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पेंतेकोस्त महापर्व के दिन ख्रीस्तयाग पेंतेकोस्त महापर्व के दिन ख्रीस्तयाग  (Vatican Media)

पोप ˸ धर्मविधि की सुन्दरता की खोज हेतु वाद-विवाद से ऊपर उठें

ईश प्रजा के लिए प्रेरितिक पत्र "देसिदेरियो देसिदेरावी" के साथ संत पापा फ्राँसिस ने काथलिकों को निमंत्रण दिया है कि वे सौंदर्यवाद के विभिन्न रूपों से ऊपर उठें जो सिर्फ बाह्य रूप की प्रशंसा करता अथवा धर्मविधि में मस्ती लाता है। उन्होंने गौर किया है कि एक समारोह जो सुसमाचार का प्रचार नहीं करता वह विशुद्ध समारोह नहीं है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्राँसिस ने धर्मविधि पर ईश प्रजा को एक प्रेरितिक पत्र लिखा है ताकि यूखरिस्तीय समारोह के गहरे अर्थ पर ध्यान दिया जा सके तथा धर्मविधि के प्रशिक्षण को प्रोत्साहन मिल सके। 

संत पापा फ्रांसिस ने "देसिदेरियो देसिदेरावी" (चाह रखने की इच्छा) को बुधवार को प्रकाशित किया जिसमें कुल 65 परिच्छेद हैं, और जिसमें मोतू प्रोप्रियो "त्रादिशनालिस कुस्तोदिस" द्वारा फरवरी 2019 में दिव्य उपासना परिषद की आमसभा के परिणाम की विस्तार से चर्चा की गयी है। 

संत पापा का प्रेरितिक पत्र रीति के आसपास कलीसियाई समन्वय के महत्व को पुष्ट करता है जो महासभा के बाद धर्मविधिक सुधार के उत्पन्न हुआ है। यह कोई नया दिशानिर्देश अथवा विशेष नियम के साथ निर्देश नहीं है बल्कि धर्मविधिक समारोह की सुन्दरता एवं सुसमाचार प्रचार में इसकी भूमिका की समझ पर चिंतन है। इसका समापन एक अपील से होता है, "आइये हम अपने विवाद को छोड़ दे ताकि पवित्र आत्मा कलीसिया से क्या कह रहा है उसे सुन सकें। आइये हम अपने समन्वय की रक्षा करें। धर्मविधि की सुन्दरता पर आश्चर्य करना जारी रखें।" (65).

ख्रीस्त के साथ मुलाकात

संत पापा लिखते हैं, "ख्रीस्तीय विश्वास या तो जीवित येसु के साथ मुलाकात है अथवा कुछ नहीं है। धर्मविधि इस मुलाकात को संभव बनाता है। हमारे लिए अंतिम भोज की अस्पष्ट स्मृति से कोई लाभ नहीं होगा। हमें उस भोज में उपस्थित होना है।"   

वाटिकन द्वितीय महासभा के संविधान "साक्रोसंतुम कोचिलियुम" के महत्व की याद करते हुए, जिसमें धर्मविधि के ईशशास्त्रीय समझ को खोजा गया, संत पापा ने कहा कि "मैं ख्रीस्तीय समारोह की सुन्दरता और कलीसिया के जीवन के लिए इसके आवश्यक परिणाम को चाहता हूँ कि यह इसके मूल्य की सतही और पूर्वाभासी समझ से दूषित न हो या उससे भी बुरा, किसी वैचारिक दृष्टि की सेवा में इसका शोषण किया जाए, चाहे वह कुछ भी हो।”(16).

"आध्यात्मिक दुनियादारी" और नोस्टिसिज्म एवं नेयो पलेजियानिज्म जो इसे इंधन देता है उनके विरूद्ध चेतावनी देने के बाद संत पापा ने बतलाया है कि यूखरिस्त बलिदान में भाग लेना हमारी उपलब्धि नहीं है, जिसके लिए हम ईश्वर के सामने अथवा हमारे भाई-बहनों के सामने गर्व करें और धर्मविधि का एक तपस्वी नैतिकता से कोई लेना-देना नहीं है। यह प्रभु के पास्का रहस्य का उपहार है जिसको विनम्रता पूर्वक स्वीकार करने से हमारा जीवन नया बनता है। हमारे साथ पास्का भोज करने की उसकी इच्छा के आकर्षण की शक्ति के बिना अंतिम व्यारी के कमरे में प्रवेश नहीं किया जाता।" (20).

