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श्रीलंका में कलीसिया और अंतरधार्मिक संवाद की चुनौती

मैगिस फाउंडेशन के साथ श्रीलंका की अपनी यात्रा की आखिरी कड़ी में हम (वाटिकन रेडियो, वाटिकन न्यूज के संवाददाता) पहुंच गए हैं। श्रीलंका की कलीसिया पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता के लिए प्रयास कर रही है और अभी भी 2019 ईस्टर हमलों पर जवाब की प्रतीक्षा कर रही है, साथ ही अपने पदों में चल रहे याजकवाद पर काबू पाने के लिए संघर्ष कर रही है।

अंतोनेला पलेर्मो

नेगोंबो (श्रीलंका), बुधवार 20 2024 (वाटिकन न्यूज) : श्रीलंका में अंतरधार्मिक संवाद की चुनौती की स्पष्ट तस्वीर प्राप्त करना मैगिस फाउंडेशन (जेसुइट मूवमेंट एंड एक्शन टुगेदर फॉर डेवलपमेंट) के साथ हमारी यात्रा के उद्देश्यों में से एक था, जो एशियाई राष्ट्र में विशेष रूप से शैक्षिक क्षेत्र में कई परियोजनाओं का समर्थन करता है। इन परियोजनाओं (देश के उत्तर में दो गांवों में) का दौरा फरवरी की शुरुआत में इटालियन एपिस्कोपल कॉन्फ्रेंस (सीईआई) के एक प्रतिनिधिमंडल ने भी किया था।

जो उभर कर सामने आया वह एक कलीसिया की छवि थी, जो महत्वपूर्ण होते हुए भी, कुछ क्षेत्रों में अभी भी पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता के लिए प्रयास कर रही है और 2019 के ईस्टर हमलों पर राजनीतिक और न्यायिक अधिकारियों से संतोषजनक उत्तर की प्रतीक्षा कर रही है, जबकि इसके पदों में चल रहे याजकवाद पर काबू पाने के लिए धर्मसभा की भावना को पूरी तरह से आत्मसात करने के लिए संघर्ष कर रही है।

ईस्टर हमलों पर अभी भी सच्चाई का इंतजार है

नेगोंबो में संत सेबास्टियन पल्ली के पल्लीपुरोहित फादर मंजुला निरोशन कहते हैं, "सरकार ने हमें जो जवाब दिए हैं, हम उनसे अभी तक संतुष्ट नहीं हैं।" यह उन तीन चर्चों में से एक हैं, जिन पर 21 अप्रैल 2019 के ईस्टर समारोह के दौरान छह आत्मघाती हमलावरों का समन्वित हमला हुआ था, जिन्होंने विभिन्न शहरों में तीन होटलों को भी निशाना बनाया था। हमलों में 279 लोग मारे गए और कई अन्य घायल हो गए। फादर द्वारा व्यक्त असंतोष वही है जो श्रीलंकाई काथलिक समुदाय शुरू से ही व्यक्त कर रहा है, सरकार की अपर्याप्त जांच की आलोचना कर रहा है और यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय जांच के लिए संयुक्त राष्ट्र में एक याचिका भी पेश की गई है।

इस गिरजाघऱ का नवीनीकरण तेजी से किया गया और अब यह शहर के चालीस गिरजाघऱों में से एक, स्वागतयोग्य और सुखद प्रतीत होता है, हालांकि पुलिस द्वारा इसकी लगातार निगरानी की जाती है। फादर निरोशन कहते हैं कि उस हमले के दौरान पूरे परिवार की हत्या कर दी गई  और कुछ परिवारों में केवल माता-पिता ही जीवित बच गये।

पीड़ितों को कलीसिया का समर्थन

संत सेबास्टियन पल्ली में लगभग दो हज़ार काथलिक परिवार हैं। फादर निरोशन का कहना है कि जीवित बचे लोगों को कुछ घरों का पुनर्निर्माण करने, व्यावसायिक गतिविधियों को शुरू करने के लिए वित्तीय सहायता प्राप्त करने, स्थायी चोटों का सामना करने वाले लोगों के लिए धन जुटाने में मदद की गई है। "हमने बिलों और चिकित्सा खर्चों का भुगतान करके उनकी मदद की।

उन्होंने बताया कि इस त्रासदी का अन्य धार्मिक समुदायों के साथ संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ा है, जो आम तौर पर अच्छे हैं। "बहुत सहयोग है और हम अन्य धर्मों के प्रतिनिधियों के साथ भी काम करते हैं। आखिरकार, श्रीलंका में कई धर्म हैं। ईस्टर हमलों के मामले में, कुछ लोग हमें जवाबी प्रतिक्रिया में भड़काना चाहते थे, लेकिन हमारी कलीसिया नेताओं ने  किसी भी तरह की जवाबी कार्रवाई नहीं होने दी।”

