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पुरोहित तिमोथी पीटर योसेफ रैडक्लिफ पुरोहित तिमोथी पीटर योसेफ रैडक्लिफ  

धर्मसभा की आध्यात्मिक साधना- आशातीत आशा

रविवार प्रातः, दोमिनिकन धर्मसमाज के पूर्व अधिकारी और आध्यात्मिक साधना के उपदेशक पुरोहित तिमोथी पीटर योसेफ रैडक्लिफ ने “आशातीत आशा” पर प्रवचन देते हुआ सिनोड धर्मसभा आध्यात्मिक साधना की अगुवाई की।

वाटिकन सिटी

पहला प्रवचन-  आशातीत आशा

उपदेशक पुरोहित तिमोथी पीटर ने अपने प्रवचन की शुरू करते हुए कहा कि हम सभी अपने में अधूरे हैं। कार्ल बार्थ महान प्रोटेस्टन ईशशास्त्री ने धर्मग्रंथ और परंपरा, विश्वास और कार्यों के बारे में लिखा है जहाँ वे “धिक्कार ख्रीस्तीय” कहते हैं। अतः आने वाले दिनों में हम एक दूसरे को सुनेंगे और असहमत होने के बदले एक दूसरे को नहीं के बदले हाँ कहें। यही सिनोडल का मार्ग है। निश्चय ही कभी-कभी न कहना भी हमारे लिए जरुरी है।

हम यहाँ जमा होते हैं क्योंकि हमारा हृदय और मन एक नहीं है। (फिलि.2.2)। वहीं जितनों ने धर्मसभा में भाग लिया है वे अपने को खुशी से आश्चर्यचकित होता पाते हैं। बहुतों के लिए यह पहला अवसर होगा जहाँ कलीसिया ने उन्हें अपने विश्वास और आशा को साझा करने का निमंत्रण दिया है। वहीं हममें से बहुत कोई इस यात्रा में आगे बढ़ने हेतु अपने को भयभीत पाते हैं। कुछ आशा करते हैं कि कलीसिया में एक तरह से नाटकीय परिर्वतन होगा, हम मूलभूत निर्णय लेगें उदाहरण के लिए महिलाओं की भूमिका पर। वहीं दूसरे इस बात को लेकर भयभीत हैं कि कुछ परिवर्तन हमें विभाजन और विवाद की ओर अग्रसर करेंगे। कुछ तो यहाँ रहने की भी नहीं सोचते हैं एक धर्माध्यक्ष ने मुझे अपने विचार से अवगत कराते हुए कहा कि वे इस बात के लिए प्रार्थना कर रहे थे कि उनका चुनाव न हो। उसकी प्रार्थना सुनी गई। हम सुसमाचार के अनुसार उस पुत्र की भांति हो सकते हैं जो अपने पिता के आग्रह पर दाखबारी में कार्य करने को नहीं जाना चाहता है, लेकिन वह जाता है।

सुसमाचार में हम विपदाओं की घड़ी में सदैव इन शब्दों को सुनते हैं, “डरो मत”। संत योहन हमें कहते हैं, “सर्वोतम प्रेम हमारे भय को दूर करता है”। अतः हम इस बात के लिए प्रार्थना करते हुए शुरू करें कि ईश्वर हमारे हृदयों को भयमुक्त करें। यहाँ कुछ को परिवर्तन का भय है तो कुछ इस बात से भयभीत हैं कि कुछ भी परिवर्तिन नहीं होगा।

हम सब में भय है, लेकिन थोमस अक्वीनस हमें कहते हैं कि साहस के द्वारा हम भय के गुलाम नहीं होते हैं। हम सदैव दूसरों के भय के संबंध में संवेदनशील रहें, विशेष रुप से उनसे जिनसे हम असहमत होते हैं। “आब्रहम की भांति, हम नहीं जानते कि हम कहाँ जा रहे हैं, (इब्रा.11.8)। लेकिन यदि हम अपने हृदय को भयमुक्त करेंगे तो यह हमारी कल्पना से परे अद्भुत होगा।

