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संत अंसेलेम गिरजाघर में ख्रीस्तयाग अ्रपित करते संत पापा लियो 14वें संत अंसेलेम गिरजाघर में ख्रीस्तयाग अ्रपित करते संत पापा लियो 14वें  (AFP or licensor)

बेनेडिक्टाईन धर्मसंघियों से पोप : हमारे चुनौती भरे समय में ख्रीस्त को केंद्र में रखें

पोप लियो 14वें ने रोम में एवेंटीन पहाड़ी पर स्थित संत अंसेलेम गिरजाघर में इसके समर्पण की 125वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में ख्रीस्तयाग का अनुष्ठान किया तथा बेनेडिक्टाईन धर्मसंघियों को उनके मिशन में प्रोत्साहित किया।

वाटिकन न्यूज

रोम, मंगलवार, 11 नवंबर 2025 (रेई) : पोप लियो 14वें ने बेनेडिक्टाईन धर्मसंघियों को आमंत्रित किया है कि वे हमारे समय की चुनौतियों का सामना करने के लिए मंगलवार, 11 नवंबर को रोम के एवेंटाइन पहाड़ी पर संत अंसेलेम गिरजाघर के समर्पण की 125वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित ख्रीस्तयाग में ख्रीस्त को अपने जीवन के केंद्र में रखें।

उन्होंने कहा, "हम जो अचानक बदलाव देख रहे हैं, वे हमें उकसाते और प्रश्न करते हैं, ऐसे मुद्दे उठाते हैं जो पहले कभी नहीं देखे गए।"

पोप ने आगे कहा, "यह समारोह हमें याद दिलाता है कि प्रेरित संत पेत्रुस और उनके साथ संत बेनेडिक्ट तथा कई अन्य लोगों की तरह, हम भी अपने अस्तित्व और अपने मिशन के केंद्र में मसीह को रखकर ही अपने आह्वान की माँगों का जवाब दे सकते हैं, और इसकी शुरुआत उस विश्वास के कार्य से होती है जो हमें उन्हें उद्धारकर्ता के रूप में पहचानने और उसे प्रार्थना, अध्ययन और पवित्र जीवन के प्रति प्रतिबद्धता में बदलने के लिए प्रेरित करता है।"

संत अंसेलेम गिरजाघर, संत बेनेडिक्ट ऑर्डर के परिसर में स्थित है। वास्तव में, इस परिसर में ऑर्डर के मठाध्यक्ष, वर्तमान में मठाधीश जेरेमियास श्रोडर, उनके कूरिया, संत अंसेलेम के परमधर्मपीठीय एथेनेयुम और एक आवासीय महाविद्यालय भी है।

मठों ने अंधकारमय काल में शांति लाई है

पोप ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे उनके पूर्वाधिकारी पोप लियो 13वें ने इस परिसर और बेनेडिक्टाईन परिसंघ के विकास को दृढ़ता से प्रोत्साहित किया क्योंकि "उन्हें विश्वास था" कि संत बेनेडिक्ट का ऑर्डर "19वीं से 20वीं शताब्दी के संक्रमण काल ​​जैसे चुनौतियों से भरे समय में ईश्वर के सभी लोगों की भलाई के लिए बहुत मददगार हो सकता है।"

पोप लियो ने इस बात पर जोर दिया कि कैसे मठवाद अपनी शुरुआत से ही एक "सीमांत" रहा है जिसने "साहसी पुरुषों और महिलाओं को सबसे दूरस्थ और दुर्गम स्थानों में प्रार्थना, कार्य और दान के केंद्र स्थापित करने के लिए प्रेरित किया" और इस प्रकार आर्थिक दृष्टिकोण से, बल्कि खासकर, आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, उजाड़ क्षेत्रों को उपजाऊ भूमि में बदल दिया।

उन्होंने आगे कहा, "इस प्रकार, मठ ने इतिहास के सबसे अंधकारमय काल में भी, खुद को विकास, शांति, आतिथ्य और एकता के स्थान के रूप में स्थापित किया है।"

प्रभु की सेवा का एक विद्यालय बनें

उन्होंने इस परिसर को बेनेडिक्टाईन जगत में "एक धड़कता हुआ हृदय बनने की आकांक्षा" रखने के लिए प्रोत्साहित किया, जिसका केंद्र कलीसिया हो, जैसा कि उस संत की शिक्षाओं के अनुसार है जिसने इस धर्मसंघ को प्रेरित किया।

