बुधवार को धर्मशिक्षा देते संत पापा लियो 14वें बुधवार को धर्मशिक्षा देते संत पापा लियो 14वें  (ANSA)

आमदर्शन समारोह में पोप : प्रभु का पुनरूत्थान उदासी की बीमारी से चंगा करता है

संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में बुधवार को अपने आमदर्शन समारोह में, पोप लियो 14वें ने ईसा मसीह के पुनरुत्थान को “एक ऐसी घटना” बताया जिस पर चिंतन और मनन कभी समाप्त नहीं होता। उन्होंने तर्क दिया कि उसपर जितना अधिक चिंतन किया जाए, वह उतना ही अधिक आकर्षक प्रकाश की ओर आकर्षित होता है।

वाटिकन न्यूज

वाटिकन सिटी, बुधवार, 22 अक्टूबर 2025 (रेई) : वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा लियो 14वें ने हजारों विश्वासियों एवं तीर्थयात्रियों के समझ अपन धर्मशिक्षा माला जारी की।

संत पापा ने कहा, "प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।"

येसु ख्रीस्त का पुनरुत्थान एक ऐसी घटना है जिस पर चिंतन और मनन कभी समाप्त नहीं होता, और इसपर जितना ज्यादा चिंतन किया जाए, यह उतना ही ज्यादा आश्चर्य से भर देता है, मानो किसी अद्भुत लेकिन आकर्षक प्रकाश द्वारा खींचे जा रहे हों। यह जीवन और आनंद का एक ऐसा विस्फोट है जिसने वास्तविकता के अर्थ को ही नकारात्मक से सकारात्मक में बदल दिया; फिर भी यह किसी आश्चर्यजनक तरीके से नहीं हुआ, हिंसक तो बिल्कुल नहीं, बल्कि धीरे से, छिपे हुए ढंग से, या यूँ कहें कि विनम्रता से।

संत पापा ने धर्मशिक्षा के मूल विषय के बारे बतलाते हुए कहा, “आज हम इस बात पर विचार करेंगे कि कैसे ख्रीस्त का पुनरुत्थान हमारे समय की बीमारी, उदासी, को ठीक कर सकता है। व्यापक, उदासी कई लोगों के जीवन का हिस्सा होती है। यह अनिश्चितता की भावना है, कभी-कभी गहरी निराशा, जो व्यक्ति के आंतरिक स्थान पर आक्रमण करती है और आनंद की किसी भी प्रेरणा पर हावी हो जाती है।

उदासी एक चोर

उदासी जीवन से अर्थ और उत्साह छीन लेती है, उसे एक दिशाहीन और अर्थहीन यात्रा में बदल देती है। यह वर्तमान अनुभव हमें संत लूकस रचित सुसमाचार (24:13-29) में इम्माऊस के दो शिष्यों के प्रसिद्ध वृत्तांत की याद दिलाता है। शिष्य निराश और हतोत्साहित होकर, येसु जिन्हें क्रूस पर चढ़ाया गया है और कब्र में दफनाया गया है, उनपर अपनी आशाओं को पीछे छोड़ते हुए येरूसालेम छोड़ देते हैं। शुरुआती पंक्तियों में, यह प्रसंग मानवीय उदासी का एक उदाहरण प्रस्तुत करता है: उस उद्देश्य का अंत जिसके लिए इतनी ऊर्जा समर्पित की गई थी, जो उनके जीवन का सार प्रतीत होता था उसका विनाश। उनकी आशा टूट गई है; उदासी ने उनके दिलों पर कब्जा कर लिया है। बहुत कम समय में, शुक्रवार और शनिवार के बीच नाटकीय घटनाक्रम के तहत सब कुछ ध्वस्त हो गया।

उदासी में सब कुछ खोने का एहसास

यह विरोधाभास सचमुच प्रतीकात्मक है: हार और सामान्य जीवन में वापसी की यह दुखद यात्रा, उसी दिन घटित होती है जिस दिन प्रकाश की विजय होती है, पास्का के दिन, जब सब कुछ पूर्ण हो चुका था। दोनों व्यक्ति गोलगोथा से, क्रूस के उस भयावह दृश्य से, जो अभी भी उनकी आँखों और हृदय पर अंकित है, मुँह मोड़ लेते हैं। ऐसा लगता है कि सब कुछ खो गया है। उन्हें अपने पूर्व जीवन में लौटना होगा, चुपचाप रहना होगा और यह आशा करनी होगी कि कोई उन्हें पहचान न ले।

एक निश्चित बिंदु पर, एक अन्य यात्री दोनों शिष्यों से मिलता है, शायद पास्का के लिए येरूसालेम आए कई तीर्थयात्रियों में से एक के रूप में। वह अजनबी और कोई नहीं बल्कि पुनर्जीवित येसु हैं, लेकिन शिष्य उन्हें पहचान नहीं पाते। उनकी आँखों पर उदासी छा गई है, और उस वादे को मिटा दिया है जो प्रभु ने कई बार किया था: कि वे मारे जाएंगे और तीसरे दिन फिर जी उठेंगे। अजनबी उनके पास आता है और उनकी बातों में रुचि दिखाता है। सुसमाचार पाठ कहता है कि दोनों "उदास होकर चुपचाप खड़े रहे" (लूकस 24:17)। प्रयुक्त यूनानी विशेषण एक व्यापक उदासी का वर्णन करता है: आत्मा का लकवाग्रस्त होना, उनके मुख मलिन थे।

