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संत पापा ने तुर्की की कलीसियाई अगुवों से भेंट की संत पापा ने तुर्की की कलीसियाई अगुवों से भेंट की  (AFP or licensors)

संत पापा लियोः तुर्की की कलीसिया बीज और खमीर

संत पापा लियो 14वें तुर्की की अपनी प्रेरितिक यात्रा के दूसरे दिन इस्ताम्बुल के पवित्र आत्मा को समर्पित गिरजाघर में धर्माध्यक्षों, पुरोहितों, धर्मबंधुओं-धर्मबहनों और प्रेरितिक कार्य में संलग्न लोगों से भेंट की।

वाटकिन सिटी

संत पापा लियो ने तुर्की की कलीसियाई अगुवों को अपने संबोधन में छोटेपन के तर्क को आशा से पुष्ट करने का आहृवान किया।

संत पापा ने तुर्की की अपनी प्रेरितिक यात्रा के लिए ईश्वर के प्रति कृतज्ञता के भाव प्रकट की अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा कि यह पवित्र भूमि ख्रीस्तीयता का जन्म स्थल है जहाँ पुराने और नये विधान एक दूसरे का आलिंगन करते हैं और जहाँ धर्मसभों की बातें असंख्य पन्नों में लिखी गयीं।

तुर्की में ख्रीस्त की जड़ें

विश्वास की जड़ें गहरी हैं जो हमें पिरो कर रखती हैं। ईश्वर के बुलावे के प्रति आज्ञाकारी हमारे पिता अब्राहम ऊर से निकलकर हरान पहुंचें जो आज तुर्की का दक्षिणी प्रांत है, इस भांति वे प्रतिज्ञात देश के लिए निकले पड़े। समय के पूरा होने पर येसु की मृत्यु और पुनरूत्थान के बाद शिष्यगण भी अनातोलिया आये, जहाँ अंताखिया में उन्हें पहली बार ख्रीस्तीय घोषित किया गया।(प्रेरित 11. 26)। वहाँ से संत पौलुस ने अपनी प्रेरितिक यात्रा की शुरूआत करते हुए बहुत से समुदायों की नींव रखी, जैसे की आतोलियन प्रायद्वीप के किनारे एफेसस जहाँ प्रिय शिष्य और सुसमाचार लेखन योहन के जीवनयापन करते हुए मृत्यु को प्राप्त किया।    

इतिहास के इन तत्थों के अलावे संत पापा लियो ने बेजाटाईन इतिहास, कोंस्टटीनोपल की कलीसिया और पूरे लेभाट में ख्रीस्तीयता के प्रसार का जिक्र किया जिसके फलस्वरूप आज भी तुर्की में हम पूर्वी रीति के ख्रीस्तीयों, आरमेनियाई, सीरियाई और खलदेई समुदायों के अलावे लातीनी रीति को पाते हैं।

सुसमाचारी दृष्टिकोण

संत पापा लियो ने कहा कि आप के समुदाय इन लम्बे इतिहास की समृद्धि से उत्पन्न होते हैं, और ये आप हैं जो आज विश्वास के इस बीज को पोषित करने हेतु बुलाये जाते हैं जो हमें अब्रहाम, प्रेरितों और अपने पूर्वजों से मिला है। हम अपने माहिममय इतिहास को सिर्फ याद करने और उसकी आराधना करने को नहीं बल्कि सुसमाचारी दृष्टिकोण को धारण करने हेतु बुलाये जाते हैं जिसे पवित्र आत्मा हमारे लिए आलोकित करते हैं।

उन्होंने कहा कि जब हम ईश्वर की निगाहों से देखते हैं, हम इस बात को पाते हैं कि उन्होंने हमारे बीच आते हुए छोटेपन का चुनाव किया। यह ईश्वर के कार्य करने का तरीका है जिसका साक्ष्य देने हेतु हम बुलाये जाते हैं। नबियों ने ईश्वर की प्रतिज्ञा को एक छोटी टहनी से फूट कर निकलने, (इसा.11.1), छोटे लोगों के विश्वास में (मर.10.13-16), ईश राज्य को शक्तिशाली में नहीं,(लूका.17.20-21) बल्कि सबसे छोटे बीजों में बढ़ने (मार.4.31) के रुप में घोषित किया।