काथलिक समुदाय की भाईचारे के प्रति प्रतिबद्धता

"वास्तव में, उन घटनाओं के पांच साल बाद, हमें इस देश में रहने का कोई डर नहीं है क्योंकि हमें लोगों द्वारा स्वीकार किया जाता है", येसु धर्मसमाजियों द्वारा स्थापित नेशनल सेमिनरी के रेक्टर ने पुष्टि की। फादर क्विंटस फर्नांडो एस.जे. बताते हैं कि ख्रीस्तियों का मानना है कि हमले धार्मिक रूप से प्रेरित नहीं थे, बल्कि धार्मिक नफरत फैलाने का एक राजनीतिक मकसद था। जेसुइट फादर क्विंटस ने कहा, “हमें ऐसे राजनेताओं की ज़रूरत है जो लोगों से प्यार करते हैं, जो राष्ट्र से प्यार करते हैं और जो देश से प्यार करते हैं।" उन्होंने यह पुष्टि करते हुए कहा कि विभिन्न आस्था समुदायों के बीच परस्पर सम्मान और भाईचारा है।

पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता की ओर मार्ग

जनवरी 2015 में श्रीलंका की अपनी प्रेरितिक यात्रा के दौरान संत पापा फ्राँसिस ने अफसोस जताया कि कई वर्षों से इस देश के पुरुष और महिलाएं नागरिक संघर्ष और हिंसा के शिकार रहे हैं और उन्होंने उपचार और एकता की अपील की। उन्होंने कहा, "मुझे उम्मीद है कि अंतरधार्मिक और विश्वव्यापी सहयोग यह प्रदर्शित करेगा कि, अपने भाइयों और बहनों के साथ सद्भाव में रहने के लिए, पुरुषों और महिलाओं को अपनी पहचान नहीं भूलनी चाहिए, चाहे वह जातीय हो या धार्मिक।"

आज, बादुल्ला के धर्माध्यक्ष जूड निशांत सिल्वा, श्रीलंका में शांतिपूर्ण माहौल बनाने में मदद करने में धार्मिक नेताओं की बड़ी जिम्मेदारी के बारे में बात करते हैं। धर्माध्यक्ष जूड यहां तक कहते हैं कि राजनीतिक एजेंडे में 2019 के क्रूर हमलों के पीछे क्या था, इस पर प्रकाश डालने में कोई दिलचस्पी नहीं है। "हमें अन्य धर्मों के साथ अंतरधार्मिक संवाद और संबंधों की आवश्यकता है, लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि केवल काथलिक ही ऐसे लोग हैं जो इसकी परवाह करते हैं, शायद जो वास्तव में इसे चाहते हैं।"

याजकवाद पर काबू पाना

अंतरधार्मिक संवाद के खुलेपन के बावजूद, श्रीलंका की कलीसिया को अपने पदों में विभिन्न प्रकार के 'बंद' से निपटना पड़ता है। इस पहलू को देश के कई जेसुइट पुरोहितों द्वारा उजागर किया गया है जिन्होंने टिप्पणी की है कि, विशेष रूप से उत्तर के कुछ क्षेत्रों में, पुरानी जाति व्यवस्था अभी भी कलीसिया के प्रेरितिक कार्य को प्रभावित करती है।

सिस्टर पेट्रीसिया लेमस, ग्वाटेमाला की एक कॉम्बोनी सिस्टर, जो साढ़े चार साल से हैटन में हैं, लोयोला सेंटर की सहयोगी हैं। उन्होंने स्थानीय संस्कृति में निहित कुछ मुद्दों का उल्लेख किया जो एक ऐसी कलीसिया के निर्माण में बाधा डालते हैं जिसमें लोकधर्मी और धर्मसंघी आपसी आदान-प्रदान में सक्रिय रूप से सहयोग करते हैं।

सिस्टर पेट्रीसिया ने इग्नेशियन आध्यात्मिकता की प्रशंसा की जो प्रामाणिक रूप से मिशनरी शैली में जीने में मदद करती है। वह कहती हैं, ''मैं चाहती हूँ कि हर कोई अधिक खुली और स्वतंत्र कलीसिया बनाने के लिए संत पापा फ्राँसिस की आवाज सुने। उदाहरण के लिए, मुझे यह केंद्र वास्तव में पसंद है क्योंकि बहुसंख्यक हिंदू हैं और अंततः हम विभिन्न रूपों में उसी ईश्वर की तलाश कर रहे हैं।"

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20 March 2024, 16:31