इस आध्यात्मिक साधना में मार्ग निर्देशन हेतु हम येसु के रूपांतरण में चिंतन करेंगे। कलीसिया की प्रथम धर्मसभा, एक साथ येरूसालेम चलने के पहले येसु अपने निकटतम शिष्यों को यह आध्यात्मिक साधना प्रदान करते हैं। इस आध्यात्मिक साधना की आवश्यकता थी क्योंकि वे येरुसालेम की जरूरी यात्रा में अपने को भयभीत पाते हैं। अब तक वे इस्ररायल के उत्तरी भाग में घूम-फिर रहे थे। लेकिन कैसीरिया फिलिप्पी प्रदेश में, पेत्रुस ने येसु को मुक्तिदाता घोषित किया। तब से येसु उन्हें येरुसालेम की ओर यात्रा करने का निमंत्रण देते हैं जहाँ वे दुःख भोगेंगे, मार डाले जायेंगे और फिर जी उठेंगे। वे इसे  स्वीकार नहीं कर पाते हैं। पेत्रुस येसु को रोकने की कोशिश करते हैं, और येसु उसे “शैतान”, शत्रु करते हैं। छोटा समुदाय अपने में पंगु हो जाता है। अतः येसु उन्हें पर्वत के ऊपर ले जाते। हम संत मारकुस के सुसमाचार से इस अंग को सुनते हैं (9.2-8)।

यह आध्यात्मिक साधना उन्हें यात्रा करने हेतु साहस और आशा से भर देता है। यह सदैव अच्छा नहीं रहता है। वे युवा अपदूतग्रस्त लड़के से दुष्ट आत्मा को नहीं निकाल पाते हैं। वे अपने बीच, सबसे बड़ा कौन है इस बात को लेकर झगड़ते हैं। वे येसु को उचित रुप में नहीं समझ पाते हैं। लेकिन वे कमजोर आशा के साथ अपनी राह में आगे बढ़ते हैं।

हम भी इस आध्यात्मिक साधना के माध्यम धर्मसभा के लिए, शिष्यों की भांति अपने को तैयार करते हैं, हम येसु को सुनते हैं। इन तीन दिनों में हम शिष्यों की तरह ही अपने को पायेंगे, एक दूसरे के प्रति हमारी गलतफहमी होगी और यहाँ तक कि हम एक-दूसरे से झगड़ेंगे। लेकिन येसु हमें अपनी मृत्यु और कलीसिया के पुनरूत्थान की ओर अग्रसर करेंगे। हम ईश्वर से आशा की कृपा मांगें, जिससे यह सिनोड हमें कलीसिया के नवीनकरण हेतु अग्रसर करे न कि हममें विभाजन लाये। हम अपने भाई-बहनों के निकट आ सकें। यह हम सभों की आशा है न केवल कलीसिया की, बल्कि हर एक बपतिस्मा प्राप्त भाई-बहनों की। लोग एकतावर्धक वार्ता को पतझड़ की तरह देखते हैं हम एकतावर्धक वार्ता को वसंत की तरह देखते हैं।

हम मानवता की आशा में जमा होते हैं। भविष्य अंधकारमय दिखता है। पारिस्थितिक आपदा से हमारे घर को विनाश का खतरा है। जंगली आग और बाढ़ ने इस गर्मी दुनिया को निगल दिया है। छोटे द्वीप समुद्र में लुप्त होने शुरू हो गये हैं। लाखों की संख्या में लोग सड़कों में हैं जो गरीबी और हिंसा से भाग रहे हैं। हजारों की संख्या में लोग भूमध्यसागर में डूब गये हैं, जो यहाँ से दूर नहीं है। बहुत से माता-पिता अपनी संतानों को बर्बाद दिखाई देने वाली दुनिया में जन्म देने की चाह नहीं रखते हैं। चीनी युवाओं के द्वारा पहने जाने वाले वस्त्र कहते हैं, “हम अंतिम पीढ़ी हैं”। हम मानवता के लिए आशा संग्रहित करें, विशेष कर युवाओं में आशा को।

