क्या लोग शक्तिशालियों के युद्ध का विरोध कर सकते हैं?
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
पूरे इतिहास में लोगों ने शक्तिशालियों के युद्ध के कारण भयंकर पीड़ा सही है। कितने निर्दोष लोग इसके शिकार हुए हैं, कितने आँसू बहे हैं, सत्ताधारी लोगों के लिए लड़े गये युद्ध में कमजोर लोगों को कितनी अधिक पीड़ा सहनी पड़ी है? युद्ध ने दुर्बलों को अधिक दुर्बल एवं शक्तिशाली लोगों को अधिक बलवान बनाया है।
इन दिनों तीसरे विश्वयुद्ध की संभावना दिखाई पड़ रही है, जिसकी कल्पना मात्र से भय होता है।
संत पापा जॉन पौल द्वितीय ने 1990 में खाड़ी युद्ध के पहले, ख्रीस्त जयन्ती में अपील की थी जो नबी की आवाज की तरह आज भी गूँजती है ˸ "जिम्मेदार लोगों को समझा दिया जाए कि युद्ध बिना वापसी के एक साहसिक कार्य है!" आज करीब 30 सालों बाद भी हम उस युद्ध के परिणामों को झेल रहे हैं ˸ हिंसा, आतंकवाद, दूसरे युद्ध और पीड़ा के रूप में।
आज हम उन शक्तिशालियों की आवाज को सुनते हैं जो युद्ध की बातें करते हैं, जबकि हमें छोटे लोगों की आवाज सुननी चाहिए जो शांति की बात करते हैं। यह इतिहास में हो चुका है। महात्मा गाँधी ने गरीब, आवाजहीन और असहाय लोगों को संगठित किया जो शांति से जीतने हेतु एकजुट हुए, यद्यपि यह असंभव लगता था। साथ ही पिछली शताब्दी में, शक्तिशाली तानाशाही शासन, जो अजेय लग रहा था, हिंसा के बिना ध्वस्त हो गया क्योंकि सुरक्षाहीन लोगों ने विद्रोह किया।
सुसमाचार घोषित करता है ˸ धन्य हैं वे जो शांति स्थापित करते हैं। संत पापा ने चेतावनी दी है कि "युद्ध पागलपन है।" यह केवल दुःख और विनाश लाती है।
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