संत पापा लियो इस्तांबुल के पवित्र आत्मा महागिरजाघर में
संत पापा लियो इस्तांबुल के पवित्र आत्मा महागिरजाघर में   (@Vatican Media)

छोटापन कलीसिया का गुण

छोटे होने का यह तर्क कलीसिया की सच्ची शक्ति है। यह इसके संसधनों या संरचनाओं में नहीं, न ही प्रेरितों के फलहित होने वाले कार्यों, आर्थिक शक्ति या सामाजिक प्रभावकारी पर निर्भर करता है। कलीसिया बल्कि मेमने की ज्योति पर आधारित है जो उसके चारों ओर एकत्रित होती है, वह पवित्र आत्मा की शक्ति से दुनिया में भेजी जाती है। इस प्रेरिताई में वह निरंतर अपने ईश्वर की प्रतिज्ञा में विश्वास करने को बुलाई जाती है। संत पापा फ्रांसिस के शब्दों की याद दिलाते हुए संत पापा लियो ने कहा, “एक ख्रीस्तीय समुदाय में जहाँ विश्वासी, पुरोहितगण और धर्माध्यक्ष छोटे मार्ग का अनुसरण नहीं करते तो उसका कोई भविष्य नहीं है... ईश्वर का राज्य छोटी चीजों में प्रस्फुटित होता है, सदैव उन चीजों में जो छोटी हैं।” (संत मार्था प्रवचन 3 दिसम्बर 2019)।

तुर्की की कलीसिया छोटी, अपितु बीज और खमीर

संत पापा ने लियो के तुर्की की कलीसिया के संबोधन में कहा कि यह एक छोटा समुदाय है यद्यपि यह एक बीज और ईश्वरीय राज्य के लिए खमीर की भांति है। संत पापा ने उन्हें प्रोत्साहन देते हुए कहा, “आप आशा के ठोस आध्यात्मिक भाव को अपने में जागृत करें, जो हमें विश्वास में ईश्वर के संग संयुक्त करता है। हमें खुशी में सुसमाचार का साक्ष्य देते हुए भविष्य की ओर आशा में देखने की आवश्यकता है। आशा की कुछ निशानियों को हम पहले से ही अपने बीच उपस्थित पाते हैं। अतः हम ईश्वर से कृपा की मांग करें जिससे हम उन्हें पहचानते हुए पोषित कर सकें। कुछ दूसरी निशानियाँ है शायद हमें उन्हें धैर्य़ में बने रहते हुए अपनी सृजनात्मकता में साक्ष्य देने की जरुरत है।”

सुनें और युवाओं का साथ दें

युवाओं के द्वारा कलीसिया के द्वार को सवालों और चिंतनों के माध्यम खटखटाये जाने को संत पापा लियो ने अति सुन्दर और आशाजनक संकेत कहा। इस संदर्भ में उन्होंने प्रेरितिक कार्यों को निरंतरता में और भी अच्छी तरह से करने का आहृवान किया। उन्होंने कहा, “आप सुनें और युवाओं का साथ दें, उन स्थानों में विशेष ध्यान दें जहाँ तुर्की को सेवा की जरुरत हैः अंतरधार्मिक और एकतावर्धकवार्ता, स्थानीय लोगों में विश्वास का प्रचार और प्रवासियों तथा शरणार्थियों के लिए प्रेरित सेवा।”

संत पापा इस्तांबुल के महागिरजाघर में
संत पापा इस्तांबुल के महागिरजाघर में   (@Vatican Media)