मैं नहीं जानता की इस सिनोड में कितने माता-पिता हैं, लेकिन हमारे भविष्य को संवारने के लिए धन्यवाद। सूडान में एक कठिन परिस्थिति के बाद, कोंगो की सीमा से, मैं एक बच्चे के साथ जो बिना रूके आठ घंटे रोता रहा ब्रिटेन को वापस भागा। मुझे इस बात को स्वीकारने में लज्जा अनुभव होता है कि मुझ में जानलेवा विचार आये। लेकिन बच्चों का पालन-पोषण करना और जीवन के प्रति उनके मन और हृदय को खोलने की कोशिश करने से अधिक अद्भुत कोई भी पुरोहितिक कार्य नहीं हो सकता है। माता-पिता और शिक्षक आशा के प्रेरित हैं।

हम कलीसिया औऱ मानवता की आस लिये यहाँ जमा हुए हैं। लेकिन यह कठिन है- क्योंकि हमारी  आशाएँ विरोभासी हैं। हम एक साथ किस बात की आशा कर सकते हैंॽ जिससे हम शिष्यों की तरह हो सकें। याकूब औऱ योहन की माता ने इस बात की आशा की कि ईश्वर के राज्य में उसके बेटे दाहिने और बायें बैठेंगे और यह पेत्रुस को उसके स्थान से हटा देता है, हम येसु के निकटवर्ती मित्रों में भी एक तरह से संघर्ष की स्थिति को पाते हैं। यूदस इस बात की आशा में था कि एक विद्रोह हो जहाँ रोमियों को उखाड़ फेंका जाये। कुछ यह सोचते थे कि वे मारे न जायें। लेकिन वे एक साथ चलते हैं। अतः हम अपने में किस आशा को साझा कर सकते हैंॽ

अंतिम व्यारी के समय, उन्हें एक आशा मिली जिसकी वे कभी कल्पना कर सकते थे, येसु का शरीर और रक्त, एक नया विधान, अनंत जीवन। यूख्रारिस्तीय आशा के इस आलोक में उनके सारे संघर्ष अपने में फीके पड़ जाते हैं सिवाय युदस के जो अपने में निराश रहता है। संत पौलुस इसे आशातीत आश कहते हैं (रोम.4.18), वह आशा जो हमारे आशाओं को परे ले जाती है।

हम भी शिष्यों की भांति अंतिम व्यारी की तरह जमा होते हैं, राजनीतिक वाद-विवाद में जीत हासिल करने हेतु नहीं। हमारी आशा यूखारिस्त है। मैंने इस रूवाडा में 1993 में देखा जब कठिनाइयाँ ठीक शुरू होने वाली थीं। हमने अपने दोमीनिकन धर्मबहनों को भेंट करने की सोची थी परंतु बेल्जियम के राजदूत ने हमें अपने घरों में रहने को कहा। देश में आग जल रहे थे। लेकिन मैं युवा और मूर्ख था। अब मैं बुजुर्ग और मूर्ख हूँ। उस दिन हमने भयनाक चीजें देखीं- अस्पताल का एक भाग जो बच्चों से भर गया था जिन्होंने माईन और बम विस्फोट के कारण अपने शरीर के अंगों को खो दिया था। एक बच्चे ने अपनी दोनों पैर, एक हाथ और एक आंख खो दिये थे। उसका पिता उसकी बगल में बैठा रो रहा था। मैं दो बच्चों के साथ जो एक पैर से फुदक रहे थे झांड़ी के बीच जाकर रो रहा था।

हम अपनी धर्मबहनों के पास गये थे, लेकिन मैं क्या कहूँॽ ऐसी अर्थहीन हिंसा के बीच एक व्यक्ति के पास कहने को कुछ शब्द नहीं थे। तब मैंने ईश्वर के शब्दों को याद किया,“तुम मेरी स्मृति में यह किया करो”। हमें कुछ करने को दिया गया है। अंतिम व्यारी में हमारे लिए ऐसा प्रतीत होता है मानों कोई भविष्य नहीं रहा गया हो। आने वाली सारी घटनाएं असफलता, दुःख औऱ मृत्यु के रुप में दिखाई देती हैं। और इस अंधेरे समय में येसु हमारे लिए दुनिया के इतिहास में अति आशामय कार्य को करते हैं, “यह मेरा शरीर है जो तुम्हारे लिए दिया जाता है। यह मेरा रक्त है जो तुम्हारे लिए बहाया जाता है।” यह हमारे लिए वह आशा है जो हमें अपने सारे विभाजनों से परे आने का आहृवान करता है।