पोप ने यह भी कहा कि इस परिसर में पवित्र जीवन जीने की प्रतिबद्धता पहले से ही विभिन्न तरीकों से प्रकट हो रही है, "सबसे पहले धार्मिक अनुष्ठानों में, फिर लेक्सियो दिविना (परम्पारिक प्रार्थना) में, शोध में, प्रेरितिक देखभाल में, दुनियाभर के मठवासियों की भागीदारी के साथ और सबसे विविध पृष्ठभूमि एवं परिस्थितियों से आनेवाले पुरोहितों, धर्मसंघियों और लोकधर्मी लोगों के प्रति खुलेपन के साथ।" उन्होंने केंद्र और उसके संस्थानों को एक प्रामाणिक "प्रभु की सेवा के विद्यालय" के रूप में विकसित होते रहने का आह्वान किया।

नबी एजेकिएल के ग्रंथ से लिए गए पाठ की ओर इशारा करते हुए, जिसमें "मंदिर से बहती नदी की छवि" का वर्णन किया गया है, पोप ने कहा कि यह "हृदय द्वारा शरीर में जीवन रक्त पंप करने" के विचार को अच्छी तरह दर्शाता है, ताकि प्रत्येक अंग को दूसरों के हित के लिए पोषण और शक्ति प्राप्त हो सके।

दूसरे पाठ में, उन्होंने "आध्यात्मिक घर" के उल्लेख पर जोर दिया, जिसकी नींव मसीह नामक ठोस पत्थर पर रखी गई है।

पोप लियो 14वें ने जोर देकर कहा, "संत अंसेलेम के मेहनती छत्ते में, यही वह स्थान हो जहाँ सब कुछ शुरू होता है और जहाँ सब कुछ ईश्वर के समक्ष सत्यापन, पुष्टि और गहरी समझ पाने के लिए लौटता है।"

उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह संस्था कलीसिया और दुनिया को एक चुनी हुई प्रजा बनने का "भविष्यसूचक संदेश" भेजेगी, "ताकि हम उसके प्रशंसनीय कार्यों का प्रचार कर सकें जिसने हमें अंधकार से निकालकर अपने अद्भुत प्रकाश में बुलाया है।"

येसु को सबके पास पहुँचाएँ

पोप लियो ने यह भी कहा कि यह समर्पण "एक पवित्र इमारत के इतिहास में एक समारोही क्षण है जब इसे स्थान और समय, सीमित और अनंत, मनुष्य और ईश्वर के बीच मिलन स्थल के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है।"

उन्होंने द्वितीय वाटिकन महासभा के संविधान "साक्रोसांक्तुम कोन्चिलियुम" का हवाला देते हुए इस विचार को दोहराया, जिसमें बताया गया है कि कैसे कलीसिया "मानवीय और ईश्वरीय दोनों" है और "उसमें मानव ईश्वर के अधीन है, दृश्यमान अदृश्य के अधीन है, क्रिया चिंतन के अधीन है, और यह वर्तमान संसार उस आनेवाले शहर के अधीन है, जिसकी हम तलाश कर रहे हैं।"

पोप ने आगे कहा, "यह हमारे और इस दुनिया के हर पुरुष और महिला के जीवन का अनुभव है, उस अंतिम और मौलिक उत्तर की खोज में, जिसे न तो 'मांस और न ही रक्त' प्रकट कर सकता है, बल्कि केवल पिता ही प्रकट कर सकते हैं जो स्वर्ग में हैं; अंततः उसे येसु, 'मसीह, जीवित ईश्वर के पुत्र' की आवश्यकता है।"

उन्होंने उपस्थित लोगों को येसु की खोज करने और उन्हें सभी तक पहुँचाने का आह्वान करते हुए समापन किया, "उन उपहारों के लिए आभारी रहें जो उन्होंने हमें दिए हैं, और सबसे बढ़कर उस प्रेम के लिए जिसके साथ उन्होंने हमें आगे बढ़ाया है। यह मंदिर तब और अधिक आनंद का स्थान बन जाएगा, जहाँ हम दूसरों के साथ साझा करने की सुंदरता का अनुभव करेंगे जो हमें मुफ्त में मिला है।"

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11 नवंबर 2025, 17:21