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सिस्टर इब्तिसाम: संत पापा की इराकी यात्रा देश हेतु नया जीवन

इब्तिसाम हाबिब गोर्गिस, इराक के काराकोश में जन्मी मरियम के निष्कलंक फ्रांसिस्कन प्रेरितिक धर्मसमाज में एक धर्मबहन है, वह अपनी बुलाहट की चर्चा करते हुए 2021 में संत पापा फ्रांसिस की प्रेरितिक यात्रा के प्रभाव के बारे में बतलाती हैं।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 12 अगस्त 2022 (रेई) इब्तिसाम हाबिब गोर्गिस फ्रांसिस्कन धर्मसमाज की इराकी धर्मबहन ने संत पापा फ्रांसिस की 2021 में हुई इराक प्रेरितिक यात्रा को, इराक के लिए नये जीवन का स्रोत बतलाया।

येरूसालेम में आध्यात्मिक यात्रा हेतु समय व्यतीत कर रही इस इराकी धर्मबहन से मुलाकात के बारे में कहा गया कि उसके चेहरे में सदैव मुस्कान व्याप्त रहते, वह अपनी में हाजिरजवाबी रहती और अपने शांतिमय चेहरे से दूसरों के लिए शांति विखेरती है।

“मैं काराकोश में पैदा हुई और पल्ली बढ़ी”, उत्तरी इराक में एक असीरियन शहर, जो मोसुल से केवल 30 किमी दूर, प्राचीन शहर नीनवे के खंडहरों के करीब है। वहां की स्थानी भाषा अरामाईक है।

“हम येसु की भाषा बोलते हैं” उन्होंने गर्व से कहा, लेकिन वह धड़ाले के साथ शुद्ध इतालवी भी बोलती है जिसने उन्होंने नविशिष्यालय में सीखा है। काराकोश उत्तरी इराक में एक छोटा ईसाई क्षेत्र है, जिसमें असीरियन और खलदियन दोनों परंपरा के लोग रहते हैं,  लेकिन,  वह कहती है, “हम हमेशा अपने मुस्लिम पड़ोसियों के साथ शांति और आपसी सम्मान में रहते हैं”।

सवालः एक इराकी लड़की ने कैसे एक धर्मबहन बनने का विचार कियाॽ

वासत्व में, मैंने इसके बारे मे कभी नहीं सोचा, क्योंकि यद्यपि मैं पितृसत्तात्मक और पारंपरिक वातावरण में जीवन व्यतीत किया, मैं हमेशा बहुत स्वतंत्र रही हूँ। मुझे अपनी आजादी से बहुत ईर्ष्या होती है। अब भी (वह हंसती है) कि मैं यह घूंघट पहनती हूं।

सवालः यह सब कैसे हुआॽ  

मैं विश्वविद्यालय मैं काथलिक छात्रों के समूह में रहती थी, जहाँ मैं जीव विज्ञान का अध्ययन कर रही थी। उस समय, मुझे कहना चाहिए, हमारा जीवन बुरा नहीं था, प्रथम खाड़ी युद्ध के बाद, हम दुनिया से अलग हो गये थे। हम यह नहीं जानते थे हमारी चाहरदीवारी के बाहर क्या हो रहा है, लेकिन हम शांति में जीवन व्यतीत करते थे। तारिक अज़ीज़, विदेश मंत्री- जो वास्त्व में प्रधानमंत्री थे- वे खलदेयी ईसाई थे जो तेल केप्पे से आते थे, जो काराकोश के बहुत निकट है। वहाँ एक चीज, युवा ख्रीस्तियों के संग मिलकर गरीबों की सहायता करना जिसे मैंने बहुत अधिक पसंद किया। यह मुझे खुशी प्रदान करती थी। यह एक स्वार्थसिद्धि वाली खुशी नहीं थी बल्कि इसके द्वारा मुझे आंतरिक शांति मिलती थी, यह मुझ सच्चे अर्थ में मानवीय होने का एहसास दिलाता था- दूसरों के साथ रहना और दूसरों से लिए जीना।