हमारा एक भाई पूर्वी यूक्रेन में कुछ धर्मबहनों के पास मिस्सा हेतु जाता है जो पलायन कर रही थीं। सारी चीजें बांध ली गई थीं। वे उसे केवल पैटेन और एक लाल थाली देती हैं। उन्होंने लिखा, “ईश्वर हमें इसी भांति प्रकट करते हैं कि वे हमारे साथ हैं।” “आप तहखाने में, गली जमीन पर पड़े हैं लेकिन मैं तुम्हारे साथ हूँ- एक बच्चे की लाल थाली में, न कि सोने के पैटेन में”। यह सिनोडल यात्रा में हमारे लिए यूख्रारिस्तीय आशा है। ईश्वर हमारे साथ हैं।

यूख्रारिस्त की आशा हमारी कल्पना से परे है जिसे हम प्रकाशना ग्रँथ की पुस्तिका में पाते हैं, “इसके बाद मैंने सभी राष्ट्रों, वंशों प्रजातियों औऱ भाषाओं का एक ऐसा विशाल जनसमूह देखा, जिसकी गिनती कोई भी नहीं कर सकता। वे उजले वस्त्र पहने तथा हाथ में खजूर की डालियाँ लिये सिंहासन तथा मेमने के सामने खड़े थे” (प्रका,7.9)। इस आशा को शिष्यों ने पहाड़ की ऊंचाई येसु के रूपांतरण में देखा। यह हमारी आशा के मध्य विरोधाभाव उत्पन्न करती है, जो बेतुका है। यदि हम स्वर्गराज्य के मार्ग में हैं तो इसका क्या महत्व कि हम अपने को पंरापरिक या प्रगातिशील मार्ग में रखने की सोच रखते हैं। यहाँ तक की दोमिनिकन औऱ येसु समाजियों में भी कोई अंतर नहीं रह जाता है। अतः हम उनकी सुनें, पहाड़ से नीचे उतरें और विश्वासमय तरीके से आगे बढ़ते जायें। हमारे लिए सबसे बड़ा उपहार उन लोगों से आएगा हम जिनसे असहमत होते हैं बशर्ते कि हम उन्हें सुनने का साहस करते हों।  

इस सिनोडल यात्रा में, हमें इस बात की चिंता होगी कि हमें कुछ मिल रहा है कि नहीं। संचार माध्यम इसके बारे में निर्णय देगें कि यह एक बर्बादी है केवल शब्द मात्र। वे उन सहासिक निर्णयों की खोज करेंगे कि चार या पांच गर्म विषयों पर क्या विचार किया गया है। लेकिन पहले सिनोड में शिष्य, येरुसालेम के मार्ग में, किसी चीज को प्राप्त करना नहीं चाहा। उन्होंने अंधे बरथोलोमी के भी चंगा होने से रोकना चाहा। उन्हें सब व्यर्थ लगा। जब भूखे लोगों की भारी भीड़ येसु के चारों ओर जमा हो गई, शिष्यों ने येसु के पूछा,“इस मरूभूमि में इतने लोगों को कौन रोटी खिला सकता हैॽ” येसु ने उनसे पूछा उनके पास क्या है, केवल पांच रोटियाँ और कुछ मछलियाँ (मार.8.1-10)। यह काफी है। यदि हम सिनोड में अपने पास जो है उसे उदारता में देते, तो वह अपने में प्रर्याप्त है। अन्न-दान देने वाले ईश्वर बाकी चीजों को हमारे लिए पूरा करेंगे।

