनवरी 2024 (रेई) : रविवार को बांग्लादेश के कॉक्स बाज़ार शरणार्थी शिविर में लगी भीषण आग से लगभग 800 आश्रय स्थल नष्ट हो गए जिससे लगभग 7,000 रोहिंग्या शरणार्थी बेघर हो गए। सीमावर्ती जिले के 33 शिविरों में से एक, कैंप 5 में देर रात करीब 1:00 बजे आग लग गई और कई घंटों के बाद इस पर काबू पाया जा सका।

जाँच

शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त (यूएन एचसीआर) के अनुसार घरों के अलावा आग ने आसपास के 120 से अधिक सुविधा केंद्रों को नष्ट अथवा क्षतिग्रस्त किया है, जिनमें शिक्षण केंद्र, मस्जिद, स्वास्थ्य देखभाल केंद्र, शौचालय एवं स्नानगृह आदि सुविधाएँ शामिल हैं। इनके अलावा 93 आश्रयों के कुछ हिस्से क्षतिग्रस्त हुए हैं।

आग लगने का कारण अभी तक निश्चित रूप से नहीं जाना जा सका है और बांग्लादेशी अधिकारियों ने आश्वासन दिया है कि वे इस घटना की जांच करेंगे जो जानबूझकर हो सकती है।

कॉक्स बाजार शरणार्थी शिविरों में अक्सर आग लगती है। मार्च 2021 में भीषण आग में कम से कम 15 शरणार्थियों की मौत हो गई थी और 10,000 से अधिक घर नष्ट हो गए थे। पिछले साल लगभग 2,800 आश्रय स्थल और अस्पतालों तथा शिक्षण केंद्रों सहित 90 से अधिक सुविधाएँ आग में नष्ट हो जाने से लगभग 12,000 लोग बेघर हो गए थे।

अल्पसंख्यक प्रताड़ित

कॉक्स बाज़ार में दस लाख से अधिक रोहिंग्या अस्थायी आश्रयों में रहते हैं, जो दुनिया का सबसे बड़ा शरणार्थी शिविर है। उनमें से अधिकांश 2016-2017 में म्यांमार के सुरक्षा बलों द्वारा राखैन राज्य में की गई सैन्य कार्रवाई के बाद वहां से भाग गए थे, जहां बड़े पैमाने पर मुस्लिम जातीय समूह सदियों से रह रहे हैं।

रोहिंग्या, जिन्हें 1982 से म्यांमार में नागरिकता से वंचित कर दिया गया है, उन्हें राष्ट्र विहीन बना दिया गया है, उन्हें दुनिया में सबसे अधिक उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों में से एक के रूप में वर्णित किया गया है, और दशकों से वे थल या नाव से पड़ोसी देशों में भाग रहे हैं। 2 फरवरी 2021 को म्यांमार में सैन्य तख्तापलट ने उनकी लाचारी और बढ़ा दी है।

कॉक्स बाजार में रहनेवाले बहुत सारे लोग जिन्हें आधिकारिक रूप से शरणार्थी का दर्जा नहीं मिला है, जिसके द्वारा उन्हें खास सुरक्षा एवं अधिकार मिल सकती थी और उन्हें बांग्लादेश में आधिकारिक तौर पर "जबरन विस्थापित बर्मी नागरिक" के रूप में नामित किया गया है।

स्थानीय निवासियों की बढ़ती शत्रुता

पिछले छह वर्षों में रोहिंग्या को स्थानीय लोगों से बढ़ती शत्रुता का सामना करना पड़ा है और कई शरणार्थियों ने हाल ही में इंडोनेशिया सहित अन्य देशों में जाने का फैसला किया है, किन्तु वहाँ भी उनका स्वागत नहीं किया जा रहा है।

विद्रोहियों के जारी आक्रमण के बीच म्यानमार में मौन क्रिसमस

हाल के सप्ताहों में सैकड़ों लोग इंडोनेशियाई द्वीपसमूह के पश्चिमी क्षेत्र पहुंचे। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार कम से कम 1,800 रोहिंग्या अब देश में हैं, जो 2015 के एशियाई नाव संकट के बाद सबसे बड़ी संख्या है, जिसमें हजारों भूखे और बीमार रोहिंग्या और बांग्लादेशी लोगों को तस्करों की छोड़ी गई नावों में समुद्र में छोड़ दिया गया था।

