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कहानी

भारत: बिहार के लिए ‘लौदातो सी’ से प्रेरित महत्वपूर्ण ऊर्जा

सिस्टर मेरी ज्योतिषा कन्नमकल एसएनडी ग्लोबल काथलिक जलवायु आंदोलन के भीतर एक ‘लौदातो सी’ अनुप्राणदाता हैं। भारत में बिहार के पटना में, वे संत पापा फ्राँसिस के विश्वपत्र ‘लौदातो सी’ के लिए समर्पित शैक्षिक पाठ्यक्रम और पारस्परिक बैठकें आयोजित करती हैं, वे कभी भी देश के गरीबों को नही भूलती, जिनकी पीड़ा कोरोनोवायरस संकट के कारण बढ़ गई है।

माग्रेट सुनीता मिंज-वाटिकन सिटी

पटना, बुधवार 7 अप्रैल 2021 (वाटिकन न्यूज) : यह उनकी प्रतिबद्धता है जो जाति व धर्म की परवाह किए बिना सृष्टि की देखभाल और हाशिए पर जीने वालों की सेवा को एकजुट करती हैं। यह पूर्वोत्तर भारत में बिहार की नॉट्रे डेम सिस्टर मेरी ज्योतिषा कन्नमकल एसएनडी, द्वारा किया गया मिशन है। सिस्ट मेरी ज्योतिषा का जन्म 1960 में केरल में हुआ। उसने 1987 में अपने नॉट्रे डेम धर्मसमाज में प्रवेश किया। वे वाटिकन न्यूज़ को बताती हैं, "शुरू में, मैं एक शिक्षिका थी लेकिन मेरी आंतरिक आवाज़ ने मुझे संस्थागत शिक्षण को छोड़ने और गरीब लोगों की सेवा करने की चुनौती दी, विशेष रूप से महिलाओं और लड़कियों की सेवा में।”   2010 के बाद से, सामाजिक सेवा में मास्टर डिग्री और न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र में एक इंटर्नशिप प्राप्त करने के बाद, सिस्टर मेरी ज्योतिषा, पटना प्रांत में सृष्टि आयोग के न्याय, शांति और अखंडता की पहल शुरु की। वे अंतर्राष्ट्रीय संघ के सुपीरियर जनरलों के सहयोग से और मानवाधिकारों के लिए यूनिसेफ-बिहार अंतर-धार्मिक फोरम की सदस्य हैं, साथ ही ग्लोबल काथलिक पर्यावरण आंदोलन (जीसीसीएम) में लौदातो सी की एक अनुप्राणदाता भी है

सिस्टर मेरी ज्योतिषा कन्नमक्कल और सृष्टि की देखभाल पर एक कार्यक्रम
सिस्टर मेरी ज्योतिषा कन्नमक्कल और सृष्टि की देखभाल पर एक कार्यक्रम

धरती और गरीबों का रोना

सिस्टर ज्योतिषा संत पापा फ्राँसिस के 2015 के विश्वपत्र ‘लौदातो सी’ '' हमारे सामान्य घर की देखभाल पर "मंत्रमुग्ध" हैं। वे कहती हैं, "जो मुझे विशेष रूप से प्रभावित करता था, वह था सामाजिक और पर्यावरणीय संकटों के बीच संबंध का आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य, जिसके लिए तत्काल पारिस्थितिक रूपांतरण की आवश्यकता है, एक मौलिक सांस्कृतिक क्रांति जो एक अभिन्न पारिस्थितिकी को बढ़ावा देती है जो पृथ्वी और गरीबों के क्रंदन पर प्रतिक्रिया देती है।" वे कहती हैं, "इस वजह से मैं ‘लौदातो सी’ अनुप्राणदाता बन गई क्योंकि मैं गरीबों पर पारिस्थितिक संकट के प्रभाव से परेशान हूँ। विशेष रूप से पिछले दो तीन वर्षों के सूखे और बाढ़ से, जिनका सामना लोगों ने किया था। उनकी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने का कोई साधन नहीं है। मेरी आंतरिक आवाज मुझे खुद को पूरी तरह से अभिन्न पारिस्थितिकी के लिए एकजुटता बनाने हेतु प्रतिबद्ध कर रही है।