लेकिन मैंने अब तक अपने लिए एक स्थान नहीं पाया था जहाँ मैं पूर्णरूपेण जी सकूँ। एक फ्रासिस्कन पुरोहित हम लोगों से मिलने आये। मैं उन्हें गहरे रुप में प्रभावित हुई, मैंने संत फ्रांसिस की जीविनी पढ़ी थी और मेरे हृदय की गहराई में एक छोटा-सा दीप जला। इसके बाद दो इतालवी धर्मबहनों ने मुझे जार्डन अपने मठ भेंट करने का निमंत्रण दिया। लेकिन तब, मेरी शादी की उम्र हो गई थी लेकिन...मैं स्वतंत्र होना चाहती थी। जब मेरे परिवार को इसका पता चला कि मेरी निगाहें कहीं और हैं तो वे खुश नहीं थे।

“यह मेरी पुत्री है, तुम लोगों की नहीं”, मेरे पिता ने उन धर्मबहनों को हमारे घर में प्रवेश करने में पबंदी लगाते हुए कहा। इन घटनाओं के बाद, अंतत उन्होंने मुझे जार्डन जाने की अनुमति दी। मेरे चाचा मेरे साथ इस यात्रा में गये, हमारे देश पर लगे प्रतिबंध के कारण वहां पहुंचने हेतु हमें 18 घंटे लगा।

धर्मसमाज में प्रवेश करना सहज नहीं था, मैं भाषा अच्छी तरह नहीं समझती थी, मुझे इतालवी सीखना था, धर्मबहनें लातीनी रीति नहीं अपितु सीरियाई धर्मविधि की रीति का अनुपालन करती थीं, अतः मैं मिस्सा पूजा, प्रातःकालीन या संध्या वंदना कुछ नहीं समझती थी, मैं उस जीवन शैली से एकदम वाकिफ नहीं थी।

लौटने की कोई गुंजाईश नहीं थी क्योंकि यह इज्जत का सवाल था, जब मेरे बालों को काटा गया तो यह पुराने जीवन को तोड़ना था। इन सारी कठिनाइयों का सामना करने के बावजूद, मैंने अपने अंतरतम में बढ़ती हुई शांति का अनुभव किया। जीवन में परिवर्तन साधारणतः एक तरह से बेचैनी, चिंता लाती है, लेकिन यह परिवर्तन यद्यपि अपने में मूलभूत था, मुझे शांति से भर देती थी।

काराकोश से हम पांच लड़कियाँ थीं, और यह मेरे लिए सांत्वना का कारण था, कोई था जिनके संग मैं बातें कर सकती थी जो मुझे समझती थीं। नौ महीने के बाद, मुझे घर जाने और अपने परिवार से मिलने की अनुमति मिली, और इसके बाद उन्होंने मुझे नवशिष्यालय के लिए इटली भेजा।

सवालः क्या आप मध्य पूर्वी क्षेत्र गयींॽ

हाँ, पहले में पवित्र शहर, बेतलेहेम और नाजरेत भेजी गई, और तब मैं बगदाद गई जहाँ मैंनें तीन वर्षों तक शिक्षण के क्षेत्र में कार्य किये।

सन् 2014 के 6 अगस्त को मैं अपने शहर में थी। दाऐश जिसे मुस्लिम स्टेट कहा जाता है उनका प्रवेश निनवे प्रांत में हुआ। घरों में कोई पानी या बिजली नहीं थी। तब हमने एक विस्फोट सुना। शहर से बाहर एक घर मिसाइल आक्रमण का शिकार हुआ। हम दौड़कर वहाँ गये और मलवे के साथ शवों को देखा। शवों के दफन उपरांत एक बृहृद पलायन शुरू हुआ।

