संत पापा लियोः कलीसियाई एकता ईश्वर का तोहफा है
वाटाकिन सिटी
संत पापा लियो 14वें ने नीसिया की प्रथम धर्मसभा की 1700वीं वर्षगाँठ के अवसर पर तुर्की की अपनी प्रेरितिक यात्रा के तीसरे दिन इस्तांबुल के वौल्सवैगन आरीना में आगमन के प्रथम रविवार का यूखारीस्तीय बलिदान अर्पित किया।
संत पापा लियो ने अपने प्रवचन के शुरू में कहा कि हम आज की शाम यह खीस्तीयाग अर्पित करते हैं जब तुर्की की कलीसिया संत अद्रेयस की यादगारी मनाती है जो इस भूमि के संरक्षक संत हैं। इसके साथ ही हम आगमन काल की शुरूआत करते हैं जो हमें ख्रीस्त जयंती हेतु तैयार करता है जहाँ हम “ईश्वर के पुत्र, येसु मसीह, जो बनाये नहीं बल्कि पिता से उत्पन्न हुए” के रहस्य का अनुभव नये रुप में करते हैं, जैसे कि 1700 वर्षो पहले कलीसिया के धर्माध्यक्षों ने इसे नीसिया की धर्मसभा में घोषित किया था।
इस संदर्भ में आज का पहला पाठ नबी इसायस के ग्रंथ से लिये गये एक अति सुन्दर पद को व्यक्त करता है जहाँ ईश्वर की सारी प्रजा पर्वत के ऊपर जमा होने को बुलाई जाती है। संत पापा ने निर्धारित पाठों के अनुरूप चिन्हों पर अपने चिंतन प्रस्तुत किये।
पर्वत की ऊंचाई
पर्वत की ऊंचाई,पहली निशानी पर चिंतन करते हुए संत पापा लियो ने कहा कि यह हमें इस बात की याद दिलाती है कि ईश्वर के कार्य का फल जिसे हम अपने जीवन में पाते हैं सिर्फ हमारे लिए नहीं बल्कि सभों के लिए है। सियोन, पर्वत पर बसा निष्ठा में उत्पन्न एक शहर है। इसकी सुन्दरता ज्योति की भांति हम नर-नारियों को हर कोनों से बुलाती है, जो हमें इस बात की याद दिलाती है कि अच्छाई की खुशी प्रसारित होती है। बहुत से संतों का जीवन हमें इसका साक्ष्य देता है। अपने भाई अन्द्रेयस के उत्साह के कारण संत पेत्रुस येसु से मिलते हैं,जो उसे योहन के संग उनके पास ले चलते हैं। सालों बाद, संत अंबोस के उत्साही प्रवचन के फलस्वरुप संत अगुस्टीन येसु की ओर आते हैं। ऐसे और कई उदाहरण हैं।
ईश्वर रोज दिन हमारे बीच आते हैं
संत पापा ने कहा कि हम यहाँ एक निमंत्रण को पाते हैं जो स्वयं हमारे साक्ष्य की शक्ति को नवीन बनाती है। कलीसिया के महान चरवाहे संत जोन क्रिसोस्तम पवित्रता के आकर्षण को एक निशानी स्वरुप व्यक्त करते हैं जो बहुत से चमत्कारों से अधिक प्रभावकारी है। “चमत्कार होता और चला जाता है लेकिन ख्रीस्तीय जीवन बना रहता और निरंतर हमें शिक्षित करता है।” वे अंत में कहते हैं, “अतः हम अपना ख्याल करें जिससे हम दूसरों को लाभ पहुंचा सकें।” संत पापा ने कहा, “प्रिय मित्रों, यदि हम सही रुप में दूसरों की मदद करना चाहते हैं, तो हम अपना “ख्याल करें” जैसे आज का सुसमाचार हमें विश्वास में प्रार्थना करते हुए संस्कारों के माध्मय ऐसा करने को कहता है, हम इसे प्रेम में निरंतर जीये, और अंधकार के कार्यों का परित्याग करते हुए ज्योति के वस्त्र धारण करें।” ईश्वर जिसकी हम अंतिम समय में आने की प्रतीक्षा करते हैं, हमारे लिए रोज दिन आते और हमारे द्वार पर दस्तक देते हैं। हम उनके लिए तैयार रहें। इस भूमि के बहुत सारे पवित्र नर औऱ नारियों के उदाहरण को देखते हुए हम निष्ठा में एक अच्छा जीवन जीये।
शांतिमय दुनिया
एक शांतिमय दुनिया, दूसरी निशानी की चर्चा करते हुए संत पापा लियो ने कहा कि नबी इसायस इसकी चर्चा करते हुए कहते हैं, “वे अपनी तलवार को पीट-पीट कर फाल और अपने भाले को हँसिया बनायेंगे। राष्ट्र एक-दूसरे पर तलवार नहीं चलायेंगे और युद्ध विद्धा की शिक्षा समाप्त हो जायेगी।” (इसा.2.4)। इसकी आज हमें कितनी जरूरत है। हमें और हमारे बीच में आज शांति, एकता और मेल-मिलाप अति जरूरत है। इसका प्रत्युत्तर हम कैसे दे सकते हैंॽ
बोस्पोरस स्ट्रेट का सेतु