कोरोनावायरस

पटना बिहार राज्य में स्थित है, यह 125 मिलियन निवासियों का घर है। विश्व बैंक ने बताया कि दूसरी सहस्राब्दी के दूसरे दशक में, बिहार में 36 मिलियन लोग गरीबी में जी रहे थे। पिछले अक्टूबर के अंत और नवंबर की शुरुआत के बीच, लोग स्थानीय सरकार बनाने के लिए कोरोनावायरस महामारी की शुरुआत के बाद से पहली चुनावों में लंबी लाइनों में वोट देने के लिए खड़े थे। जैसा कि एशिया न्यूज ने बताया, कई मतदाताओं ने मास्क के उपयोग और सामाजिक दूरी के बारे में उपायों को अनदेखा किया। “सामाजिक-पर्यावरणीय संकट से गरीब लोगों की पीड़ा और दुख, आज वैश्विक महामारी से बढ़ गया है। भारत जैसे देश में गरीब लोगों पर विषम प्रभाव बहुत ही खतरनाक है।”

वर्तमान कोविद -19 संकट के दौरान, सिस्टर ज्योतिषा विशेष रूप से श्रमिकों की "अत्यंत कठिन" अनियमित स्थिति के बारे में चिंतित हैं, उनमें से कई दैनिक-श्रमिक हैं। कई अपने गांवों में लौट गये, क्योंकि अब वे महामारी के कारण बेरोजगार थे। सिस्टर ज्योतिषा ने "युवाओं की बेरोजगारी में वृद्धि, परिवार के लिए आजीविका का कोई विकल्प नहीं होने" पर चिंता व्यक्त की। वे एक बार फिर गरीबों पर ध्यान केंद्रित करती हैं,  जिन्हें बेहाल छोड़ दिया जाता है, वे “व्यथित और निराश हो कर आत्महत्या और अन्य असामाजिक गतिविधियां करने हेतु मजबूर हो जाते हैं। महिलाएँ लड़कियाँ, बच्चे, बुजुर्ग और जो शारीरिक रूप से बीमार हैं, वे देश के सबसे जरुरतमंद लोग हैं। समाज में मानव भाईचारे के साथ कुछ लोगों की मदद के बावजूद, आबादी के एक विशाल हिस्से का दर्द और पीड़ा अभी भी बनी हुई है और "जो गरीब हैं वे और गरीब बन रहे हैं।" वे कहती हैं, "आज हम जिस तरह से जी रहे हैं, "महामारी और जलवायु परिवर्तन हमें विकट संकट का संकेत दे रहा है।"

सृष्टि पर जूनियर धर्मबहनों द्वारा बनाये गये चित्र
सृष्टि पर जूनियर धर्मबहनों द्वारा बनाये गये चित्र

आध्यात्मिकता को पुनः जागृत करना

सिस्टर मेरी बताती हैं, "मैं आध्यात्मिक रूप से संचालित दुनिया को वापस लाने के लिए, आध्यात्मिक मूल्यों के लिए और जनहित की तलाश में सहयोग के लिए ‘लौदातो सी’ को एक आध्यात्मिक उपकरण के रूप में देखती हूँ।" “यह हमारे लिए एक महत्वपूर्ण, वास्तविक और गतिशील ऊर्जा के रूप में हमारी आध्यात्मिकता को जागृत करने का समय है, जो कि आज मानव और पारिस्थितिक संकट से निपटने के लिए है।” भारत के आध्यात्मिक आदर्श, ‘वसुधैव कुटुम्बकम’, यह इंगित करता है कि "पूरी दुनिया एक परिवार है" और संत पापा फ्राँसिस का ‘लौदातो सी’ हमें सभी के साथ एक भ्रातृ संबंध और सृष्टि की रक्षा हेतु बुला रहा है। परिवार का मतलब है कि परिवार के प्रत्येक सदस्य की देखभाल करने की जिम्मेदारी महसूस करना।”