आध्यात्मिक दुनियादारी से चंगाई पाने के लिए हमें धर्मविधि की सुन्दरता को खोजने की आवश्यकता है किन्तु यह खोज अनुष्ठान की सुन्दरता नहीं है जो केवल एक संस्कार के सावधानीपूर्वक बाहरी पालन या रूब्रिक (सरनामा) के सावधानीपूर्वक पालन से संतुष्ट होता। निश्चय ही, मैं यहाँ जो कह रहा हूँ वह विपरीत भावना को बढ़ाना चाहता है जो सादगी को लापरवाही के साथ भ्रमित करता है या जो आवश्यक है उसे अज्ञानी सतहीपन के साथ, या अनुष्ठान के ठोसपन का व्यावहारिक कार्यात्मकता को उत्तेजित करना।"(22)

संत पापा ने बतलाया है कि "समारोह के हर आयाम को सावधानीपूर्वक प्रवृत करना (स्थान, समय, भाव, शब्द, उद्देश्य, परिधान, भजन, संगीत...) तथा हर रूब्रिक का पालन किया जाना चाहिए। ऐसा ध्यान विश्वासी समूह से जो कुछ बकाया है उसे लूटने से रोकने के लिए पर्याप्त होगा; खासकर, धर्मविधि के अनुसार मनाया गया पास्का रहस्य जिसको कलीसिया निर्धारित करती है। 

लेकिन यदि समारोह की गुणवत्ता एवं सही क्रिया की गारांटी दी जाए, तो भी यह हमारी पूर्ण सहभागिता के लिए पर्याप्त नहीं है। वास्तव में, यदि सच्चाई पर विस्मय की जाए कि संस्कार के ठोस चिन्ह में पास्का रहस्य उपस्थित है तब हम अनुग्रह के सागर के लिए जोखिम उठाएंगे जो हर समारोह में प्रचुर मात्रा में आती है।" (24)

इस विस्मय का "रहस्य की भावना की अस्पष्ट अभिव्यक्ति से कोई लेना-देना नहीं है जो कभी-कभी धर्मविधिक सुधार के खिलाफ परिकल्पित मुख्य आरोपों के बीच होता है।” यह विस्मय कोई अस्पष्ट वास्तविकता या गूढ़ संस्कार से पहले घबराहट नहीं है बल्कि इसके विपरीत, उस वास्तविकता पर आश्चर्य करना है कि येसु के पास्का रहस्य में ईश्वर की मुक्ति योजना प्रकट हुई है।” (25)

धर्मविधि को पूर्ण रूप से जीना

तब हम धर्मविधि की क्रिया को किस तरह पूर्णतः से प्राप्त कर सकते हैं? आधुनिकता के बाद, व्यक्तिवाद, विषयवाद और अमूर्त अध्यात्मवाद की विडंबना के सामने, संत पापा हमें महासभा के संविधान की ओर लौटने का निमंत्रण देते हैं, जो एक दूसरे से अलग नहीं हैं।  

वे लिखते हैं कि "तनावों को पढ़ना मामूली बात नहीं होगी, जो दुर्भाग्य से समारोह में होता है, एक विशेष अनुष्ठान प्रारूप से संबंधित विभिन्न स्वादों के बीच एक साधारण अंतर के रूप में। समस्या मुख्य रूप से कलीसियाशास्त्र का है।” (31)

संक्षप में, धर्मविधि पर संघर्ष के पीछे, कलीसिया की विभिन्न अवधारणाएँ हैं। संत पापा गौर करते हैं कि महासभा के मूल्य को समझने के लिए वे यह हीं देख सकते हैं कि यह कैसे संभव है और साथ ही धर्मविधि में किये गये सुधार को स्वीकार नहीं करते जो साक्रोसंतुम कोनचिलियुम में उत्पन्न हुआ है।   

ईशशास्त्री रोमानो ग्वारदीनी का हवाला देते हुए संत पापा कहते हैं कि धर्मविधि के प्रशिक्षण के बिना, "रीति एवं पाठ में सुधार अधिक मदद नहीं दे सकता।" (34).

