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यूक्रेन में ग्रीक काथलिक कलीसिया के प्रमुख महाधर्माध्यक्ष शेवचुक यूक्रेन में ग्रीक काथलिक कलीसिया के प्रमुख महाधर्माध्यक्ष शेवचुक 

महाधर्माध्यक्ष शेवचुक : यूक्रेन को न भूलें

कीव - हलेक के महाधर्माध्यक्ष ने यूरोप और विश्व के काथलिकों से अपील की है कि वे यूक्रेन के लोगों की जारी पीड़ा को न भूलें और उन्होंने अब तक मिले सभी सहयोगों और समर्थन के लिए अपना आभार प्रकट किया है।

वाटिकन न्यूज

यूक्रेन, शनिवार, 24 फरवरी 2024 (रेई) : यूक्रेन में ग्रीक काथलिक कलीसिया के प्रमुख महाधर्माध्यक्ष शेवचुक, यूक्रेन में युद्ध के दो साल पूरा होने पर वाटिकन मीडिया से बात करते हुए यूक्रेनी लोगों की शांति की चाह और उन्हें सामग्री एवं प्रेरितिक समर्थन प्रदान करने के कलीसिया के प्रयासों के बारे में बात की।

महाधर्माध्यक्ष ने कहा, “हम विनयपूर्वक प्रभु से अपने लोगों के लिए शांति हेतु प्रार्थना करते हैं कि यह युद्ध जल्द से जल्द समाप्त हो; हम प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर हमें पीड़ा और मृत्यु से बचाएँ। लेकिन हमें इस बात से अवगत होना चाहिए कि हम जितना माँगते हैं वे उससे अधिक देने के लिए तैयार हैं। इससे हमें आशा मिलती है।”

यूक्रेन जब 24 फरवरी 2022 को रूस द्वारा छेड़े गए भीषण युद्ध की दूसरी वर्षगांठ मना रहा है महाधर्माध्यक्ष स्वीतोस्लाव शेवचुक ने लोगों की शांति की चाह को व्यक्त करते हुए कहा है कि हर दिन की शुरूआत प्रार्थनाओं के साथ होती है, क्योंकि हर दिन "सायरन और विस्फोटों की आवाज" से गूँजता है, जिसने पिछले दो वर्षों में देश को तबाह कर दिया है।

प्रश्न - पिछले दो वर्षों से, यूक्रेन में लोग लगभग प्रतिदिन सायरन और विस्फोटों की आवाज़ सुनकर जागते हैं। कुछ लोग घबराहट के साथ खबर पढ़ते हैं। कई लोगों को अपने उन प्रियजनों की चिंता है जो मोर्चे पर हैं या बहुत खतरनाक जगहों पर तैनात हैं। जब आप जागते हैं तो आपके पहले विचार और प्रार्थनाएँ क्या होती हैं?

महाधर्माध्यक्ष शेवचुक - सुबह उठते ही मेरी पहली प्रार्थना धन्यवाद की प्रार्थना होती है, क्योंकि जब आप जीवित जागते हैं तो आपके पास ईश्वर को धन्यवाद देने के कई कारण होते हैं; सबसे पहले सकुशल होने के लिए, एक नए दिन के लिए, जीवन के उपहार के लिए, जिसको हमें ईश्वर, अपनी कलीसिया, अपने लोगों के लिए उपहार में बदलना चाहिए।

हाल ही में, मुझे नबी इसायस के इन शब्दों में धन्यवाद की इस प्रार्थना का अर्थ मिला है: 'तब तुम पुकारोगे, और प्रभु उत्तर देंगे; तुम चिल्लाओगे, और वे कहेंगे, 'मैं यहाँ हूँ।' (इसा. 58:9 है)

