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2023.03.17नवंबर 2022 में बहरीन की प्रेरितिक यात्रा के दौरान संत पापा फ्राँसिस के साथ धर्मबहन निर्मला 2023.03.17नवंबर 2022 में बहरीन की प्रेरितिक यात्रा के दौरान संत पापा फ्राँसिस के साथ धर्मबहन निर्मला 

संत पापा हमें एक नई तरह की कलीसिया होने के लिए बुलाते हैं

13 मार्च 2013 को कार्डिनल जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो संत पापा फ्राँसिस बने। इस सप्ताह धर्मबहनों के चार धर्मसमाज के वरिष्ठों ने ग्लोबल सिस्टर्स रिपोर्ट के कॉलम में, विशेष रूप से धर्मबहनों के लिए, संत पापा के परमाध्यक्षीय काल का क्या मतलब है, इस पर प्रतिबिंबित किया। यह कहानी लेखक की अनुमति से पुनर्मुद्रित है। (सिस्टर मारिया निर्मालिनी द्वारा ग्लोबल सिस्टर्स रिपोर्ट)

माग्रेट सुनीता मिंज-वाटिकन सिटी

यह वास्तव में संत पापा फ्राँसिस के परमाध्यक्ष बनने की 10वीं वर्षगांठ मनाने का एक खुशी का अवसर है और मेरे लिए एक उपयुक्त सुअवसर है कि मैं इस दशक में दुनिया भर में और विशेष रूप से भारतीय धर्मसंघी धर्मबहनों पर संत पापा फ्राँसिस के प्रभाव पर कुछ विचार साझा करूं। .

13 मार्च, 2013 को संत पेत्रुस प्रांगण में संत पापा फ्राँसिस के चुनाव के पहले दृश्य ने वास्तव में आने वाले समय के लिए एक लहजा सेट किया। जैसे ही उन्होंने संत पेत्रुस महागिरजाघऱ के झरोखे पर कदम रखा, संत पापा फ्राँसिस एक आकर्षक मुस्कान बिखेरते हुए दीप्तिमान दिखाई पड़े। सफेद कैसक पहनना, पारंपरिक लाल मोजेटा को त्यागना, आने वाली चीजों का पहला संकेत था। बड़ी संख्या में उत्साही भीड़ के सामने पूरी विनम्रता के साथ उन्हें आशीर्वाद देने से पहले, उनसे आशीर्वाद मांगा और मौन प्रार्थना में सबके सामने अपना सिर झुकाया। यह सभी का ध्यान आकर्षित करने वाला बहुत ही हृदय स्पर्शी क्षण था।

13 मार्च, 2013 को अपने चुनाव के बाद संत पापा फ्राँसिस संत पेत्रुस महागिरजाघऱ के प्रमुख झरोखे पर विश्वासियों का अभिवादन करते हुए
13 मार्च, 2013 को अपने चुनाव के बाद संत पापा फ्राँसिस संत पेत्रुस महागिरजाघऱ के प्रमुख झरोखे पर विश्वासियों का अभिवादन करते हुए

संत पापा फ्राँसिस निश्चित रूप से एक नए तरह के नेतृत्व का संकेत दे रहे थे, कलीसिया होने का एक नया तरीका। उनके द्वारा चुना गया नाम दर्शाता है कि यह वास्तव में एक ज़बरदस्त नेतृत्व बनने जा रहा है और इसमें कई चीज़ें पहली होंगी: परमाध्यक्ष बनने वाले पहले जेसुइट; अमेरिका से पहले परमाध्यक्ष, फ्रांसिस (असीसी के) का नाम लेने वाले पहले व्यक्ति; चुनाव के बाद अन्य कार्डिनलों के साथ बस में यात्रा करने वाले पहले व्यक्ति; वाटिकन गेस्टहाउस, सांता मार्था में रहने वाले पहले व्यक्ति और यह सिर्फ शुरुआत थी, उसके बाद से कई अन्य पहली बार देखा गया है, साथ ही कलीसिया में बेहद जरूरी सुधार भी।

लेकिन कहीं भी सुधारों को पहले यह स्वीकार करते हुए शुरू करना चाहिए कि कुछ गलत है और इसमें सुधार की जरूरत है। उस विनम्र स्वीकृति की अभिव्यक्ति उन्होंने जेसुइट पत्रिका अमेरिका को दिए पहले साक्षात्कार में की।