आगमन की इस नई लहर ने स्थानीय सोशल मीडिया पर एक अभूतपूर्व घृणा अभियान शुरू कर दिया है, जिनसे इंडोनेशियाई सरकार और मीडिया समाचारों को तथ्य-जांच लेख प्रकाशित करने के लिए प्रेरित किया है।

उका समाचार एजेंसी के अनुसार संचार एवं सूचना मंत्री ने अपनी वेबसाइट पर रोहिंग्या के बारे में गलत धारणाओं और अफवाहों को दूर करनेवाले कम से कम दस लेख प्रकाशित किए हैं। 4 जनवरी को, इसने एक इंस्टाग्राम पोस्ट को खारिज कर दिया जिसमें आरोप लगाया गया था कि शरणार्थियों को "जानबूझकर इंडोनेशिया भेजा गया था ताकि इंडोनेशिया का ध्यान चल रहे इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष से भटक जाए।" अन्य लेखों ने विभिन्न आरोपों का खंडन किया जैसे कि रोहिंग्या मलेशिया से भूमि अधिकार मांग रहे हैं, शरणार्थियों को 2024 के चुनावों में मतदाताओं के रूप में सूचीबद्ध किया जा रहा है, और यूएनएचसीआर इंडोनेशिया सरकार पर रोहिंग्या को घर, भोजन और पहचान पत्र देने के लिए दबाव डाल रहा है।

27 दिसम्बर को, छात्रों की एक भीड़ ने कथित तौर पर आचे प्रांत की राजधानी बांदा आचे में एक स्थानीय सामुदायिक हॉल के तहखाने पर धावा बोल दिया और 130 से अधिक रोहिंग्या को, जिनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे थे, भागने के लिए मजबूर किया। छात्रों को कथित तौर पर फर्जी खबरों से उकसाया गया था कि शरणार्थी उनका भोजन और जमीन ले रहे हैं, साथ ही यौन उत्पीड़न और अन्य बुरे व्यवहार में भी शामिल हो रहे हैं।

रोहिंग्या शरणार्थियों को बदनाम करने वाले दुष्प्रचार अभियान की जेसुइट शरणार्थी सेवा (जेआरएस) सहित गैर सरकारी संगठनों और कलीसियाई समूहों द्वारा भी कड़ी निंदा की गई है।

पोप ने संघर्ष पीड़ितों को याद करते हुए कहा कि युद्ध पागलपन है

इस संदर्भ में बांग्लादेश में मानवतावादी एजेंसियों गैर सरकारी संगठनों के साथ कलीसियाई संगठन इन लोगों को घर और सम्मान वापस देने के लिए अपनी मानवीय सहायता परियोजनाओं और राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनकी वकालत का काम जारी रखे हुए हैं, जैसा कि चैटोग्राम (पूर्व में चटगांव) महाधर्मप्रांत के विकर जेनेरल फादर टेरेंस रोड्रिगस ने वाटिकन समाचार पत्र लोसेर्वातोरे रोमानो को पुष्टि दी।

उन्होंने बतलाया कि “हाल के वर्षों में कारितास ने हर साल 3 लाख रोहिंग्याओं की मदद की है। "स्थिति को रोहिंग्या सुरक्षा, सम्मान और भविष्य की गारंटी के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से दीर्घकालिक प्रतिबद्धता की आवश्यकता है।"

इस साल 3 जनवरी को अपने पहले आमदर्शन में, पोप फ्राँसिस ने 2017 में बांग्लादेश की अपनी प्रेरितिक यात्रा के दौरान रोहिंग्या शरणार्थियों के एक समूह से मुलाकात की थी, और विश्वासियों को आमंत्रित किया था कि वे "हमारे रोहिंग्या भाइयों और बहनों को न भूलें, जो प्रताड़ित हैं।"

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09 January 2024, 15:59