चुनौतियाँ

संत पापा ने प्रवासियों और शरणार्थियों की देख-रेख पर विशेष चिंतन करने का आग्रह करते हुए कहा कि इस देश में उनकी बड़ी संख्या, अति संवेदनशीलों के स्वागत और सेवा के संदर्भ में चुनौती उत्पन्न करती है। इसके साथ ही हम कलीसिया को स्वयं अपरिचितों के द्वारा निर्मित पाते हैं- आप पुरोहितगण, धर्मबहनें और प्रेरितिक कार्य में संलग्न आप दूसरे स्थानों से आये हैं। “यह हमारे लिए एक विशेष चुनौती उत्पन्न करता है कि हम अपने को तुर्की की भाषा, परंपरा और संस्कृति के अनुरूप सुसज्जित करें, सुसमाचार का प्रचार सदैव संस्कृतिकरण से होता है।”

संत पापा लियोः तुर्की की कलीसिया बीज और खमीर

संत पापा ने इस बात की याद दिलाते हुए कहा कि आप की इस धरती पर आठ एकतावर्धक धर्मसभा का आयोजन किया गया है। यह हमारे लिए नीसिया धर्मसभा की 1700वीं सालगिराह को रेखांकित करता है, “जो न केवल कलीसिया के इतिहास हेतु बल्कि पूरी मानवता के लिए मील का एक पत्थर है।”

पहली चुनौती

नाईसीन धर्मसार के अनुरूप संत पापा लियो ने तुर्की की छोटी कलीसिया के सम्मुख तीन मुख्य चुनौतियों का जिक्र कियाः प्रथम चुनौती के बारे में उन्होंने कहा कि यह हमारे विश्वास की महत्वपूर्णत और ख्रीस्तीय होने के सार को समझना है। नीसिया कलीसिया को एकता में पिरोती है। यह धर्मसार एक धर्मसिद्धांत सूत्र मात्र नहीं है बल्कि विभिन्न संवेदनाओं, आध्यात्मिकताओं और संस्कृतियों के माध्यम खोज हेतु एक निमंत्रण है- जहाँ हम एकता को पाते हैं, जो कलीसियाई परंपरा पर आधारित है जिसके केन्द्र बिन्दु स्वयं येसु ख्रीस्त हैं।  नीसिया आज भी हमें पूछती है- येसु हमारे लिए कौन हैंॽ ख्रीस्तीय होने का मुख्य अर्थ क्या हैॽ धर्मसार हमारे लिए विश्वास, आत्ममंथन, दिशा-निर्देशन का एक मापदंड है वह धुरी जिसके चारो ओर हमारे विश्वास और कार्यों का परिक्रमा होनी चाहिए है। विश्वास और कार्य के संदर्भ में संत पापा लियो ने 2023 में आये भूकंप में दी गई सेवाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय कारितास संगठन और केरके इन नॉट के प्रति आभार व्यक्त किये।

दूसरी चुनौती

येसु में पिता के चेहरे की खोज करने की आवश्यकता- दूसरी चुनौती के संबंध में संत पापा लिये ने कहा- नाईसीन धर्मसार हमारे लिए येसु की दिव्यता और पिता के संग उनकी समानता को सुनिश्चित करता है। येसु में हम ईश्वर के चेहरे को और मानव इतिहास में उनके कार्य और वचनों को पाते हैं। यह सच्चाई हमें निरंतर, ईश्वर की छवि के संबंध में हमारे विचारों को चुनौती प्रदान करती है जब हमारे कार्य येसु के कार्यो से मेल नहीं खाते हैं। यह हमें अपने विश्वास, कार्यों, प्रेरितिक जीवन और आध्यात्मिकता का आत्ममंथन करने का निमंत्रण देता है। इसके साथ ही हम एक “नये एरियनवाद” की चुनौती को पाते हैं जहाँ हम येसु को सिर्फ मानव के रुप में अपने मध्य देखते हैं। इस भांति हम उनकी दिव्यता, इतिहास में उनकी सर्वशक्तिमत्ता का परित्याग कर देते हैं और उन्हें केवल एक बहृद ऐतिहासिक व्यक्तित्व, बुद्धिमान शिक्षक या नबी जिन्होंने न्याय हेतु लड़ाई लड़ने तक सीमित कर देते हैं। नीसिया हमें इस बात की याद दिलाती है कि येसु ख्रीस्त अतीत के व्यक्ति नहीं बल्कि ईश्वर के पुत्र हैं जो हमारे बीच उपस्थित रहते हैं जो ईश्वर द्वारा भविष्य हेतु की गई प्रतिज्ञा के अनुरूप इतिहास का संचालन करते हैं।