"जोर्ज मारियो बर्गोग्लियो कौन है?" फादर अतोनियो स्पैडारो ने पूछा।

जवाब झट से आया: “मैं पापी हूँ। यह सबसे सटीक परिभाषा है। यह अलंकार नहीं, साहित्यिक विधा है। मैं एक पापी हूँ।"

अपने चुनाव के कुछ महीने पहले में अपनी स्वीकृति भाषण में, उन्होंने वही कहा था: "मैं एक पापी हूँ, लेकिन मुझे हमारे प्रभु येसु मसीह की असीम दया और धैर्य पर भरोसा है।" इसमें कोई आश्चर्य नहीं,  कि अपने परमाध्य बनने के दो साल बाद ही उन्होंने 2015 से 2016 तक दया की जयंती वर्ष की घोषणा की।

उस पहले साक्षात्कार में, संत पापा फ्राँसिस ने कलीसिया के लिए अपने दृष्टिकोण को रेखांकित करते हुए कहा, “कलीसिया को आज जिस चीज की सबसे ज्यादा जरूरत है, वह घावों को भरने और विश्वासियों के दिलों को गर्म करने की क्षमता है, उसे निकटता चाहिए, निकटता चाहिए। मैं कलीसिया को लड़ाई के बाद फील्ड अस्पताल के रूप में देखता हूँ। गंभीर रूप से घायल व्यक्ति से यह पूछना बेकार है कि क्या उसका कोलेस्ट्रॉल बढ़ा हुआ है और उसके रक्त में चीनी की मात्रा ज्यादा है! आपको उसके घावों को ठीक करना होगा। फिर हम बाकी सब चीजों के बारे में बात कर सकते हैं। घावों को चंगा करना होगा... और आपको जमीन से शुरू करना होगा।

कासा सांता मार्था में अपने दैनिक प्रवचनों के दौरान उन्होंने कई अद्भुत विचारों को प्रकट किया, राज्यों के प्रमुखों या समर्पित लोगों के साथ अपनी बैठकों के दौरान कहा, या अपने विश्वपत्र के माध्यम से लिखा,इन सबने मुझे गहराई से छुआ है और मैं उन्हें संत पापा फ्राँसिस की परमाध्यक्षीय काल की पहचान मानती हूँ।

भारत में धर्मसंघी महिलाओं और पुरुषों की संख्या लगभग 130,000 है, जिनमें से 110,000 धर्मबहनें हैं। मेरा मानना है कि संत पापा फ्राँसिस की कल्पना के अनुसार कलीसिया के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए यह एक बड़ी शक्ति है। धर्मसंघी, विशेष रूप से धार्मिक महिलाएं अपनी संख्या के आधार पर, भारत के कोने-कोने में (और कई अन्य देशों में भी) ईश्वर के प्रेम का प्रचार करती हैं, जैसे सड़कों पर रहने वाले उत्पीड़ित बच्चों को आश्रय देती हैं, स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करती हैं मानव तस्करी को रोकने के लिए काम करती हैं, स्कलों और विश्वविद्यालयों में अध्यापन का कार्य करती हैं और पर्यावरण संरक्षण पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भाग लेती हैं, इत्यादि।

क्या इसका मतलब यह है कि भारत में धार्मिक पुरुषों और महिलाओं के जीवन जीने के तरीका उत्तम है? निस्संदेह, धार्मिक लोग गहरी प्रतिबद्धता के साथ काम कर रहे हैं, कलीसिया को एक बहुधार्मिक और बहुसांस्कृतिक भारतीय सेटिंग में "फील्ड अस्पताल" के रूप में पेश कर रहे हैं। लेकिन हमें भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, संत पापा की तरह, जो समस्याओं के बावजूद अपने सुधार एजेंडे के साथ आगे बढ़ रहे हैं। हम उस कलीसिया का हिस्सा हैं और हमारे जीवन में भी सुधार की जरूरत है। हमें सबसे पहले विनम्रतापूर्वक यह स्वीकार करने की आवश्यकता है कि हम सभी पापी हैं हमें परमेश्वर की दया की आवश्यकता है। अच्छी बात यह है कि कलीसिया में हमारे पास एक अगुवा है, जो स्वयं एक धर्मसंघी हैं और हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

संत पापा फ्राँसिस और अल-अजहर के ग्रैंड इमाम अहमद अल-तैयब
संत पापा फ्राँसिस और अल-अजहर के ग्रैंड इमाम अहमद अल-तैयब

