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पोप के साथ वाटिकन परमाध्यक्षीय आवास के सदस्य उपदेश सुनने के लिए एकत्रित पोप के साथ वाटिकन परमाध्यक्षीय आवास के सदस्य उपदेश सुनने के लिए एकत्रित  (ANSA)

आगमन काल भरोसेमंद उम्मीद का समय है

“प्रभु का दूसरा आगमन। निसंदेह आशा” ख्रीस्त जयन्ती की तैयारी में तीन धर्मोपदेशों में से प्रथम का आदर्शवाक्य है। पोप लियो 14वें की उपस्थिति में आगमन का पहला धर्मोपदेश 5 दिसम्बर को वाटिकन के पॉल षष्ठम सभागार में सम्पन्न हुआ।

वाटिकन न्यूज

परमाध्यक्षीय आवास के उपदेशक फादर रॉबर्तो पासोलिनी ने अपने पहले उपदेश में कहा, हम “खोए हुए राहगीर नहीं हैं” बल्कि “पहरेदार हैं जो दुनिया की रात में, विनम्रता से यह भरोसा बनाए रखते हैं” कि वे उस रोशनी को देखेंगे जो “हर इंसान को रोशन कर सकती है।”

आगमन काल 2025 के पहले शुक्रवार को अपने चिंतन में, फादर पासोलिनी ने “प्रभु के द्वितीय आगमन” और आशा की जयन्ती पर ध्यान आकृष्ट किया। उन्होंने जोर देकर कहा, “आगमन काल वह समय है जिसमें कलीसिया उम्मीद को फिर से जगाती है,” “न केवल प्रभु के पहले आगमन पर, बल्कि सबसे बढ़कर अंत में उनके दूसरे आगमन पर।”

यह एक ऐसा क्षण है जिसमें “हम प्रतीक्षा करने के लिए, और साथ ही शांति एवं सक्रिय जागरण के साथ प्रभु के आने में तेजी लाने के लिए भी बुलाये जाते हैं।”

कृपा की पहचान

सुसमाचार लेखक मती ने अध्याय 24 में परोसिया या द्वितीय आगमन की बात 4 बार कही है।  इस शब्द का दो अर्थ है : “उपस्थित” और “आनेवाला”।

येसु अपने आने के इंतजार की तुलना जल प्रलय से पहले नूह के दिनों से करते हैं। वे ऐसे दिन थे जब जीवन सामान्य थी, और नूह ने अकेले ही नाव बनाई थी, जो मुक्ति का माध्यम था। उनकी कहानी ऐसे सवाल उठाती है जो यह समझने के लिए जरूरी हैं कि आज के मानव को क्या मानना ​​चाहिए। नई और मुश्किल चुनौतियों का सामना करते हुए, “कलीसिया को बदलाव के इस दौर में मुक्ति का चिन्ह बने रहने के लिए कहा गया है।”

फादर पासोलिनी जोर देते हैं, “जब तक लंबे समय से चले आ रहे अन्याय और घायल यादों को ठीक नहीं किया जाता, तब तक कई इलाकों में शांति एक मृगतृष्णा बनी रहेगी, जबकि पश्चिमी सभ्यता में तरक्की की भावना कमजोर हो गई है, जिसे दक्षता, दौलत और तकनीकी की मूर्तियों ने कुचल दिया है। कृत्रिम बुद्धिमता ने लोगों में बिना सीमा और बिना तरक्की के लालच को और बढ़ा दिया है।”

ईश्वर का रहस्य जो इंसानियत पर भरोसा करता है

हालांकि, वे आगे कहते हैं, सिर्फ पहचानना काफी नहीं है; हमें इस बात का पता होना चाहिए कि “ईश्वर का राज इतिहास में किस दिशा में आगे बढ़ रहा है,” बपतिस्मा में मिली नबी बनने के वरदान पर वापस लौटते हुए। हमें इसी तरह ईश्वर की कृपा को भी पहचानना चाहिए, “सबके उद्धार का वह तोहफा जिसे कलीसिया विनम्रता से मनाती और देती है, ताकि मानव जीवन पाप के बोझ से ऊपर उठ सके और मौत के डर से आजाद हो सके।” कलीसिया के पुरोहितों को सावधान रहना चाहिए कि वे ईश्वर से इतने घुल-मिल न जाएँ कि वे उसे हल्के में लेने लगें। और इसलिए हर पीढ़ी को “एक ऐसे ईश्वर के रहस्य का एहसास होना चाहिए जो… अपनी बनाई दुनिया के सामने अटूट भरोसे के साथ खड़ा रहता है, इस उम्मीद में कि अच्छे दिन आ सकते हैं—और आने ही चाहिए।”

उन्होंने कहा कि प्रतीक्षा का समय अच्छाई बोने और येसु ख्रीस्त के आने का इंतजार करने का समय है। उपदेशक ने दो बड़े लालच के बारे में चेतावनी दी जो मानव और कलीसिया पर असर डालते हैं: “बचाए जाने की जरूरत को भूल जाना और यह सोचना कि हम अपनी छविज के बाहरी दिखावे का ध्यान रखकर और सुसमाचार के मौलिक रूप को कम करके आम सहमति फिर से पा सकते हैं।”

इसके बजाय, फादर पासोलिनी ने कहा, हमें “ख्रीस्त के वचन को काबू में किए बिना, उनके पीछे चलने की खुशी – और मुश्किलों की ओर – लौटना चाहिए।” सिर्फ “दुनिया की सीमाओं पर पहरेदारों” के तौर पर – जैसा कि मठवासी थॉमस मर्टन ने लिखा था – हम ख्रीस्त के लौटने का इंतजार कर सकते हैं।

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06 दिसंबर 2025, 14:08