पाचस हजार लोग, बिना धर्म या राजनीति ठिकाने के शहर और घरों को छोड़ दिया। दाएश के द्वारा कब्जा में किये गये स्थलों से हमारे लिए भयवाह कहानियाँ आई उन्होंने लोगों को सब कुछ छोड़ने हेतु विवश किया। कारोकोश में दाएश के घुसने से कोई नहीं मिलता। हमने हर संभव लोगों को निकालने को भागने में सहायता की। निनवे पांत से करीबन 120,000 लोगं ने कुर्दिस्तान में पलायन किया।

हम बहनें अंत तक रहीं, आंशिक रूप से विस्थापित लोगों की मदद करने के लिए और आंशिक रूप से इसलिए कि हमें नहीं पता था कि कहाँ जाना है। हम सड़कों पर सोते थे ताकि भागने के लिए तैयार रहें। तब धर्माध्यक्ष ने हमें जाने का आदेश दिया। हम काराकोश छोड़ने वाले अंतिम व्यक्ति थे। हम रात के करीब 2 बजे निकले और सुबह 5 बजे तक दाएश शाहर को सैनिकों ने अपने कब्जा में कर लिया। जब फौजियों ने एक कस्बे में प्रवेश किया, तो उन्होंने तीन विकल्प दिए: या तो तुम मुसलमान हो जाओ, या तुम हमें भुगतान करो, या हम तुम्हें मार डालें। लगभग हर परिवार में शोक मनाने के लिए एक मृत व्यक्ति होता है। एक चौथाई घरों को जला दिया गया, सभी में तोड़फोड़ की गई और गिरजाघरों को नष्ट कर दिया गया।

हमने उन विस्थापित लोगों की मदद करने के लिए पूरे कलीसिया के साथ काम किये, जो महीनों तक तंबू के नीचे या अस्थायी घरों में रहे। तब हमें यरदन की सीमा पार करके पवित्र भूमि में वापस भेज दिया गया। एक रात दो सालों की तरह लगती थी। काराकोश 19 अक्टूबर 2016 को मोसुल की लड़ाई के साथ आजाद हुआ था। उस तारीख के बाद, कुछ निवासियों ने वापस आना शुरू कर दिया। लेकिन कई, खासकर जिन्हें विदेश में शरण मिली थी, वे कभी नहीं लौटे। आज भी स्थिति दर्दनाक है, पुनर्निर्माण धीमा है, लोगो के लिए काम नहीं है,  बहुत गरीबी है।

सवालः और आज आप क्या कर रही हैं?

आज मैं अपने देश वापस आ गयी हूं। मैं अन्य धर्मबहनों के साथ मिलकर 500 से अधिक बच्चों कि लिए एक किंडरगार्टन चलाती हूं।

पिछले साल संत पापा फ्राँसिस की यात्रा हमारे अनुभव में एक केन्द्र-विन्दु थे। उन्होंने हमें ताजी हवा की सांस दी; कई सालों बाद हमने पहली बार हमने महसूस किया कि कोई है जो वास्तव में हमारी परवाह करता है, कोई है जो हमसे प्यार करता है। उन्होंने हमें महसूस कराया कि हम कलीसिया के लिए एक अनमोल मूल्य हैं। हम जीवित हैं और हम विश्वास करते हैं।

उन्होंने हमें उन मुसलमानों के साथ होने का गर्व महसूस कराया, जो दूसरे धर्मों का पालन करते हैं, जो मुसलमान भी दाएश के अत्याचारों से हमारी तरह भाग गए थे। जब हमने अपनी बगल में, इस देश की धरती पर संत पापा फ्राँसिस को देखा और छुआ, तभी हमें एहसास हुआ कि सारी चीजें समाप्त हो गयी हैं। वास्तव में, सारी चीजें खत्म हो गई थी,  और अब हम नये पृष्ठ की शुरूआत कर सकते हैं।

संत पापा फ्राँसिस केवल “यात्रा” नहीं की उन्होंने हमें पुनर्जीवित किया।

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12 August 2022, 17:41