यह मुझे सचमुच प्रभावित करता है और दूसरी प्रार्थनाओं को अर्थ देता है क्योंकि यह आशा का शब्द है: यह कहता है कि हम जितना मांगते हैं ईश्वर उससे कहीं अधिक देने के लिए तैयार हैं। जाहिर है, हम प्रभु से अपने लोगों के लिए शांति की कामना करते हैं, हम प्रार्थना करते हैं कि यह युद्ध जल्द से जल्द समाप्त हो, हम प्रभु से हमें पीड़ा से, मृत्यु से बचाने के लिए प्रार्थना करते हैं। लेकिन हमारे अनुरोधों के साथ इस प्रार्थना को शुरू करने से पहले, यह जानना महत्वपूर्ण है कि हम जितना मांगते हैं ईश्वर उससे कहीं अधिक देने के लिए तैयार हैं। इससे हमें आशा मिलती है।

प्रश्न- युद्ध मृत्यु लाता है, पीड़ा लाता है, घृणा पैदा करता है और गंभीर सामाजिक समस्याएँ उत्पन्न करता है। कलीसिया इसका सामना कैसे करना चाहती है?

महाधर्माध्यक्ष शेवचुक - मुझे कहना होगा कि व्यापक स्तर के युद्ध के इन दो वर्षों में - लेकिन युद्ध वास्तव में दस वर्षों से चल रहा है - हमारी कलीसिया ने एक विशेष प्रकार की प्रेरितिक देखभाल विकसित की है जिसे मैं 'शोक की प्रेरितिक देखभाल' कहता हूँ क्योंकि हमें उन लोगों का साथ देना चाहिए जो रोते हैं, जो पीड़ित हैं, जो अपने प्रियजनों, अपने घर, अपनी दुनिया को खोने का शोक मनाते हैं।

यह एक चुनौती है क्योंकि खुश लोगों के पुरोहित बनना बहुत आसान है। शायद आज पश्चिमी संस्कृति को उस चीज़ की ज़रूरत है जिसे हम 'आनंद की प्रेरितिक देखभाल', या 'आराम की प्रेरितिक देखभाल' कहेंगे, जो उपभोक्तावादी दुनिया के लिए प्रेरितिक देखभाल है। संत पापा अक्सर कहते हैं कि इस प्रेरितिक देखभाल का मतलब आधुनिक मनुष्य को बर्बादी की संस्कृति के खिलाफ चेतावनी देना है जो कम जिम्मेदारी के साथ अधिक आनंद की तलाश करते हैं। लेकिन युद्ध के संदर्भ में, हमें एक पूरी तरह से अलग चुनौती का सामना करना पड़ता है: हम हर दिन अपने देश, अपने शहरों के विनाश की त्रासदी को जीते हैं, हर दिन हम मौत का सामना करते हैं, और दुर्भाग्य से, हम अभी भी नहीं जानते कि यह कब समाप्त होनेवाला है। इसलिए, हमें अपने लोगों की गहरी पीड़ा की स्थिति का सामना करना पड़ता है और हम अक्सर शक्तिहीन महसूस करते हैं।

प्रश्न : हम क्या कर सकते हैं? कभी-कभी कुछ करने के बजाय उन लोगों के साथ उपस्थित रहना ही महत्वपूर्ण होता है : जो रोते हैं और यह दिखाने की कोशिश करना कि ईश्वर हमारे साथ हैं। उस माँ के लिए उपयुक्त शब्द ढूंढना जो अपने बेटे की मृत्यु पर शोक मना रही है, उस युवा को कहने के लिए शब्द ढूँढना जिसने अपने पैर खो दिए हैं और नहीं जानता कि कैसे जीना है, या एक बच्चा जिसने अपनी माँ की मृत्यु देखी है। आप इस बेचारे बच्चे को क्या कह सकते हैं जो न सिर्फ दूसरों से, बल्कि खुद से भी जुड़ना नहीं जान रहा है?