येसु में नई आशा

येसु उनकी बात सुनते हैं, और उन्हें अपनी निराशा का बोझ उतारने देते हैं। फिर, बड़े ही स्पष्ट रूप में, वे उन्हें "मूर्ख ... और सब नबियों की कही हुई बातों पर विश्वास करने में मन्द" होने के लिए डाँटते हैं (पद 25), और धर्मगंथ के माध्यम से उन्हें समझाते हैं कि मसीह को कष्ट सहना, मरना और फिर जी उठना पड़ा। दोनों शिष्यों के दिलों में आशा की गर्माहट फिर से जाग उठती है, और फिर, जब रात हो जाती है और वे अपने गंतव्य पर पहुंचते हैं, तो वे अपनी यात्रा के रहस्यमय साथी को अपने साथ रहने के लिए आमंत्रित करते हैं।

येसु निमंत्रण स्वीकार करते हैं और उनके साथ मेज पर बैठते हैं। फिर वे रोटी लेते हैं, उसे तोड़ते और परोसते हैं। उसी क्षण, दोनों शिष्य उन्हें पहचान लेते हैं... लेकिन येसु तुरंत उनकी नजरों से ओझल हो जाते हैं (पद 30-31)। यह भाव टूटे हुए शिष्यों के हृदय की आँखें खोल देता है, निराशा से धुँधली दृष्टि को एक बार फिर से प्रकाशित करता है। और तब सब कुछ स्पष्ट हो जाता है: साझा यात्रा, कोमल और शक्तिशाली वचन, सत्य का प्रकाश... आनंद पुनः जागृत हो जाता है, उनके थके हुए अंगों में ऊर्जा का संचार होता है, और कृतज्ञता उनकी स्मृति में लौट आती है। और दोनों जल्दी से येरुसालेम लौट जाते हैं तथा दूसरों को सब कुछ बताते हैं।

आशा वास्तविक और ठोस है

"प्रभु सचमुच जी उठे हैं।" (पद 34) इस क्रियाविशेषण में, वास्तव में, मानव जाति के रूप में हमारे इतिहास का निश्चित परिणाम पूरा होता है। यह कोई संयोग नहीं है कि पास्का के दिन ख्रीस्तीय इसी अभिवादन का आदान-प्रदान करते हैं। लेकिन येसु शब्दों में नहीं, बल्कि कर्मों में जी उठे, उनके शरीर पर उनके दुःख के निशान हैं, जो हमारे प्रति उनके प्रेम की चिरस्थायी मुहर है। जीवन की विजय कोई खोखला शब्द नहीं, बल्कि एक वास्तविक, ठोस तथ्य है।

संत पापा ने तीर्थयात्रियों से कहा, “एम्माउस के शिष्यों का अप्रत्याशित आनंद, हमारे कठिन समय में एक कोमल अनुस्मारक बने। जी उठे प्रभु ही हैं जो हमारे दृष्टिकोण को मौलिक रूप से बदल देते हैं, उदासी के शून्य को भरने वाली आशा का संचार करते हैं। हृदय के पथों पर, जी उठे प्रभु हमारे साथ और हमारे लिए चलते हैं। वे मृत्यु की पराजय के साक्षी हैं और कलवारी के अंधकार के बावजूद, जीवन की विजय की पुष्टि करते हैं। इतिहास में अभी भी आशा करने के लिए बहुत कुछ है।”

पुनरुत्थान को पहचानने का अर्थ

अंत में उन्होंने कहा, पुनरुत्थान को पहचानने का अर्थ है संसार के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलना: प्रकाश की ओर लौटना और उस सत्य को पहचानना जिसने हमें बचाया है और जो हमें बचाता है। बहनों और भाइयों, आइए हम प्रतिदिन पुनर्जीवित येसु के पास्का के आश्चर्य में जागते रहें। केवल वही असंभव को संभव बनाते हैं!

इतना कहकर उन्होंने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की।

धर्मशिक्षा के अंत में संत पापा ने विभिन्न भाषा-भाषी के तीर्थयात्रियों को सम्बोधित करते हुए बीमारों, बुजूर्गों, नवविवाहितों और युवाओं का अभिवादन किया। उन्होंने अक्टूबर माह के आह्वान की याद दिलाते हुए कहा, प्रिय मित्रों, अक्टूबर का महीना हमें कलीसिया के मिशन में अपने सक्रिय सहयोग को नवीनीकृत करने के लिए आमंत्रित करता है। प्रार्थना की शक्ति, वैवाहिक जीवन की क्षमता और युवावस्था की ताज़ा ऊर्जा के साथ, आप सुसमाचार के मिशनरी बनें और उन लोगों को अपना ठोस समर्थन प्रदान करें जो लोगों के सुसमाचार प्रचार के लिए अपना जीवन समर्पित करते हैं।

अंत में, संत पापा ने सभी के साथ हे हमारे पिता प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

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22 अक्तूबर 2025, 13:36

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