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इस्तांबुल में पवित्र आत्मा महागिरजाघऱ के बाहर तुर्की काथलिकों से मिलते हुए संत पापा लियो 14वें इस्तांबुल में पवित्र आत्मा महागिरजाघऱ के बाहर तुर्की काथलिकों से मिलते हुए संत पापा लियो 14वें  (@Vatican Media) संपादकीय

छोटेपन की ताकत

तुर्की के ख्रीस्तियों को दिये गये संत पापा लियो 14वें के शब्द पूरी कलीसिया के लिए एक संदेश देता है।

अंद्रेया तोर्निएली

इस्तांबुल, शुक्रवार 28 नवंबर 2025  (रेई) : इस्तांबुल में पवित्र आत्मा महागिरजाघऱ में तुर्की काथलिकों के "छोटे झुंड" से मिलते समय, संत पापा लियो 14वें ने ऐसी बातें कहीं, जिनसे न सिर्फ़ इस ज़मीन पर ख्रीस्तीयों की मौजूदगी की सच्चाई का पता चला, बल्कि सभी के लिए एक कीमती संदेश भी मिला। संत पापा ने विश्वासियों को इस कलीसिया के बारे में एक सुसमाचारी नज़रिया अपनाने के लिए आमंत्रित किया, जिसका अतीत कभी शानदार था, लेकिन अब यह संख्या में छोटी है। उन्होंने उनसे "ईश्वर की नज़रों से" देखने और यह जानने और फिर से खोजने का आग्रह किया कि उन्होंने "हमारे बीच आकर छोटेपन का रास्ता चुना।" नाज़रेथ के छोटे से घर की विनम्रता, जहाँ एक छोटी लड़की ने "हाँ" कहा, जिससे ईश्वर इंसान बन गए; बेथलहम का चरनी, जहाँ सर्वशक्तिमान एक नवजात शिशु बन गए, जो पूरी तरह से एक पिता और माँ की देखभाल पर निर्भर थे; येसु का सार्वजनिक जीवन, जो साम्राज्य के सबसे दूर के इलाके में एक प्रांत में गाँव-गाँव प्रचार करते हुए बीता, जो महान इतिहास के रडार से बहुत दूर था। संत पापा लियो ने याद किया, ईश्वर का राज्य "शक्ति के प्रदर्शन से खुद को थोपता नहीं है।" और इसी तर्क में, छोटेपन के तर्क में, कलीसिया की असली ताकत छिपी है।

पेत्रुस के उत्तराधिकारी ने तुर्की के ख्रीस्तियों को याद दिलाया कि कलीसिया सुसमाचार और ईश्वर के तर्क से भटक जाती है जब वह मानती है कि उसकी ताकत उसके संसाधन और संरचनाओं में है या जब वह अपने मिशन के नतीजों को नंबरों की सहमति, आर्थिक ताकत, या समाज को प्रभावित करने की अपनी क्षमता से मापती है।  संत पापा लियो ने संत पापा फ्राँसिस की सांता मार्था में दिये गये एक प्रवचन को उद्धृत कर कहा, "एक ख्रीस्तीय समुदाय जिसमें विश्वासी, पुरोहित और धर्माध्यक्ष छोटी-मोटी बातों का रास्ता नहीं अपनाते, उसका कोई भविष्य नहीं है... ईश्वर का राज्य छोटी-छोटी चीजों में, हमेशा छोटी चीजों में उगता है।"  

यह सारे इंसानी तर्कों का पूरी तरह से उलटा होना है, जो कलीसिया में भी प्रवेश कर सकता है जब व्यापार वाला तर्क हावी हो, जब मिशन सिर्फ़ व्यापार कूटनीति तक सिमट जाए, जब सुसमाचार का प्रचार करने वाला खुद को हीरो के तौर पर केंद्र में रखे, बजाय इसके कि वह परदे का पीछे गायब हो जाए ताकि ख्रीस्त की रोशनी चमक सके। ऐसे समय में जब सिर्फ़ क्लिक और फॉलोअर्स की संख्या ही मायने रखती है, कलीसिया भी पुराने ख्रीस्तीय धर्म, उसकी शक्ति संरचना, असर, सोशल और राजनितिक अहमियत के लिए दुख मना सकती है।

इसके बजाय, जैसा कि सुसमाचार हमें सिखाता है और जैसा कि रोम के धर्माध्यक्ष आज दोहराते हैं, हमें दुनिया को ईश्वर की नज़र से देखना चाहिए, छोटे, विनम्र, बिना ताकत वाले लोगों की नज़र से। यह कोपरनिकन क्रांति है, एक ऐसे ईश्वर की जिसने ताकतवर लोगों को उनके सिंहासन से हटा दिया है और विनम्र लोगों को ऊपर उठाया है, यह मिशन का रास्ता है, लेकिन कलीसिया, समाज और अंतरराष्ट्रीय रिश्तों में सच्ची शांति बनाने का रास्ता भी है।

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28 नवंबर 2025, 15:28