बगदाद में हमारे निवास के बगल परित्यक्त बच्चों का एक निवास है जो मदर तेरेसा की धर्मबहनों की देख-रेख में है जहाँ विभिन्न धर्मों के बच्चे रहते हैं। मैं छोटी नूरा को कभी नहीं भूलंगा, जो आठ साल की है, जिसका जन्म बिना हाथ-पैर के हुआ है, जो अपनी मुंह में पकड़े एक चमच के जरिये दूसरे बच्चों को खिलाती है। किसी को आश्चर्य होता है कि युद्ध के इस प्रांत में अच्छाई करना कितना अर्थ रखता है। क्या इसके द्वारा कोई अंतर आता हैॽ क्या वे एक सड़ते हुए शरीर में पास्टिक को नहीं चिपका रहे हैंॽ हम अपने जीवन में एक छोटा भलाई का कार्य करें और अन्नदाता ईश्वर को उसे फलहित करने दें। आज हम लिसियुक्स की तेरेसा के पर्व दिवस पर जमा होते हैं। उनका जन्म 150 साल पहले हुआ। वे हमें छोटे रुप में चलने को निमंत्रण देती हैं जो हमें स्वर्ग राज्य की ओर ले चलता है। उन्होंने कहा, “हम इस बात को याद रखें कि ईश्वर की निगाहों में कोई भी चीज छोटी नहीं है।”

आऊटविच में, प्रथम लेवी, एक इतालवी यहूदी को, लोरेन्जो रोज दिन अपनी रोटी साझा करते थे। वे लिखते हैं, “मैं विश्वास करता हूँ कि मैं लोरेंजो के कारण आज तक जीवित हूँ, उनके द्वारा भौतिक सहायता के लिए उतना अधिक नहीं बल्कि उसकी उपस्थिति के लिए, जहाँ वे स्वभाविक रुप में अपनी अच्छाई को व्यक्त करते है, जो हमें इस बात की याद दिलाती है कि स्वयं से बाहर एक दुनिया का अस्तित्व है, जहाँ कोई अपने में शुद्ध और पूर्ण है, वह भ्रष्ट नहीं या बर्बर नहीं...यह अपने में परिभाषित करना असंभव है, दूर की कोई अच्छाई की संभावना लेकिन जिसके लिए जीवित रहना उचित है।” रोटी के छोटे टुकड़ों ने उसके जीवन को बचाया।

वेल्स के संत डेविड कहते हैं, “साधारण चीजों को अच्छे तरीके से करें”। हमारी आशा यही है कि हम जो कुछ भी छोटी चीजें इस धर्मसभा में करते हैं वह हमारी कल्पना से परे फल उत्पन्न करेगा। उस आखरी रात को, येसु ने अपने को अपने शिष्यों को दिया, “मैं तुम्हें अपने को देता हूँ”। इस धर्मसभा के दौरान हम सिर्फ अपने शब्दों और प्रतिबद्धताओं को साझा न करें, बल्कि अपने को, यूखारिस्तीय उदारता के संग बांटें। यदि हम अपने हृदयों को एक-दूसरों के लिए खोलते हैं तो आश्चर्यजनक चीजें होंगी। शिष्यों ने रोटी और मछली के बचे हुए टुकड़ों को जमा किया जिसके द्वारा पांच हजार लोगों को खिलाया गया था। कुछ भी बर्बाद नहीं हुआ।

पेत्रुस येसु को येरुसालेम जाने से रोकने की कोशिश करते है क्योंकि यह अर्थहीन लगता है। वहाँ जाकर मार डाला जाना बेतुका लगता है। हताशी निराशावाद नहीं है। चीजों का अर्थहीन हो जाना अपने में भयावह है। आशा अपने में आशावाद नहीं है बल्कि विश्वास है कि हम जो कुछ जीते हैं, हमारी उलझन और दुःख अपने में अर्थपूर्ण हैं। हम संत पौलुस की बातों में विश्वास करते हैं, “अभी तो मेरा ज्ञान अपूर्ण है, परंतु तब मैं उसी तरह पूर्ण रुप से जान जाऊँगा, जिस तरह ईश्वर मुझे जान गये है” (1.कुरू.13.12)।