शोक की यह प्रेरितिक देखभाल एक चुनौती है, लेकिन यह आशा की भी प्रेरितिक देखभाल है, क्योंकि हम देखते हैं कि ईसाई धर्म हमें अपने नुकसान से दुःखी लोगों के बीच पुनरुत्थान की आशा लाने के लिए कहता है। यह हमारा जीवन है, कलीसिया का जीवन है, और हम यूक्रेन में युद्ध की इस बड़ी त्रासदी में सुसमाचार का प्रचार करते हैं।

प्रश्न : मैं यह भी पूछना चाहता था कि आपको - व्यक्तिगत रूप से, पुरोहितों, धर्मसमाजियों - को इस अंधेरे समय में लोगों का साथ देने की ताकत कहाँ से मिलती है?

महाधर्माध्यक्ष शेवचुक - मुझे ईमानदारी से स्वीकार करना चाहिए कि यह एक रहस्य है। हम वास्तव में नहीं जानते। जब आप पिछले दो वर्षों के युद्ध पर नजर डालेंगे तभी आप समझ पाएंगे कि आपने अपनी ताकत कहाँ पाई है।

शायद यह ईश्वर की वही उपस्थिति है जिसे मूसा ने सिनाई में अनुभव किया था जब प्रभु ने उससे कहा था: "तू मेरा चेहरा नहीं देख सकता, क्योंकि कोई मुझे देखकर जीवित नहीं रह सकता।" (निर्गमन 33:20) हम इस उपस्थिति को पहचान सकते हैं जो हमें प्रेरित करती है, जो हमारी ताकत को फिर से जागृत करती है, केवल उस प्रभु की पीठ को देखकर जो हमारे पास से गुजरते हैं, जो आपके दर्द से गुजरते हैं।

मुझे कहना होगा कि ऐसे विशिष्ट क्षण होते हैं जब हम थका हुआ महसूस करते हैं: प्रार्थना और कलीसिया के संस्कार हमें शक्ति देते हैं। आज हम उस बात की पुष्टि कर सकते हैं जो ईसाइयों ने प्रारंभिक शताब्दियों में कहा था: 'सीने दोमिनिको नॉन पोसुमुस', यानी, मिस्सा बलिदान के बिना  हम रह नहीं सकते या काम नहीं कर सकते।

पाप स्वीकार संस्कार बार-बार ली जाती है: मेल-मिलाप संस्कार की एक महान पुनः खोज हुई है जो हमारे आध्यात्मिक घावों को ठीक करती है, बल्कि मानव मन को भी ठीक करती है। क्योंकि हम किसी भी क्षण मरने के निरंतर खतरे में रहते हैं। उदाहरण के लिए, मुझे नहीं पता कि मैं एक घंटे के बाद भी जीवित रहूँगा या नहीं: यही हमारी वास्तविकता है। इसलिए, हमें मरने और खुद को प्रभु के सामने प्रस्तुत करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।

फिर हमारी गतिविधि में एक तीसरा क्षण भी आता है: जाहिर है, हर बमबारी के बाद, हर मिसाइल हमले के बाद, हमें डर का एहसास होता है, हम नए मनोवैज्ञानिक आघात झेलते हैं, लेकिन डर की इस ऊर्जा को कार्रवाई में बदलना महत्वपूर्ण है। कई लोगों ने कहा है कि हर मिसाइल हमले के बाद उन्हें अपनी गतिविधि में बढ़ोतरी नज़र आती है। जब आप विस्फोटों की गर्जना और अपने घर के हिलने की आवाज़ सुनते हैं तो यह ऊर्जा जो आपके अंदर फूटती है, एकजुटता, सेवा के कार्यों में परिवर्तित होती है: अच्छे काम करने से आपको ठीक होने में मदद मिलती है, आपका दर्द रोनेवालों के साथ एकात्मता में बदलता है, आपका दुःख सहानुभूति और ख्रीस्तीय परोपकार में बदलता है। ‘होने से करने’ के इस बदलाव, बल्कि सकारात्मक और रचनात्मक तरीके से, कुछ करना हमें आशा देता है। शायद इन तीन वास्तविकताओं को हमारे लचीलेपन के रहस्य, आज यूक्रेनी लोगों की ख्रीस्तीय आशा के रहस्य के रूप में देखा जा सकता है।

 

 

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24 February 2024, 17:23