खोज

सन्त पापा लियो 14 वें का तुर्की में आगमन, 27.11.2025 सन्त पापा लियो 14 वें का तुर्की में आगमन, 27.11.2025  (ANSA)

सन्त पापा लियो अपनी पहली विदेश यात्रा पर तुर्की में

सन्त पापा लियो 14 वें की इस प्रेरितिक यात्रा का प्रमुख उद्देश्य मध्यपूर्व में शांति की अपील करना, काथलिक एवं ऑरथोडोक्स ख्रीस्तीयों के बीच एकता की पुकार लगाना तथा परमधर्मपीठ एवं तुर्की के बीच सम्बन्धों को मज़बूत करना है।

वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, गुरुवार, 27 नवम्बर 2025 (रेई, एपी, रॉयटर): सार्वभौमिक काथलिक कलीसिया के परमधर्मगुरु सन्त पापा लियो 14 वें तुर्की और लेबनान में 27 नवम्बर से दो दिसम्बर तक अपनी पहली विदेश यात्रा हेतु गुरुवार को रोम समयानुसार प्रातः सात बजकर चालीस मिनट पर रोम के फ्यूमीचीनो अन्तरराष्टरीय हवाई अड्डे से तुर्की की राजधानी अंकारा के लिये रवाना हो गये।

उद्देश्य

सन्त पापा लियो 14 वें की इस प्रेरितिक यात्रा का प्रमुख उद्देश्य मध्यपूर्व में शांति की अपील करना, काथलिक एवं ऑरथोडोक्स ख्रीस्तीयों के बीच एकता की पुकार लगाना तथा इस्लाम धर्म के नेताओं से मुलाकात कर परमधर्मपीठ तथा तुर्की के बीच विद्यमान सम्बन्धों को मज़बूत करना है।

एशियाई महाद्वीप के सबसे पश्चिमी सिरे पर बसा देश तुर्की उत्तर-पश्चिम में ग्रीस और बुल्गारिया, उत्तर-पूर्व में जॉर्जिया, पूर्व में आर्मेनिया, अज़रबैजान और ईरान, दक्षिण-पूर्व में ईराक और दक्षिण में सीरिया की सीमा से जुड़ा है। अंकारा तुर्की की राजधानी है, इस्तांबुल इसका सर्वाधिक विशाल और यूरोप का दूसरा सबसे बड़ा शहर है।

मुसलमान बहुल देश

तुर्की एक मुसलमान बहुल देश है जहाँ की लगभग साढ़े आठ करोड़ की आबादी का 99 प्रतिशत इस्लाम धर्मानुयायी है। काथलिकों एवं विभिन्न सम्प्रदायों के ख्रीस्तीयों की संख्या यहाँ लगभग 120,000 है। यहूदी धर्म के लोगों की संख्या तुर्की में 26,000 है।   

अपनी पहली विदेश यात्रा के लिये संयुक्त राज्य अमरीका के प्रथम काथलिक परमाध्यक्ष सन्त पापा लियो 14 वें ने मुस्लिम बहुल तुर्की को चुना। यहाँ वे एक विख्यात प्रारम्भिक कलीसियाई महासभा की 1,700वीं वर्षगाँठ मनाने जा रहे हैं, जिसने नाइसीन क्रीड अर्थात नाईसिया में धर्मसार प्रार्थना की रचना की थी, जिसका पाठ कर आज भी विश्व के अधिकांश ख्रीस्तीय अपना विश्वास व्यक्त करते हैं।

लेबनान जाने से पहले तुर्की में सन्त पापा लियो के तीन दिवसीय अत्यधिक व्यस्त कार्यक्रम पर सभी की दृष्टि लगी है कि अपनी पहली प्रेरितिक यात्रा और अति संवेदनशील सांस्कृतिक स्थलों पर वे क्या कहेंगे। वाटिकन मामलों पर अध्ययन करने वाले शिक्षाविद मास्सिमो फाज्जोली कहते हैं "यह एक बहुत ज़रूरी यात्रा है क्योंकि हमें अभी सन्त पापा लियो के भौगोलिक-राजनैतिक विचारों के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है और यह उनके लिए उन्हें साफ़ करने का पहला बड़ा मौका है।"

प्रेरितिक यात्राएं

विदेश में प्रेरितिक यात्राएँ काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्षों का एक बड़ा हिस्सा बन गई हैं जिनके माध्यम से वे प्रभु येसु मसीह के सुसमाचारी सन्देश का प्रसार करते तथा काथलिक कलीसिया की शिक्षाओं और परमधर्मपीठ एवं अन्तरराष्ट्रीय कूटनीति से लोगों को अवगत कराते हैं।