स्कूलों में ‘लौदातो सी’

जीसीसीएम के साथ सहयोग करते हुए सिस्टर ज्योतिषा ने न केवल अभिन्न पारिस्थितिकी को बढ़ावा देने की दिशा में, बल्कि लौदातो सी की भावना के अनुरूप प्रशिक्षण की ओर भी कदम बढ़ाया। उनकी प्रोविंशियल सिस्टर का कहना है कि नोट्रे डेम की बहनों ने पहले ही 'न्याय, शांति और निर्माण की अखंडता' की नीति को अपनाया है। उस परिप्रेक्ष्य में, सिस्टर ज्योतिषा अपनी छोटी धर्मबहनों के साथ "धार्मिक जीवन जीने का एक नया तरीका" बनाने के लिए समुदाय में काम करती हैं।

लौदातो सी नॉट्रे डेम की धर्मबहनों की पहल
लौदातो सी नॉट्रे डेम की धर्मबहनों की पहल

पिछले मई, "प्रोविंशियल आवास में लौदातो सी 'सप्ताह 2020 के उत्सव ने धर्मबहनों को हमारे सामान्य घर की देखभाल और संरक्षण के प्रति जागरूकता, पारिस्थितिक रूपांतरण की आवश्यकता के लिए प्रेरित किया है।" लौदातो सी 'वर्ष में अनेक पहलों की शुरुआत की गई है। यह वर्ष 24 मई 2021 तक चलेगा। संत पापा के विश्व पत्र लौदातो सी पर धर्मसंघ की जूनियर धर्मबहनों के लिए 6 महीने का कोर्स चलाया जा रहा है। 60 वर्ष से कम उम्र की धर्मबहनों के लिए आध्यत्मिक साधना की व्यवस्था, प्रकृति में चलना, तथा एक "पॉज़िटिव बैंक" का निर्माण याने प्रांत में प्रत्येक समुदाय अभिन्न पारिस्थितिकी की तर्ज पर एक सकारात्मक कार्य करता है।

एक अंतरधार्मिक समर्पण

"लौदातो सी पर प्रशिक्षण में मुख्य अवधारणा" अभिन्न पारिस्थितिकी की ओर बढ़ने की आवश्यकता थी। सिस्टर ज्योतिषा बताती हैं कि उन्होंने सुनिश्चित किया है कि उनकी धर्मबहनें इस पारिस्थितिकी रूपांतरण के लिए तैयार हैं, "पानी, बिजली की बचत जैसे छोटे कदमों के माध्यम से, जैव-अपव्यय योग्य कचरे का प्रबंधन, भोजन को बर्बाद न करना, पुन: उपयोग, पुनर्चक्रण, फेंक आइटम और एकल उपयोग प्लास्टिक का उपयोग न करना,  जंग भोजन न खाना आदि। उन्हें जीवन के सभी रूपों के अंतर्संबंध में ईश्वर का अनुभव करने और ईश्वर द्वारा बनाए गए सभी जीव जन्तुओं की रक्षा करने के लिए प्रोत्साहित किया गया।”

पटना में समुदाय द्वारा उगाई गई एक जैविक फल
पटना में समुदाय द्वारा उगाई गई एक जैविक फल

सितंबर में, उसने महामारी से संबंधित प्रावधानों के संबंध में एक वेबिनार आयोजित किया। बिहार राज्य से यूनिसेफ के प्रतिनिधि और सभी स्थानीय धार्मिक नेता "सृष्टि का मौसम 2020" मनाने के लिए जमा हुए थे। उन्होंने बच्चों के लिए एक पेंटिंग और कविता प्रसंग का भी आयोजन किया, जिसमें उन्होंने विश्वास दिलाया कि "धरती माता की देखभाल" करने का मतलब मानवता की देखभाल करना है।”

*वाटिकन रेडियो के भारतीय अनुभाग के सहयोग से - वाटिकन न्यूज़

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07 April 2021, 15:45