संत पापा ने इसके उत्तर को अपनी यात्रा की निशानी एक सेतु की ओर इंगित करते हुए कहा कि यह इस शहर का मशहूर बड़ा सेतु है, जो बोस्पोरस स्ट्रेट को पार करता है और दो महाद्वीपों: एशिया और यूरोप को जोड़ता है। समय के साथ दो और सेतुओं को जोड़ा गया है। ये तीन संरचनाओं में संचार, आदान-प्रदान और मिलन को देखना कितना प्रभावकारी है, यद्यपि, जिन बड़े भू-भाग को वे जोड़ते हैं, उनकी तुलना में ये बहुत छोटे और नाज़ुक हैं।
स्ट्रेट सेतु हमें तीन स्तरों पर एकता के पुल निर्माण के महत्व की याद दिलाती है: समुदाय के अंदर, एकतावर्धक ख्रीस्तीय समुदायों के संग हमारा संबंध, और दूसरे धर्मों के भाई-बहनों के साथ हमारे संबंध। इन तीन संबंधों को सहज कर रखना, उन्हें मजबूत बनाते हुए हर संभव प्रसारित करना हमारे जीवन की बुलाहट है।
हमारी एकता ईश्वर को तोफा
संत पापा लियो ने कहा कि प्रथम एकता की चाह को हम अलग-अलग धार्मिक रीतियों-लातीनी, आरमेनियन, ख्लदेई और सीरियन में पाते हैं। इसमें से हर कोई आध्यात्मिक, ऐतिहासिक और कलीसियाई समृदि का आदान-प्रदान करता है। इनमें विविधताओं का एक दूसरे के संग साझा करना हमारे लिए ख्रीस्त की वधू कलीसिया के अति सुन्दर रूप-ख्रीस्तीयता को प्रकट करती है, जो हमें एकता में पिरोती है। वह एकता जो हमें वेदी के चारों ओर लाती है, हमारे लिए ईश्वर का तोहफ़ा है। यह मज़बूत और अजेय है, क्योंकि हम इसमें कृपा के कार्य को पाते हैं। लेकिन, समय के साथ इस एकता को हासिल करना हमारी कोशिशों पर निर्भर है। यही कारण है की बोस्पोरस के सेतु की तरह हमें एकता की देख-रेख, ध्यान और “रख-रखाव” करने की जरुरत है जिससे उसकी नींव मजबूत बनी रहे और कलांतर के उतार-चड़ाव में वह कमजोर न हो। हम स्वर्गीय येरुसालेम की ओर अपनी निगाहें गड़ाये रहे जो प्रतिज्ञा का पर्वत है, और हर संभंव कोशिश करें जिससे एकता स्थापित और मजबूत की जा सके, ताकि हम एक दूसरे को समृद्ध कर सकें और दुनिया के सामने प्रभु के सार्वभौमिक और अनंत प्रेम का विश्वसनीय साक्ष्य बन सकें।
दूसरी निशानी के बारे में संत पापा लियो ने कहा कि यह हमारे लिए एकतावर्धकवार्ता को व्यक्त करती है। हमारे उद्धारकर्ता येसु में यह विश्वास न सिर्फ़ हम ख्रीस्तीयों को कलीसिया में मिलाता है बल्कि हमें दूसरी कलीसियाओं से जुड़े हमारे सभी भाई-बहनों से भी जोड़ता है। यह वह मार्ग है जिसमें हम एक साथ चल रहें हैं। संत योहन 23वें जो इस धरती से जुड़े थे उन्होंने एकतावर्धकवार्ता का साक्ष्य देते हुए इसे बढ़ावा दिया। संत पापा ने कहा कि हम एकता हेतु अपनी प्रतिबद्धता को दुहराते हैं,“जिससे वे सब एक हो”। (यो.17-21)।
गैर-ख्रीस्तीयों के संग एकता
हमारी तृतीय एकता जिसे प्रभु वचन हमारे निमंत्रण स्वरुप प्रदान करता है, अपने को गैर-ख्रीस्तीयों समुदायों के संयुक्त करना है। संत पापा ने कहा कि हम उस दुनिया में रहते हैं जहाँ धर्म को युद्ध और प्रताड़नाओं को सत्यापित करने हेतु किया जाता है। हम ईश्वर के संग अपने संबंध को मानव के संग संबंध के रुप में पाते हैं। इसलिए, हम उन चीज़ों की प्रशंसा करते हुए साथ चलना चाहते हैं जो हमें जोड़ती हैं, भेदभाव और अविश्वास की दीवारों को तोड़ते हुए, आपसी ज्ञान और सम्मान को बढ़ावा देते हुए, सभी को उम्मीद का एक मज़बूत संदेश और निमंत्रण देते हुए कि हम सभी “शांति स्थापक” बनने के लिए बुलाये गये हैं। (Mt 5:9)।
संत पापा लियो ने कहा कि हम इन मूल्यों और सकंल्पों को आगमन काल और उससे भी बढ़कर अपने व्यक्तिगत और सामुदायिक जीवन का अंग बनायें। हम उस सेतु पर चलते हैं जो पृथ्वी को स्वर्ग से जोड़ती है, एक सेतु जिसे ईश्वर ने हमारे लिए तैयार किया है। आइए हम दोनों किनारों पर अपना ध्यान केन्दित करें जिससे हम ईश्वर और अपने भाई-बहनों को अपने सारे हृदय से प्रेम कर सकें, जिससे हम एक साथ चलते हुए एक दिन अपने को ईश्वर के निवास एकता में पा सकें।
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