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भारत की एक आदिवासी महिला भारत की एक आदिवासी महिला 

कोविड-19 संक्रमण से बचने के लिए लोगों में जागृति लाते पुरोहित

जबलपुर धर्मप्रांत के पुरोहित सुदूर आदिवासी गाँवों में जाकर कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने का उपाय बलता रहे हैं।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

भारत, बृहस्पतिवार, 23 अप्रैल 20 (ऊकान)-मध्यप्रदेश कोविड-19 से बुरी तरह प्रभावित राज्यों में से एक है। काथलिक मिशनरी मध्य प्रदेश के दुर्गम गांवों में आदिवासी लोगों के बीच जाकर कोविद -19 महामारी के बारे जागरूकता उत्पन्न कर रहे हैं।

ऊका समाचार के अनुसार जबलपुर धर्मप्रांत के 150 स्वयंसेवकों के साथ 45 पुरोहित गोंड़ एवं बाईगा आदिवासी समुदायों में जाकर कोरोना वायरस संक्रमण से बचने का उपाय बतला रहे हैं। गाँव के कई लोग इस बीमारी के नाम से भी परिचित नहीं थे।

धर्मप्रांत के पल्ली पुरोहित फादर थंकाचन जोश ने कहा, "निश्चय ही यह कार्य पुलिस समेत सरकारी अधिकारियों से लिखित अनुमति लेने के बाद किया जा रहा है ताकि किसी तरह का संदेह न हो।" आदिवासी ग्रामीण मुख्यधारा की जिंदगी से कटे हुए रहते हैं, और सरकार द्वारा 25 मार्च को देशव्यापी तालाबंदी लागू करने के बाद उनका कटना बढ़ गया, क्योंकि परिवहन के सभी साधन बंद हो गए। फादर ने कहा कि कई ग्रामीण गाड़ी के लिए सड़क की सुविधा से दूर होते हैं। कई बार गाँव पहुँचने के लिए हमें कोसों की दूरी पैदल तय करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, बैगा आदिवासी जंगलों में रहते हैं। अधिकतर आदिवासियों के पास भोजन, आश्रय और गर्मी के समय पेयजल जैसे मौलिक आवश्यकताओं का भी आभाव होता है और ऐसे समय में उनकी स्थिति बदतर हो जाती है।    

उन्होंने कहा, "पेयजल की समस्या बहुतों के लिए एक बड़ी समस्या है। भोजन के लिए वे जंगलों पर निर्भर करते हैं और गर्मी में यह समस्या अधिक बढ़ जाती है तथा उनके जीवन को दयनीय बना देती है।"

फादर जोश ने बतलाया कि इस अभियान के तहत 20 अप्रैल से अब तक उन्होंने बैगा और गोंड़ आदिवासियों के 100 परिवारों का दौरा किया है। वे कोविड-19 महामारी के बारे कुछ नहीं जानते। उनके पास रेडियो, टेलीविजन, समाचार पत्र या कोई अन्य संचार माध्यम नहीं हैं। यहाँ के अधिकांश लोग अशिक्षित हैं। फादर ने लोगों को सामाजिक दूरी बनाये रखने एवं अतिथियों का स्वागत करने के लिए पैर धोने की परम्परा को न करने की सलाह दी है। उन्होने कहा, "मैंने उन्हें सलाह दी है कि वे ऐसा तब तक न करें जब तक कि कोविड-19 का संक्रमण समाप्त न हो जाए और उन्होंने इसमें सहमति दिखायी है। चूँकि उनके पास मास्क नहीं है वे अपना चेहरा तौलिए से ढंकते हैं जिसका प्रयोग वे वास्तव में गर्मी के समय में अपने चेहरे और सिर को बचाने के लिए करते हैं।"

धर्मप्रांत का मिशन

धर्माध्यक्ष जेराल्ड अलमेइदा ने कहा कि फादर जोश की तरह जबलपुर के अन्य पुरोहित भी गाँवों का दौरा कर लोगों के बीच महामारी से बचने के लिए जागरूकता लाने का काम कर रहे हैं।

जबलपुर धर्मप्रांत के सामाजिक सेवा विभाग के संचालक ने कहा, "हमारे पुरोहित 50 से अधिक मिशन स्टेशनों में जागरूकता अभियान चला रहे हैं प्रत्येक स्टेशन 20 गाँवों को कवर करता है।" फादर थॉमस ने 25 मार्च को लॉकडाउन के बाद से, अकेला 26 गाँवों का दौरा किया है। कुछ पुरोहित अपने साथ एक या दो स्वयंसेवकों को साथ ले जाते हैं किन्तु वे भी सामाजिक दूरी बनाकर रखने के नियम का पालन करते हैं।

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23 April 2020, 17:42