स्वर्गीय सन्त पापा फ्रांसिस के निधन के उपरान्त इस वर्ष मई माह में सन्त पापा लियो 14 वें को कलीसिया का परमाध्यक्ष नियुक्त किया गया था, जो अमरीका के मूल निवासी हैं तथा जो पेरु में कई दशकों तक प्रेरितिक सेवकाई में लगे रहे थे। सन्त पापा फ्रांसिस तुर्की और लेबनान जाने  की योजना बना रहे थे, लेकिन अपनी बिगड़ती सेहत की वजह से वे ऐसा नहीं कर पाए थे।

तुर्की की भूमिका

साढ़े आठ करोड़ से अधिक सुन्नी मुसलमानों के देश तुर्की में सन्त पापा लियो 14 वें की प्रेरितिक यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब तुर्की ने यूक्रेन और गाज़ा में संघर्षों के लिए शांति बातचीत में खुद को एक अहम मध्यस्थ के तौर पर पेश किया है। अंकारा ने रूस और यूक्रेन के बीच छोटे स्तर पर कई बातचीतों की मेज़बानी की है और साथ ही गाज़ा में नाज़ुक युद्धविराम को बनाए रखने में मदद की पेशकश की है। यहाँ सन्त पापा का सर्वप्रथम कार्यक्रम तुर्की के राष्ट्रपति ताईप एरदोगान एवं देश के राजनैतिक नेताओं एवं राजनयिकों से मुलाकात है।

धर्मसार की प्रार्थना

अंकारा के बाद सन्त पापा लियो इस्तानबुल का रुख करेंगे, जो विश्व के 26 करोड़ ऑर्थोडोक्स ख्रीस्तीयों के आध्यात्मिक नेता बार्थोलेम की प्राधिधर्माध्यक्षीय पीठ है। सन् 1054 ई. में ऑरथोडोक्स ख्रीस्तीय काथलिक कलीसिया से अलग हो गये थे। इसी को पूर्व एवं पश्चिम की महान फूट का नाम दे दिया गया था। दवितीय वाटिकन महासभा के बाद तथा हाल के दशकों में हालांकि दोनों कलीसियाओं ने आपसी सम्बन्धों में काफी सुधार किये हैं।

शुक्रवार को सन्त पापा लियो 14 वें प्राधिधर्माध्यक्ष बार्थोलोम के साथ इस्तानबुल से 140 किलो मीटर की दूरी पर स्थित इज़निक जायेंगे जिसे अतीत में नाइसिया के नाम से जाना जाता था और जहाँ प्रारम्भिक ख्रीस्तानुयायियों ने प्रथम धर्मसार की प्रार्थना रची थी जो ख्रीस्तीय धर्म के मूल विश्वास को व्यक्त करती है।

तुर्की के इज़निक शहर में सन्त पापा लियो 14 वें विश्व के ऑर्थोडोक्स ख्रीस्तीयों के धर्मगुरु प्राधिधर्माध्यक्ष बार्थोलोम के साथ सन् 325 ई. में सम्पन्न नाईसिया की धर्मसभा की जगह,  प्रार्थना करेंगे और ख्रीस्तीय एकता के स्पष्ट संकेत के तौर पर एक संयुक्त घोषणा पर हस्ताक्षर करेंगे। हालांकि सन्त पापा लियो की प्रेरितिक यात्रा एक बुहत ही खास काथलिक-ऑर्थोडोक्स वर्षगाँठ के समय हो रही है, तथापि इससे सन्त पापा को मुसलमानों के साथ कलीसिया के रिश्ते मज़बूत करने का भी मौका मिलेगा। इस्तानबुल में सन्त पापा की ब्लू मस्जिद में भेंट एवं एक अन्तरधार्मिक बैठक की अध्यक्षता का भी कार्यक्रम है।  

अब तक की प्रेरितिक यात्राओं के दौरान हालांकि कलीसिया के परमाध्यक्ष इतालवी भाषा का प्रयोग करते रहे थे, इस बार सन्त पापा लियो तुर्की में अँग्रेज़ी तथा लेबनान में अँग्रेज़ी एवं फ्रेंच भाषाओं में अपने प्रवचन जारी करेंगे।

तुर्की एक ऐसा दुर्लभ देश है, जो सन्त पापा लियो की यात्रा के साथ, विश्व की यात्राओं करनेवाले  पांच सन्त पापाओं के दौरे का दावा कर सकता है। 1967 में सन्त पापा पौल षष्टम, 1979 में सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय, 2006 में सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें तथा 2014 में सन्त पापा फ्राँसिस तुर्की की यात्रा कर चुके हैं।

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

27 नवंबर 2025, 11:01