संत पापा फ्राँसिस के कई कार्यों में से एक है अंतर्धार्मिक संवाद,विशेष रूप से मुसलमानों के साथ। इस तरह के संवाद को बढ़ावा देने के लिए उनकी एक यात्रा के दौरान मैं उनसे नवंबर 2022 में बहरीन में मिली थी। यह मेरे लिए इतना गहरा, परिवर्तनकारी अनुभव था - हमारे बीच एक हार्दिक मुस्कान का आदान-प्रदान हुआ। वे आत्मीयता के साथ लोगों से मुलाकात करते हैं। हालांकि भारत में बड़ी संख्या में धर्मसंघी प्रेरितिक कार्यों में लगे हुए हैं, एक बड़े देश में विभिन्न धर्मों के सह-अस्तित्व में, हम धर्मसंघियों को बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।

भारत में जिस दूसरी बड़ी चुनौती का हम सामना करते हैं, जैसा कि ‘लौदातो सी’ में रेखांकित किया गया है, वह हमारे सामान्य घर की देखभाल है। भारत एक तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाला देश है और दूसरों के साथ बराबरी करने की अपनी दौड़ में, यह पर्यावरण संबंधी चिंताओं को त्यागने का प्रलोभन है। भारत में धर्मसंघियों को इस क्षेत्र में अधिक से अधिक खुद को प्रतिबद्ध करने की आवश्यकता है।

 भारतीय कलीसिया भी उस बात से पीड़ित है जिसे संत पापा फ्राँसिस अक्सर बड़ी कलीसिया को प्रभावित करने वाले मुद्दे के रूप में संदर्भित करते हैं: याजकवाद। कई अवसरों पर, संत पापा फ्राँसिस ने कलीसिया में महिलाओं की भूमिका के महत्व की बात की है और उनके द्वारा किए गए योगदान को स्वीकार किया है। 1 फरवरी, 2022 को अपने वीडियो संदेश में, जिसमें उन्होंने फरवरी महीने को समर्पित महिलाओं के लिए समर्पित किया, उन्होंने कहा, “धर्मबहनों और समर्पित महिलाओं के बिना कलीसिया का क्या होगा? उनके बिना कलीसिया को समझा नहीं जा सकता।”

किसी की आलोचना किए बिना, भारतीय धर्मसंघीय सम्मेलन की अध्यक्ष के रूप में, मैं सम्मानपूर्वक वीडियो में उनके शब्दों को हमारे चिंतन के लिए यहां प्रस्तुत करना चाहती हूँ: "मैं [धार्मिक महिलाओं] को विरोध के लिए आमंत्रित करता हूँ, जब कुछ मामलों में उनके साथ गलत व्यवहार किया जाता है, कलीसिया के भीतर भी; वे इतनी अधिक सेवा करती हैं कि उन्हें दासता में बदल दिया जाता है — कभी-कभी, कलीसिया के पुरुषों द्वारा।”

सबसे महत्वपूर्ण रूप से हम धर्मबहनों के लिए, बहरीन की अपनी यात्रा के बाद संत पापा विमान पर अपनी टिप्पणी में कहा, "जो समाज महिला को उसका [उचित] स्थान देने में असमर्थ है वह आगे नहीं बढ़ता है।" उन्होंने आगे कहा, "मैंने देखा है कि हर बार जब कोई महिला वाटिकन में नौकरी करने आती है, तो चीजें बेहतर हो जाती हैं।" उन्होंने मानवता की भलाई के लिए पुरुषों और महिलाओं को मिलकर काम करने के लिए भी प्रोत्साहित किया।

मुझे यह स्वीकार करना चाहिए कि मैं साहस और करुणा के साथ जीने और नेतृत्व करने के लिए और भी अधिक प्रेरित और संकल्पित हूँ, अपनी टीम के साथ मिलकर महिलाओं को उनकी आंतरिक शक्ति को प्रयोग करने हेतु अनुप्रणित करने और हममें ईश्वर की प्रेमपूर्ण उपस्थिति में विश्वास करने के लिए प्रेरित करते हैं।

भारत में सभी काथलिक धर्मसंघियों की ओर से, मैं हमारे प्यारे संत पापा फ्राँसिस को 10वीं वर्षगांठ की बधाई देती हूँ और उनके मिशन पर ईश्वर की प्रचुर आशीष के लिए प्रार्थना करती हूँ। वे लंबे समय तक ईश्वर की इच्छा के अनुसार हमारा नेतृत्व करते रहें और विशेष रूप से अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद प्राप्त करें।

हम आपसे प्यार करती हैं, संत पापा फ्राँसिस!

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21 March 2023, 17:57