अर्थहीन हिंसा सारे अर्थ को खत्म करती और हमारी आत्माओं को मार डालती है। जब संत ओस्कर रोमेरो, एलस्लभादोर के महाधर्माध्यक्ष ने नरसंहार स्थल का दौरा किया तो उन्होंने एक बच्चे के मृत शरीर को देखा जो गोलियों से छलनी कर दिया गया था, उसकी आँखें खुली थीं मानों वे नहीं समझती और अपने मरण का कारण पूछ रहीं हों। उन्होंने उस क्षण अपने जीवन के अर्थ को समझा और उसके बुलावे को पाया। हाँ, अंत तक भयवहीन बने रहे। अपने सामने मारे वाले को देखकर उनका शरीर पसीने से तर-बतर था लेकिन वे भय के गुलाम नहीं थे।

मैं आशा करता हूँ कि इस धर्मसभा में हिंसा नहीं होगी। लेकिन हम निश्चित रुप में आश्चर्यचकित होंगे कि इस का अर्थ क्या है लेकिन यदि हम उन्हें और एक दूसरे को सुनें तो हम अपने में आगे बढ़  सकेंगे। यह हमारे लिए दुनिया को साक्ष्य देने के समान होगा जो बहुधा मानवीय अस्तित्व के अर्थ को खो देती है यह करते हुए क्या इसका कोई अर्थ है। शेक्सपियर मकैबेथ में इस बात पर जोर देते हैं कि “जीवन एक कहानी है, जो एक मूर्ख के द्वारा बतलाई जाती है, जिसमें शोर-शराबा भरा हुआ है जिसका कुछ अर्थ नहीं है।” लेकिन उन चीजों पर, अपनी प्रार्थनाओं और विचारमंथन के द्वारा, जिनका सामना दुनिया कर रही है हम ईश्वर पर अपनी आशा के साक्ष्य को प्रस्तुत करते हैं जो हर मानव के जीवन को अर्थपूर्ण बनाता है।

हर ख्रीस्तीय विद्यालय आशा का साक्ष्य है, जो अंधरे में चमकती जिसपर अंधेरा कभी विजय नहीं होती है (यो.1.1)। बगदाद में दोमिनिकन धर्मसमाज ने एक विद्यालय की स्थापना की जिसका आदर्श वाक्य है, “यहाँ कोई भी सावल वर्जित नहीं है।” युद्ध ग्रस्त प्रांत में एक स्कूल हमारे लिए आशा का साक्ष्य देता है कि अर्थहीन हिंसा अपने में सदा बना नहीं रहेगा। होमर्स सीरिया का वह विशाल शहर है जो अर्थहीन हिंसा के कारण नष्ट कर दिया गया है। लेकिन उन खण्डरों के मध्य हम एक ख्रीस्तीय विद्यालय को पाते हैं जहाँ एक डच येसु समाजी मौत की धमकी मिलने पर भी वहाँ से नहीं हिलते। उन्हें वाटिका में गोली मार दिया जाता है। लेकिन वहाँ हम एक बुजुर्ग मिस्र येसु समाजी को अब तक शिक्षा देते हुए पाते हैं। वे अगली पीढ़ी को जीवन में आगे बढ़ने की शिक्षा देते हैं। आशा ऐसी ही होती है।  

हम अपनी आशाओं की विभन्नता में अगल-थलग हो सकते हैं। लेकिन यदि हम ईश्वर और एक दूसरे की सुनें, उनकी योजना को कलीसिया और विश्व के लिए समझने की कोशिश करें, तो हम एक आशा में संयुक्त हो सकते हैं जो हमारी असहमतियों को आगे ले चलती है, और हम उस सुन्दरता से स्पर्श किये जायेंगे जिसके बारे में संत अगुस्टीन कहते हैं,“सुन्दरता अति प्राचीन और एकदम नयी... मैंने आप का रसास्वदान किया और अब मैं आपके लिए भूखा और प्यास हूँ, आप ने मुझे स्पर्श किया, और मैं आप की शांति में जलता हूँ। 

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05 October 2023, 11:02