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नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज विरोध के आदिवासी नेतागण नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज विरोध के आदिवासी नेतागण 

नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज पर फैसला आदिवासियों के लिए अहम

भारत के आदिवासियों ने नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को झारखंड सरकार द्वारा बंद करने के फैसले का स्वागत किया है। परियोजना से झारखंड के करीब 2,00,000 लोग प्रभावित होते, जिनमें ख्रीस्तीय भी हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा नेतरहाट फील्ड फायरिंग की अधिसूचना को पुनःअधिसूचित नहीं करने के निर्णय को लेकर स्थानीय डंगराटोली चौक से परमवीर अल्बर्ट एक्का चौक तक 19 अगस्त को एक विजय जुलूस निकाला गया।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

झारखंड, शुक्रवार, 19 अगस्त 2022 (ऊका न्यूज) ˸ झारखंड के ख्रीस्तीयों ने राज्य सरकार द्वारा नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की अधिसूचना को पुनः अधिसूचित नहीं करने के निर्णय का सहर्ष स्वागत किया है, जिसके लिए उन्हें भय था कि परियोजना लागू होने पर उनके घर, जमीन और जंगल छिन जायेंगे।

17 अगस्त को दो जिलों के 1,471 वर्ग किलोमीटर और 245 गांवों में फैले नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को, फिर से अधिसूचित नहीं करने के निर्णय की घोषणा, राज्य की सरकार हेमंत सोरेन ने की।

नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की शुरूआत 1964 में की गई थी और 1994 तक सेना द्वारा इसका इस्तेमाल किया गया था। हालांकि इसे अनुमति देनेवाली आधिकारिक अधिसूचना मई 2022 में समाप्त होने तक नवीनीकृत होती रही।

स्थानीय आदिवासी लोग संघीय सरकार से आशंकित थे, क्योंकि सेना के अधिकारी द्वारा फायरिंग रेंज की गतिविधियों को फिर से शुरू से उन्हें उनके घरों और जंगलों से बेदखल होना पड़ता।

कार्यकर्ताओं ने कहा कि यह परियोजना करीब दो लाख लोगों को 245 गाँवों से विस्थापित कर सकती थी लेकिन जनजातीय समुदायों के कड़े प्रतिरोध ने सरकार को कार्रवाई टालने के लिए मजबूर किया। स्थानीय आदिवासी समुदाय करीब 30 वर्षों से अधिसूचना को रद्द करने की मांग कर रही थी।

कुछ कार्यकर्ताओं को अभी भी डर

केंद्रीय जन संघर्ष समिति या मंच के सदस्य बासावी किड़ो ने ऊका न्यूज से 18 अगस्त को कहा, "आदिवासी लोग खुशी मना रहे हैं लेकिन मैं थोड़ा भयभीत हूँ क्योंकि प्रांतीय सरकार फायरिंग रेंज को बंद करने का सुझाव दे सकती है, लेकिन अंतिम निर्णय संघीय सरकार पर निर्भर करता है।"

किड़ो ने कहा कि इस मामले में अंतिम फैसला संघीय रक्षा मंत्रालय का होगा और आदिवासियों को लंबी अवधि तक इंतजार करना होगा और देखना होगा।

हालांकि फायरिंग रेंज के खिलाफ संघर्ष का नेतृत्व करनेवाले मंच के सदस्य रतन तिर्की ने इसे "ऐतिहासिक दिन" कहा और झारखंड के मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन को उनके सरकारी निर्णय के लिए बधाइयाँ दीं। 

लड़ाई अभी समाप्त नहीं हुई

स्थानीय समाचार पत्रों के अनुसार केंद्रीय जन संघर्ष समिति के सचिव जेरोम जेराल्ड ने कहा कि "प्रस्तावित नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के इलाके में रूटीन फायरिंग की अधिसूचना को विस्तार नहीं करने का फैसला मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने किया है, परन्तु फील्ड फायरिंग रेंज अभी तक रद्द नहीं हुआ है। मुख्यमंत्री से आग्रह होगा कि नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को सदा के लिए रद्द करने की दिशा में काम करें।"

उन्होंने कहा कि "लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है, बस थोड़ा-सा विराम लगा है। अगर कल कोई सरकार आती है और सेना फिर से प्रस्ताव भेजती है तब क्या वह सरकार भी इस बात पर अड़ी रहेगी। इसलिए साथियो इस लड़ाई को समाप्त न समझें। हमने लड़ाई का लम्बा सफर तय किया है। उन्होंने कहा कि इस लड़ाई में हमने बहुत कुछ खोया है।"

अधिसूचना मई में समाप्त हो गई और जनता का काफी दबाव सरकार पर आया, खासकर, जब प्रभावित लातेहार व गुमला जिले के 39 गांवों के निर्वाचित सदस्यों द्वारा अधिसूचना के नवीनीकरण पर रोक लगाने का ज्ञापन सौंपा गया।

राज्य सरकार ने 18 अगस्त को अपने आधिकारिक बयान में कहा कि इससे अब हजारों आदिवासी का 30 वर्षों का संघर्ष समाप्त हो जाएगा। मुख्यमंत्री ने नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को फिर से अधिसूचित नहीं करने का फैसला किया है।

मीडिया द्वारा रिपोर्ट किया गया है, स्थानीय लोगों ने आदिवासी समुदायों के बीच पारंपरिक निर्णय लेने की प्रक्रिया को बनाए रखने के लिए 1996 में भारतीय संसद द्वारा बनाए गए पेसा एक्ट कानून के तहत भूमि और सामुदायिक संसाधनों पर अपने अधिकारों का दावा किया, जिसमें ग्राम सभा को संवैधानिक अधिकार प्राप्त है।

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19 August 2022, 16:56