संत पापा बच्चे को आशीर्वाद देते हुए
संत पापा बच्चे को आशीर्वाद देते हुए   (@Vatican Media)

तीसरी चुनौती

तीसरी चुनौती के संबंध में संत पापा लियो ने कहा कि यह विश्वास पर चिंतन और धर्मसिद्धांत का विकास है। एक मुश्किल सांस्कृतिक माहौल में, नाईसीन धर्मसार ने अपने समय के दर्शनशास्त्र और संस्कृति के आधार पर विश्वास के सार को घोषित किया। फिर भी, कुछ ही दशकों बाद, कॉन्स्टेंटिनोपल की पहली धर्मसभा में, हम देखते हैं कि इसे और गहरा और विस्तृत किया गया। इस सिद्धांत के विकास की वजह से, एक नया धर्मसार की संरचना सामने आयी, नाईसीन-कॉन्स्टेंटिनोपॉलिटन धर्मसार जिसे हम अपने रविवारीय धर्मविधियों में घोषित करते हैं। यहाँ हमें इस बात का ज्ञान हुआ कि ख्रीस्तीय विश्वास की अभिव्यक्ति सदैव उस संदर्भ और भाषा में होनी चाहिए जहाँ हम जीते और निवास करते हैं।  इसके साथ ही हमें चाहिए कि हम विश्वास के सार और ऐतिहासिक सूत्रों में अंतर स्थापित करें जिसके द्वारा वे घोषित किये जाते हैं। इस संदर्भ में उन्होंने कलीसिया के नये आचार्य संत जोन हेनरी न्यूमैन का उदाहरण दिया जिन्होंने ख्रीस्तीय धर्मसिद्धांत के विकास पर जोर दिया क्योंकि वे अमूर्त विचार नहीं बल्कि ख्रीस्त के रहस्य को व्यक्त करते हैं। इसलिए, इसका विकास संगठनात्मक है, एक जीवित सच्चाई की तरह, जो धीरे-धीरे हमें ज्योति की ओर लाती और विश्वास के महत्वपूर्ण सार को व्यक्त करती है।

अपने संबोधन के अंत में संत पापा लियो ने संत योहन 23वें की याद की जिन्होंने तुर्की के लोगों की सेवा करते हुए लिखा, “मैं उन बातों को दुहराना चाहता हूँ जिन्हें मैं अपने हृदय में अनुभव करता हूँ, मैं इस देश को और इसके निवासियों को प्रेम करता हूँ।” बोस्पोरस के तट पर मछुवारों को अपने कार्य में संलग्न वे आगे लिखते हैं, “वह दृश्य मुझे प्रभावित करता है। उस रात, सुबह के करीब एक बजे, ज़ोरदार बारिश हो रही थी, फिर भी मछुआरे वहाँ थे, अपनी कड़ी मेहनत में बिना डरे... बोस्पोरस के मछुआरों की तरह काम करना — दिन-रात अपनी मशालें जलाकर, अपनी छोटी नाव पर, अपने आध्यात्मिक नेताओं के निर्देशों का पालन करते हुए- यह हमारा गंभीर और पवित्र कर्तव्य है।”

संत पापा लियो ने कहा कि मुझे उम्मीद है कि आप भी इसी जुनून से प्रेरित होंगे, जिससे विश्वास की खुशी को ज़िंदा रख जा सकें, आप प्रभु की नाव में साहसी मछुआरों की तरह काम करते रहें। परम पवित्र मरियम, थियोटोकोस, आपकी रक्षा करे और आपको अपनी सुरक्षा में रखे। 

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28 नवंबर 2025, 15:14