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पापस्वीकार संस्कार में भाग लेते विश्वासी पापस्वीकार संस्कार में भाग लेते विश्वासी  संपादकीय

पापस्वीकार संस्कार का एक नया दृष्टिकोण, आनन्द का संस्कार

क्षमाशीलता के केंद्र में ईश्वर हैं, जो हमारा आलिंगन करते, न कि हमारे पापों और अपमानों की सूची बनाते हैं।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 17 सितम्बर 2021 (रेई)- पापस्वीकार एक "आनन्द का संस्कार है", निश्चय ही यह स्वर्ग में और पृथ्वी पर एक उत्सव है। मंगलवार 14 सितम्बर को संत पापा ने कोशिचे के स्टेडियम में युवाओं को निमंत्रण दिया कि वे पापस्वीकार संस्कार को एक नये तरीके से जीयें।  

संत पापा ने पापस्वीकार संस्कार के एक नये दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला जो अनेक ख्रीस्तियों के अनुभव से भिन्न है तथा एक निश्चित ऐतिहासिक विरासत से अलग है।

संत पापा ने कहा कि पापस्वीकार संस्कार में सबसे पहले जीवन के उन क्षणों में सुधार आता है जिनमें हम उदास होते हैं।

जवान युवती पेत्रा के सवाल पर कि वे और उनके साथी किस तरह ईश्वर की करूणा के रास्ते पर आनेवाली बाधाओं से ऊपर उठ सकते हैं, संत पापा ने दूसरा सवाल किया, "यदि मैं पूछता हूँ ˸ कि आप क्या सोचते हैं जब आप पापस्वीकार के लिए जाते हैं?" निश्चय ही आपका उत्तर होगा "पाप", किन्तु क्या पाप ही हमारे पापस्वीकार का मुख्य विन्दु है? क्या ईश्वर चाहते हैं कि आप अपने बारे में, अपने पापों के बारे में सोचें अथवा उनके बारे में सोचकर उसके पास जाएं?"

संत पापा ने बुडापेस्ट में ख्रीस्तीय तरीके के बारे बतलाते हुए कहा था कि यह पीछे लौटने, अपने आप से बाहर निकलने एवं ईश्वर के लिए जगह खाली करने से शुरू होता है। यही तरीका पापस्वीकार में भी लागू होता है ˸ मैं पापस्वीकार संस्कार के केंद्र में अपने पापों की सूची से अपमानित नहीं हूँ – शायद एक ही तरह के पाप – जिन्हें पुरोहित के सामने स्वीकार करने के लिए कठिन लगता है बल्कि इस मुलाकात के केंद्र में ईश्वर हैं जो स्वागत करते, आलिंगन करते, क्षमा देते एवं उठाते हैं।"

संत पापा ने युवाओं से कहा कि "हमें पापस्वीकार के लिए सजा पूरा करने के मतलब से अपमानित रूप में नहीं जाना बल्कि एक बच्चे के रूप में पिता से आलिंगन प्राप्त करने हेतु जाना चाहिए। और पिता हमें हरेक परिस्थिति में ऊपर उठाते हैं, वे हमारे सभी पापों को क्षमा करते हैं।...ईश्वर हमेशा क्षमा करते हैं... हम किसी न्यायधीश के पास नहीं जाते जो लेखा-जोखा रखता बल्कि येसु के पास जाते हैं जो हमसे प्रेम करते एवं हमें चंगाई प्रदान करते हैं।"    

संत पापा ने सलाह दी कि एक पुरोहित को ईश्वर के स्थान पर होने का एहसास करना चाहिए जो हमेशा क्षमा करता, आलिंगन करता एवं स्वागत करता है। पापस्वीकार में हम ईश्वर को पहला स्थान दें। यदि ईश्वर मुख्य पात्र हैं तो सब कुछ सुन्दर होगा और पापस्वीकार संस्कार एक आनन्द का संस्कार बन जाएगा। जी हाँ, यह भय और न्याय का नहीं बल्कि आनन्द का संस्कार बनेगा।

अतः संत पापा द्वारा प्रस्तावित पापस्वीकार संस्कार का नया दृष्टिकोण हमें अपने पापों के लिए लज्जा के कैद में बंद नहीं रहने को कहता है, हमें शर्म से बाहर निकलना है क्योंकि ईश्वर हमारे लिए कभी लज्जा महसूस नहीं करते। जो लोग अपने आपको क्षमा नहीं कर सकते, ईश्वर भी उन्हें क्षमा नहीं दे सकते हैं क्योंकि तब हम बार-बार उसी पाप में गिरेंगे। संत पापा ने प्रश्न किया, "ईश्वर कब नाराज होते हैं? क्या क्षमा की याचना करने पर? नहीं, कभी नहीं। ईश्वर को तभी दुःख होता है जब हम सोचते हैं कि वे हमें क्षमा नहीं कर सकते। क्योंकि यह ऐसा कहने के समान है, 'आप प्रेम करने में कमजोर हैं' जबकि ईश्वर क्षमा करने में आनन्दित होते हैं। जब कभी वे हमें उठाते हैं, वे हमपर विश्वास करते हैं जैसा कि उन्होंने पहली बार किया। वे निराश नहीं होते बल्कि हम हताश हो जाते हैं। वे पापियों को हमेशा पापी की तरह नहीं देखते बल्कि ईश्वर के पुत्र-पुत्रियों की तरह देखते हैं। वे लोगों की गलतियों को नहीं देखते किन्तु प्यारे बच्चों के रूप में देखते हैं जो घायल हैं और जिन्हें अधिक सहानुभूति एवं कोमलता की जरूरत है। हम इसे न भूलें कि जब कभी हम पापस्वीकार करते हैं स्वर्ग में आनन्द मनाया जाता है। संत पापा ने कहा कि पृथ्वी पर भी ऐसा ही हो।    

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17 September 2021, 16:06