झारखंड के ‘दिशोम गुरु’ श्री शिबू सोरेन अब हमारे बीच नहीं रहे
वाटिकन न्यूज
राँची, सोमवार 4 अगस्त 2025 (काथलिक प्रेस) : झारखंड के पूर्व सीएम शिबू सोरेन का सोमवार की सुबह 8:56 बजे 81 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में अंतिम सांस ली। वे किडनी की बीमारी से पीड़ित थे। उनका डेढ़ महीने से इलाज चल रहा था।
झारखंड के काथलिक समुदाय के धर्मगुरु रांची महाधर्मप्रांत के महाधर्माध्यक्ष विन्सेंट आइन्द ने आदरणीय श्री शिबू सोरेन जी को श्रद्धांजलि अर्पित की और दिवंगत आत्मा की अनंत शांति एवं उनके परिजनों को स दुख की घड़ी में सांत्वना हेतु ईश्वर से प्रार्थना की।
समाज के वंचित तबके की आवाज
उन्होंने शोक संदेश में लिखा, “अत्यंत दुख और पीड़ा का अनुभव करते हुए मैं आदरणीय श्री शिबू सोरेन जी को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। एक ऐसे महान नेता जिन्हें जनजातीय समाज में विशेषकर झारखंड में सम्मानपूर्वक “दिशोम गुरु” के रुप में जाना जाता रहा है, अब हमारे बीच नहीं रहे।”
“उनका संपूर्ण जीवन संघर्ष, सेवा और समाज के वंचित तबके की आवाज बनने के लिए समर्पित रहा। उन्होंने आदिवासी समाज की अस्मिता, अधिकार और गरिमा की रक्षा के लिए जो संघर्ष किया, वह प्रेरणादायक और अनुकरणीय है। झारखंड राज्य उनके संघर्ष के लिए चिरकाल तक ऋणी रहेगा। दिशोम गुरु न केवल एक राजनेता रहे, बल्कि उनकी सादगी, ईमानदारी और आदर्शों से भरा जीवन हम सभी के लए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।”
झारखंड की आवाज और धड़कन
डाल्टनगंज धर्मप्रांत के धर्माध्यक्ष थियोदोर मस्कारेनहास, एस एफ एक्स ने प्रेस नोट में लिखा, “हम श्री हेमंत सोरेन, पूरे सोरेन परिवार और झारखंड के लोगों के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करते हैं, जिनहें “दिशोम गुरुजी”के नाम से जाना जाता था।” श्री शिबू सोरेन केवल एक राजनीतिक नेता ही नहीं थे वे झारखंड की आवाज और धड़कन थे। राज्य के संस्थापक और निर्माता के रुप में, उन्होंने यहां के लोगों के लिए विशेषकर गरीबों और आदिवासियों के दीर्घकालिक सपनों को साकार किया।
स्वर्गीय कार्डिनल तेलेस्फोर टोप्पो के साथ उनकी बहुत ही विशेष संबंध था और दोनों दिग्गजों ने झारखंड और यहां के लोगों के हित में दूसरों के साथ मिलकर काम किया। काथलिक कलीसिया उनकी देखभाल, स्नेह और संरक्षण के लिए विशेष रुप से आभारी है।
श्री शिबू सोरेन की आत्मा को शांति मिले और एक न्यायपूर्ण एवं समावेशी झारखंड के लिए उनका दृष्टिकोण यहां के लोगों के दिलों में अमर रहे।
संक्षिप्त जीवनी
शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को झारखण्ड (तब बिहार) के बोकारो जिले के नेमरा गाँव में हुआ। उनके पिता सोना सोरेन, एक आदिवासी किसान, को जमींदारों ने इसलिए मौत के घाट उतार दिया क्योंकि वे शोषण के खिलाफ खड़े हुए थे। पिता की हत्या ने छोटे शिबू के मन में अन्याय के खिलाफ आग जला दी।
गरीबी, शिक्षा की कमी और सामाजिक भेदभाव ने उन्हें मजबूर किया कि वे अपने जीवन का उद्देश्य स्पष्ट कर लें — आदिवासी समाज के हक और सम्मान की लड़ाई।
1970 के दशक में जब आदिवासी इलाकों में कोयला खदानों और खनिज संपदा पर बाहरी कब्जा बढ़ा, शिबू सोरेन ने आदिवासियों को एकजुट किया। 1972 में उन्होंने झारखण्ड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की स्थापना की। इसका एजेंडा स्पष्ट था —
-जल, जंगल, जमीन पर आदिवासियों का हक
-शोषण और विस्थापन के खिलाफ आंदोलन
-झारखण्ड को अलग राज्य का दर्जा दिलाना
उनका संघर्ष केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक भी था। उन्होंने आदिवासी पहचान, भाषा और परंपराओं को पुनर्जीवित किया। शिबू सोरेन की नेतृत्व क्षमता ने उन्हें लोकसभा तक पहुँचाया। वे कई बार लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य रहे। लेकिन उनका असली मैदान संसद के भीतर नहीं, बल्कि झारखण्ड के गाँव-गाँव में था, जहाँ वे जनसभा में लोगों की पीड़ा सुनते थे।
उनका व्यक्तित्व साधारण परंतु दृढ़ था — न सफेद कुर्ता-पायजामा बदलता, न जनता से मिलने का तरीका। वे नेताओं की तरह प्रोटोकॉल में नहीं, बल्कि ग्रामीण बुजुर्ग की तरह लोगों के बीच बैठते। शिबू सोरेन तीन बार झारखण्ड के मुख्यमंत्री बने। उनके पुत्र हेमंत सोरेन आज झारखण्ड के मुख्यमंत्री हैं। जेएमएम अब भी राज्य की सबसे प्रभावशाली राजनीतिक शक्ति है। लेकिन दिशोम गुरु की करिश्माई नेतृत्व शैली, उनकी जनसभा की ऊर्जा और ग्रामीण जनता के साथ सीधा संवाद शायद ही कोई दोहरा सके।
लेकिन झारखण्ड की गठबंधन राजनीति में उनकी सरकारें स्थिर नहीं रह पाईं। इसके बावजूद उन्होंने हर कार्यकाल में आदिवासी कल्याण योजनाएँ, रोजगार कार्यक्रम और भूमि अधिकार कानूनों को आगे बढ़ाया।
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