वे प्रशिक्षण के महत्व पर जोर देते हैं, सबसे पहले सेमिनरी में ˸ गुरूकुल छात्रों के ईशशास्त्र के प्रशिक्षण में एक धर्मविधिक शिक्षात्मक योजना की पढ़ाई निश्चय ही प्रेरितिक कार्यों पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। कलीसियाई जीवन का कोई भी पहलू ऐसा नहीं है जो अपने शिखर और इसके स्रोत को धर्मविधि में नहीं पाता है। धर्मविधि की धार्मिक समझ किसी भी तरह से यह अनुमति नहीं देती है कि इन शब्दों को उपासना के पहलू में सब कुछ कम करने के लिए समझा जाए। समारोह जो सुसमाचार का प्रचार नहीं करता वह प्रमाणिक नहीं है, उसी तरह समारोह में एक घोषणा जो पुनर्जीवित प्रभु से मुलाकात नहीं कराता वह प्रमाणिक नहीं है। और ये दोनों, प्रेम के साक्ष्य के बिना, शोरगुल वाले घडि़याल या झनझनाती हुई झांझ के समान हैं।”   (37)

संत पापा ने प्रतीकों को समझने की शिक्षा देने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है जो आधुनिक व्यक्ति से भिन्न है। एक ओर से यह अनुष्ठान की कला पर ध्यान देना है जिसको मात्र एक रूब्रिक तंत्र तक सीमित नहीं किया जा सकता, इसे कल्पनाशील नहीं माना जाना चाहिए – नियम के बिना रचनात्मकता। रीति ही अपने आप में एक नियम है जो खुद में अंत नहीं है बल्कि एक उच्च वास्तविकता की सेवा है जिसकी यह रक्षा करना चाहती है।(48)

"अनुष्ठान की कला किसी सार्वजनिक कोर्स में भाग लेने अथवा संचार की प्रेरक तकनीकों से सीखी नहीं जा सकती, यह अनुष्ठान के लिए चिंतनशील समर्पण की मांग करती है, अनुष्ठान को स्वयं हमें अपनी कला से अवगत कराने देना है।” (50)

"धर्मविधि की क्रयाओं के बीच जो पूरे विश्वासी समुदाय का है, मौन का एक महत्वपूर्ण स्थान है जो दुःख से लेकर पाप और मन परिवर्तन की चाह की ओर बढ़ता है। यह वचन को सुनने के लिए तत्परता जगाता एवं प्रार्थना के लिए सचेत करता है। यह ख्रीस्त के शरीर और रक्त की आराधना करने के लिए प्रवृत करता है।” (52).

धर्मविधि अनुष्ठाता के बारे नहीं, ख्रीस्त के बारे

संत पापा ने गौर किया कि ख्रीस्तीय समुदायों में समारोह को मनाना एक शर्त है – बेहतर अथवा दुर्भाग्य से, बदतर के लिए – जिसका अनुष्ठान याजक अपने समूह में करते हैं। उन्होंने अपर्याप्त अध्यक्षता के कई "मॉडल" को सूचीबद्ध किया ˸ कठोर तपस्या या एक अतिरंजित रचनात्मकता, एक आध्यात्मिक रहस्यवाद या एक व्यावहारिक कार्यात्मकता, एक अत्यधिक तेज या बहुत धीमी गति, एक ढीली लापरवाही या अत्यधिक सूक्ष्मता, एक अत्यधिक प्रचुर मात्रा में मित्रता या पुरोहितों की अगम्यता।”

इन सभी मॉडलों का एक ही आधार है ˸ "अनुष्ठान की शैली का एक ऊंचा व्यक्तित्व जो कभी-कभी ध्यान का केंद्र बनने के लिए एक खराब छुपा उन्माद व्यक्त करता है" (54), जो समारोहों के ऑनलाइन प्रसारण से अधिक बढ़ जाता है। जबकि यूखरिस्त का अनुष्ठान करना ईश्वर के प्रेम की अग्नि में प्रवेश करना है। जब हम इस सच्चाई को समझते हैं या कम से कम इसके बारे में कुछ जानते हैं, तब हमें निर्देशिका की आवश्यकता नहीं होगी जो उचित व्यवहार को लागू करेगा" (57)।

प्रेरितिक पत्र में संत पापा ने सभी धर्माध्यक्षों, पुरोहितों, उपयाजकों एवं सेमिनरी के प्रशिक्षणार्थियों, ईशशास्त्र के विभिन्न विभागों के निर्देशकों, सभी प्रचारकों से आग्रह किया है कि वे ईश्वर की पवित्र प्रजा को ख्रीस्तीय आध्यात्मिकता के पहले स्रोत से प्रेरणा लें, "त्रादिसनालिस कुस्तोदिस" ("परंपरा के रखवाले") में जो स्थापित है उसे पुनः पुष्ट करें, ताकि कलीसिया विभिन्न भाषाओं में ऊपर उठ सके, एक ही एवं समान प्रार्थना उनकी एकता व्यक्त करे और यह एक मात्र प्रार्थना है रोमन रीति जो महासाभा के सुधार के परिणामस्वरूप और संत पाप पॉल छटवें तथा जॉन पॉल द्वितीय द्वारा स्थापित किया गया था।  

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02 July 2022, 15:56